| शब्द का अर्थ | 
					
				| द्वैत					 : | पुं० [सं० द्वि-इत० तृ त, +अण्] १. दो होने की अवस्था या भाव। २. जोडा़। युग्म। ३. किसी को अन्य या पराया समझने का भाव। ४. असमंजस। ५. अज्ञान। ६. एक वन का नाम। ७. ‘द्वैतवाद’ दे०। | 
			
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				| द्वैत-चिंतामणि					 : | पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाट की पद्धति की एक राग। | 
			
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				| द्वैत-परिपूर्णी					 : | स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। | 
			
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				| द्वैत-वाद					 : | पुं० [ष० त०] १. वह दार्शनिक सिद्धान्त, जिसमें आत्मा-परमात्मा अर्थात् जीव और आत्मा अथवा आत्मा और अनात्मा में भेद माना जाता है। अद्वैतवाद से भिन्न और उसका विरोधी मत या सिद्धान्त। २. उक्त के अंतर्गत वह सूक्ष्म भेद, जिसमें ओर चित्त शक्ति अथवा आत्मा और शरीर दो भिन्न पदार्थ माने जाते हैं। विशेष—उत्तर मीमांसा या वेदान्त का यह मत है कि आत्मा और परमात्मा दोनो एक है; परन्तु शेष पाँचों दर्शन इस मत के विरोधी हैं। ३. दो स्वतंत्र और विभिन्न सिद्धान्त एक साथ माननेवाली विचार-शैली। | 
			
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				| द्वैतवन					 : | पुं० [सं० द्वि=शोक, मोह—इत= नष्ट ब० स०,+अण्, द्वैतवन कर्म० स०] एक तपोवन जिसमें युधिष्ठिर वनवास के समय कुछ दिनों तक रहे थे। | 
			
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				| द्वैतवादी (दिन्)					 : | वि० [सं० द्वैतवाद+इनि] [स्त्री० द्वैतवादिनी] ईश्वर और जीव में भेद मानने वाला। द्वैतवाद का अनुयायी। | 
			
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				| द्वैतानंदी					 : | स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाट की पद्धति की एक रागिनी। | 
			
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				| द्वैतानंदी (तिन्)					 : | वि० [सं०द्वैत+इनि] द्वैतवादी। | 
			
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				| द्वैतीयीक					 : | वि० [सं० द्वितीय+ईकक्] दूसरा। | 
			
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