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पार्श्व  : पुं० [सं०√स्पृश् (छूना)+श्वण्, पृ—आदेश] १. कंधों और काँखों के नीचे के उन दोनों भागों में से प्रत्येक जिनमें पसलियाँ होती हैं। छाती के दाहिने और बाएँ भागों में से प्रत्येक भाग। बगल। २. पसली की हड्डियों का समुदाय। पंजर। ३. किसी पदार्थ, प्राणी की लंबाई वाले विस्तार में इधर अथवा उधर पड़नेवाला अंग या अंश। बगलवाला छोर या सिरा। ४. किसी क्षेत्र या विस्तार का वह अंग या अंश जो किसी एक ओर या दिशा की सीमा पर पड़ता हो और कुछ दूर तक सीधा चला गया हो। जैसे—इस चौकोर क्षेत्र के चारों पार्श्व बराबर हैं। ५. किसी चीज के अगल-बगल या दाहिने-बाएँ अंशों के पास पड़नेवाला विस्तार। जैसे—गढ़ के दाहिने पार्श्व में बन था। ६. लिखते समय कागज की दाहिनी (अथवा बाईं) ओर छोड़ा जानेवाला स्थान। हाशिया। ८. कपट या छल से भरा हुआ उपाय या साधन। ७. दे० ‘पार्शनाथ’।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पार्श्व  : पुं० [सं०√स्पृश् (छूना)+श्वण्, पृ—आदेश] १. कंधों और काँखों के नीचे के उन दोनों भागों में से प्रत्येक जिनमें पसलियाँ होती हैं। छाती के दाहिने और बाएँ भागों में से प्रत्येक भाग। बगल। २. पसली की हड्डियों का समुदाय। पंजर। ३. किसी पदार्थ, प्राणी की लंबाई वाले विस्तार में इधर अथवा उधर पड़नेवाला अंग या अंश। बगलवाला छोर या सिरा। ४. किसी क्षेत्र या विस्तार का वह अंग या अंश जो किसी एक ओर या दिशा की सीमा पर पड़ता हो और कुछ दूर तक सीधा चला गया हो। जैसे—इस चौकोर क्षेत्र के चारों पार्श्व बराबर हैं। ५. किसी चीज के अगल-बगल या दाहिने-बाएँ अंशों के पास पड़नेवाला विस्तार। जैसे—गढ़ के दाहिने पार्श्व में बन था। ६. लिखते समय कागज की दाहिनी (अथवा बाईं) ओर छोड़ा जानेवाला स्थान। हाशिया। ८. कपट या छल से भरा हुआ उपाय या साधन। ७. दे० ‘पार्शनाथ’।
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पार्श्व-गत  : वि० [सं० द्वि० त०] १. पार्श्व या बगल में आया या ठहरा हुआ। २. (चित्र) जिसमें किसी आकृति का एक ही पार्श्व दिखाया गया हो, दूसरा पार्श्व सामने न हो। (प्रोफाइल) जैसे—दाहिनी ओर जाते हुए व्यक्ति के चित्र में उसकी पार्श्व-गत आकृति ही दिखाई देती है। पुं० वह जिसे अपने यहाँ रखकर आश्रय दिया गया हो या जिसकी रक्षा की गई हो।
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पार्श्व-गत  : वि० [सं० द्वि० त०] १. पार्श्व या बगल में आया या ठहरा हुआ। २. (चित्र) जिसमें किसी आकृति का एक ही पार्श्व दिखाया गया हो, दूसरा पार्श्व सामने न हो। (प्रोफाइल) जैसे—दाहिनी ओर जाते हुए व्यक्ति के चित्र में उसकी पार्श्व-गत आकृति ही दिखाई देती है। पुं० वह जिसे अपने यहाँ रखकर आश्रय दिया गया हो या जिसकी रक्षा की गई हो।
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पार्श्व-टिप्पणी  : स्त्री० [मध्य० स०] पार्श्व अर्थात् हाशिये में लिखी गई टिप्पणी। (मार्जिनल नोट)
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पार्श्व-टिप्पणी  : स्त्री० [मध्य० स०] पार्श्व अर्थात् हाशिये में लिखी गई टिप्पणी। (मार्जिनल नोट)
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पार्श्व-परिवर्त्तन  : पुं० [ष० त०] लेटे या सोये रहने की दशा में करवट बदलना।
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पार्श्व-परिवर्त्तन  : पुं० [ष० त०] लेटे या सोये रहने की दशा में करवट बदलना।
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पार्श्व-शीर्षक  : पुं० [मध्य० स०] पार्श्व अर्थात् हाशियेवाले भाग में लगाया या लिखा हुआ शीर्षक। (मार्जिनल हेडिंग)
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पार्श्व-शीर्षक  : पुं० [मध्य० स०] पार्श्व अर्थात् हाशियेवाले भाग में लगाया या लिखा हुआ शीर्षक। (मार्जिनल हेडिंग)
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पार्श्व-शूल  : पुं० [मध्य० स०] बगल या पसलियों में होनेवाला शूल या जोर का दर्द।
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पार्श्व-शूल  : पुं० [मध्य० स०] बगल या पसलियों में होनेवाला शूल या जोर का दर्द।
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पार्श्व-संगीत  : पुं० [मध्य० स०] १. आधुनिक अभिनयों, चल-चित्रों आदि में वह संगीत जो अभिनय होने के समय परोक्ष में होता रहता है। २. आधुनिक चल-चित्रों में किसी पात्र का ऐसा गाना जो वास्तव में वह स्वयं नहीं गाता, बल्कि उसका गानेवाला परोक्ष या परदे की आड़ में रहकर उसके बदले में गाता है। (प्लेबैक)
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पार्श्व-संगीत  : पुं० [मध्य० स०] १. आधुनिक अभिनयों, चल-चित्रों आदि में वह संगीत जो अभिनय होने के समय परोक्ष में होता रहता है। २. आधुनिक चल-चित्रों में किसी पात्र का ऐसा गाना जो वास्तव में वह स्वयं नहीं गाता, बल्कि उसका गानेवाला परोक्ष या परदे की आड़ में रहकर उसके बदले में गाता है। (प्लेबैक)
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पार्श्वक  : पुं० [सं०] वह चित्र जिसमें किसी आकृति का एक ही पार्श्व दिखलाया गया हो।
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पार्श्वक  : पुं० [सं०] वह चित्र जिसमें किसी आकृति का एक ही पार्श्व दिखलाया गया हो।
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पार्श्वग  : वि० [सं० पार्श्व√गम् (जाना)+ड] साथ में चलने या रहनेवाला। पुं० नौकर। सेवक।
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पार्श्वग  : वि० [सं० पार्श्व√गम् (जाना)+ड] साथ में चलने या रहनेवाला। पुं० नौकर। सेवक।
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पार्श्वगायन  : पुं० [सं०] आज-कल वह गायन जो नेपथ्य से किसी पात्र या पात्री के गाने के बदले में होता है। विशेष—जो अभिनेता या अभिनेत्री गान-विद्या में पटु नहीं होती, उसके बदले में नेपथ्य से कोई दूसरा अच्छा गायक या गायिका गाती है। यही गाना पार्श्वगायन कहलाता है।
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पार्श्वगायन  : पुं० [सं०] आज-कल वह गायन जो नेपथ्य से किसी पात्र या पात्री के गाने के बदले में होता है। विशेष—जो अभिनेता या अभिनेत्री गान-विद्या में पटु नहीं होती, उसके बदले में नेपथ्य से कोई दूसरा अच्छा गायक या गायिका गाती है। यही गाना पार्श्वगायन कहलाता है।
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पार्श्वचर  : वि० [सं० पार्श्व√चर् (गति)+ट] पास में रहकर साथ चलनेवाला।
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पार्श्वचर  : वि० [सं० पार्श्व√चर् (गति)+ट] पास में रहकर साथ चलनेवाला।
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पार्श्वचित्र  : पुं० [सं०] पार्श्वक। (दे०)
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पार्श्वचित्र  : पुं० [सं०] पार्श्वक। (दे०)
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पार्श्वद  : पुं० [सं० पार्श्व√दा (देना)+क] नौकर। सेवक।
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पार्श्वद  : पुं० [सं० पार्श्व√दा (देना)+क] नौकर। सेवक।
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पार्श्वनाथ  : पुं० [सं०] जैनों के तेइसवें तीर्थंकर।
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पार्श्वनाथ  : पुं० [सं०] जैनों के तेइसवें तीर्थंकर।
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पार्श्ववर्ती  : वि० [सं० पार्श्व√वृत (रहना)+णिनि] [स्त्री० पार्श्ववर्त्तिनी] १. किसी के पास या साथ रहनेवाला। जैसे—राजा के पार्श्ववर्ती। २. किसी के पार्श्व में, आस-पास या इधर-उधर रहने या होनेवाला। जैसे—नगर का पार्श्ववर्ती वन। पुं० १. सहचर। साथी। २. नौकर। सेवक।
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पार्श्ववर्ती  : वि० [सं० पार्श्व√वृत (रहना)+णिनि] [स्त्री० पार्श्ववर्त्तिनी] १. किसी के पास या साथ रहनेवाला। जैसे—राजा के पार्श्ववर्ती। २. किसी के पार्श्व में, आस-पास या इधर-उधर रहने या होनेवाला। जैसे—नगर का पार्श्ववर्ती वन। पुं० १. सहचर। साथी। २. नौकर। सेवक।
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पार्श्वस्थ  : वि० [सं० पार्श्व√स्था (ठहरना)+क] जो पास या बगल में स्थित हो।
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पार्श्वस्थ  : वि० [सं० पार्श्व√स्था (ठहरना)+क] जो पास या बगल में स्थित हो।
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पार्श्वानुचर  : पुं० [पार्श्व-अनुचर, मध्य० स०] सेवक।
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पार्श्वानुचर  : पुं० [पार्श्व-अनुचर, मध्य० स०] सेवक।
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पार्श्वायात  : वि० [पार्श्व-आयात, स० त०] जो पास आया हो।
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पार्श्वायात  : वि० [पार्श्व-आयात, स० त०] जो पास आया हो।
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पार्श्वासन्न, पार्श्वासीन  : वि० [सं० स० त०] पार्श्व अर्थात् बगल में बैठा हुआ।
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पार्श्वासन्न, पार्श्वासीन  : वि० [सं० स० त०] पार्श्व अर्थात् बगल में बैठा हुआ।
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पार्श्विक  : वि० [सं० पार्श्व+ठक्—इक] १. पार्श्व-संबंधी। २. किसी एक पार्श्व या अंग में होनेवाला। ३. किसी एक पार्श्व या अंग की ओर से आने या चलनेवाला। (लेटरल)
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पार्श्विक  : वि० [सं० पार्श्व+ठक्—इक] १. पार्श्व-संबंधी। २. किसी एक पार्श्व या अंग में होनेवाला। ३. किसी एक पार्श्व या अंग की ओर से आने या चलनेवाला। (लेटरल)
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