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जोड़  : पुं० [सं० जुड़] १. जुड़ने या जुड़े होने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. दो वस्तुओं का आपस में इस प्रकार जुड़ा, मिला या सटा होना कि वे या तो एक हो जायँ या देखने में एक जान पड़े। ३. वह संधि या स्थान जहाँ दो या अधिक चीजें आपस में मिली या सटी हुई हों। जैसे–हड्डियों का जोड़, पहुँचे और बाँह का जोड़, तख्तों या पत्थरों में का जोड़। क्रि० प्र०–उखड़ना–बैठाना।–लगाना। ४. वह अंग या अंश जो किसी दूसरी चीज के साथ जोड़ा या उसमें लगाया गया हो। ५. दो या अधिक चीजों का आपस में जोड़ने या मिलाने पर उनके संधि स्थान में दिखाई देनेवाला चिन्ह या लक्षण। जैसे–कुरसी के हत्थे में का जोड़ साफ दिखाई पड़ता है। पद–जोड़-तोड़। (दे०) ६. ऐसा मिलान या संयोग जो उपयुक्त, तुल्य अथवा सुन्दर जान पड़े। जैसे–उन दोनों पहलवानों का जोड़ तो अच्छा है। ७. उक्त के आधार पर होनेवाली बराबरी। गुण, धर्म आदि के विचार से होनेवाली समानता। जैसे–उस लड़के के साथ तुम्हारा क्या जोड़ है। क्रि० प्र०–बैठाना। मिलना। ८. एक ही तरह की अथवा साथ-साथ काम में आनेवाली दो या अधिक चीजें। जैसे–एक जोड़ कपड़ा (अर्थात् कुरता, टोपी और धोती अथवा कमीज, या कोट, टोपी और पायजामा) भी साथ रख लो। ९. दे० ‘जोड़ा’। १॰. गणित में, दो या दो से अधिक अंकों, संख्याओं आदि के जुड़े हुए होने या जोड़ने की क्रिया, अवस्था या भाव। ११. इस प्रकार जोड़ने से प्राप्त होनेवाली संख्या। १२. धन आदि का संग्रह।
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जोड़-तोड़  : पुं० [हिं०] १. कभी जोड़ने और कभी तोड़ने की क्रिया या भाव। २. कौशल या धूर्त्तता से की जानेवाली ऐसी युक्तियाँ जिनसे कहीं कोई क्रम या परम्परा जुड़ती और कहीं टूटती हो। कार्य साधन के लिए चालाकी और दाँव-पेंच से मिली हुई कार्रवाई। क्रि० प्र०–बैठाना।–लगाना।
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जोड़ती  : स्त्री० [हिं० जोड़+ती (प्रत्यय)] जोड़ (गणित का)।
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जोड़न  : स्त्री० [हिं० जोड़ना] १. जोड़ने की क्रिया या भाव। २. वह दही या और कोई खट्टा पदार्थ जो दूध में उसे जमाकर दही बनाने के लिए मिलाया जाता है। जामन।
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जोड़ना  : स० [सं०√जुड्, हिं० जोड़+ना (प्रत्य०)] १. दो या अधिक चीजों को किसी क्रिया या युक्ति से आपस में इस प्रकार साथ बैठाना, लगाना या सटाना कि वे या तो एक हो जायँ या एक के समान काम दें और जान पड़े। अच्छी तरह दृढ़तापूर्वक किसी के साथ मिलाना। जैसे–लकड़ी के तख्ते और पाये जो कर कुरसी या मेज बनाना, कपड़े के टुकड़े जोड़कर कुरता या चादर बनाना, लेई से फटे हुए कागज या पुस्तक के पन्ने जोड़ना। २. किसी चीज में का टूटा हुआ अंग या अंश उसमें फिर से इस प्रकार जडना, बैठाना या लगाना कि वह चीज फिर से पूरी हो जाय और पहले की तरह काम देने लगे। जैसे–पैर या हाथ की टूटी हुई हड्डी जोड़ना। ३. किसी चीज के भिन्न-भिन्न या संयोजक अंगों को इस प्रकार क्रम से यथा-स्थान बैठाना, रखना या लगाना कि वह चीज पूरी तरह तैयार होकर अपना काम करने लगे। जैसे–घड़ी या पुरजे या छापे के अक्षर जोड़ना दीवार बनाने के लिए ईंटे, पत्थर आदि (मसाले से) जोड़ना। ४. पहले से जो कुछ रहा हो अथवा मूलतः जो कुछ हो, उसमें अपनी ओर से कुछ और मिलाना या लगाना। वृद्धि करना। बढ़ाना। जैसे–उसने वहाँ का हाल कहते समय अपनी तरफ से भी कई बातें जोड़ दी थी। ५. एक ही तरह की बहुत सी चीजें इकट्ठी करके एक केन्द्र में लाना या एक स्थान पर रखना। एकत्र या संगृहीत करना। जैसे–धन-संपत्ति जोड़ना, संग्रहालय के लिए चित्र, पुस्तकें, मूर्तियाँ आदि जोड़ना। उदाहरण–कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी,जोड़ जमी में धरता है। ६. गणित में दो या अधिक संख्याओं का योग-फल प्रस्तुत करना। मीजान लगाना। ७. लिखना-पढ़ना सीखने अथवा साहित्यिक रचना का अभ्यास करने के लिए अक्षर, पद, वाक्य आदि उपयुक्त क्रम से बैठाना, रखना या लिखना। जैसे–अक्षर जोड़कर शब्द बनाना, शब्द जोड़कर कविता का चरण या पंक्ति बनाना। ८. किसी के साथ किसी प्रकार का संबंध स्थापित करना। जैसे–किसी के साथ नाता या मित्रता जोड़ना। ९. अग्नि, दीपक आदि के संबंध में, जलनेवाली चीज के साथ अग्नि का संयोग कराना। जैसे–रसोई बनाने के लिए आग जोड़ना, प्रकाश करने के लिए दीआ जोड़ना। १॰. गाड़ी, हल आदि के संबंध में, घोड़े या बैल लाकर आगे बाँधना। जोतना। (क्व०) जैसे–तुरंत रथ जोड़ा गया और वे चल पड़े।
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जोड़ना।  :
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जोड़ला  : वि=जुड़वाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोड़वाई  : स्त्री० [हिं० जोड़वाना] जोड़वाने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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जोड़वाना  : स० [हिं० जोड़ना का प्रे०] जोड़ने का काम दूसरे से कराना। किसी से कुछ जोड़ने में प्रवृत्त करना।
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जोड़ा  : पुं० [हिं० जोड़ना] [स्त्री० जोड़ी] १. प्रायः एक साथ रहने, साथ-साथ काम आने या साथ रहने पर उपयुक्त जान पड़ने वाले दो पदार्थ या व्यक्ति। जोड़ी। युग्म। जैसे–धोतियों का जोड़, हाथ में पहनने के कड़ों या पहुँचियों का जोड़ा। क्रि० प्र०–मिलाना।–लगाना। २. एक साथ पहने जानेवाले दो या अधिक कपड़े। जोड़। पद–जोड़ा–जामा। (दे०)। ३. एक ही प्रकार के जीवों, पशु-पक्षियों आदि के नर और मादा का युग्म। जैसे–वर और कन्या का जोड़ा, शेर और शेरनी का जोड़ा, बिच्छुओं और साँपों का जोड़ा। मुहावरा–जोड़ा खाना=पशु-पक्षियों का मैथुन या संभोग करना। ४. दोनों पैरों में पहनने के दोनों जूते। ५. वह जो किसी दूसरे की बराबरी या समता का हो। जोड़। ६. दे० ‘जोड़’।
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जोड़ा-जामा  : पुं० [हिं० जोड़ा+फा० जामः] १. विवाह के समय वर के पहनने के सब कपड़े जो प्रायः उसकी ससुराल से आते हैं। २. पहनने के वे कपड़े जो राजाओं आदि से लोगों को पुरस्कार स्वरूप मिलते थे। खिलअत।
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जोड़ाई  : स्त्री० [हिं० जोड़ना+आई (प्रत्यय)] १. जोड़ने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. दीवार बनाने के समय क्रम से रखने या लगाने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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जोड़ासंदेश  : पुं० [देश०] छेने की एक बँगला मिठाई।
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जोड़ी  : स्त्री० [हिं० जोड़ा] १. एक ही आकार-प्रकार, गुण और धर्मवाली दो चीजें। जैसे–मुगदरों की जोड़ी। २. संग-साथ रहनेवाले दो जीवों विशेषतः एक ही जाति के एक नर और एक मादा (जीवों) की सामूहिक संज्ञा। जैसे–बैलों की जोड़ी, भैसों की जोड़ी। ३. वह गाड़ी जिसे दो घोड़े या दो बैल खींचते हैं। जैसे–पहले के रईस जोड़ी पर निकला करते थे। ४. एक साथ रहनेवाले दो मुगदर जो कसरत करने के समय दोनों हाथों में पकड़ कर घुमाये जाते हैं। क्रि० प्र०–भाँजना। ५. एक में बँधी हुई कटोरियों के तरह की वे दोनों चीजें जो गाने-बजाने के समय ताल देने के काम आती हैं। मंजीरा। क्रि० प्र०–बजाना। ६. दे० ‘जोड़’।
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जोड़ी की बैठक  : स्त्री० [हिं० जोड़ी=मुगदर+बैठक=कसरत] वह बैठकों (कसरत) जो मुदगरों की जोड़ी पर हाथ टेक कर की जाती है।
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जोड़ीदार  : पुं० [हिं० जोड़ा+फा० दार] वह जो किसी के साथ उसकी बराबरी का होकर रहता हो। वि० मुकाबले का।
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जोड़ीवाल  : पुं० [हिं० जोड़ा+वला (प्रत्यय)] १. गाने-बजानेवालों के साथ जोड़ी या मंजीरा बजानेवाला। २. दे० ‘जोड़ीदार’।
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जोड़ुआ  : पुं० [हिं० जोड़ा+उआ (प्रत्यय)] पैर में पहनने का चाँदी का एक प्रकार का सिकड़ीदार गहना। वि०=जुड़वाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोड़ू  : स्त्री०=जोरू।
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