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पौ  : स्त्री० [सं० पाद, प्रा० पाय, पाव=किरन] १. ज्योति या प्रकाश की रेखा। २. सूर्य निकलने से पहले दिखाई देनेवाला हलका प्रकाश। मुहा०—पौ फटना=प्रभात के समय सूर्योदय के सामीप्य के कारण कुछ कुछ उजाला दिखाई पड़ना। ३. पैर। ४. जड़। मूल। ५. पाँसे का वह तल जिस पर एक बिंदी रहती है। मुहा०—पौ बारह पड़ना=(तीन पाँसों के खेल में) पाँसों का इस प्रकार पड़ना कि एक पाँसे में पौ और बाकी पाँसों में छः छः के दाँव (६+६+१) आएँ। (यह जीत का सबसे बड़ा दाँव होता है)। (किसी की) पौ बारह होना=(क) बहुत बड़ी जीत या लाभ होना। (ख) बहुत अधिक लाभ या सौभाग्य का सुयोग आना। पुं० [सं० प्रपा] पौसला (प्याऊ)।
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पौ-सेरा  : पुं० [हिं० पाव+सेर] पाव सेर की तौल या बटखरा।
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पौआ  : पुं० [सं० पाद, हिं० पाव] १. एक सेर का चौथाई भाग। सेर का चतुर्थांश। पाव। २. पाव भर के मान का बटखरा। ३. नापने का वह बरतन जिसमें कोई तरल पदार्थ पाव भर आता हो। जैसे-तेल या दूध नापने का पौआ।
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पौगंड  : पुं० [सं० पोगण्ड+अण्] पाँचवें वर्ष से लेकर सोलहवें वर्ष तक की अवस्था।
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पौचा  : पुं० [हिं० पाँच] साढे पाँच का पहाड़ा।
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पौटिया  : पुं० [?] हिन्दुओं में एक जाति जो चाँदी-सोने के तार आदि बनाने का काम करती है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौठ  : स्त्री० [सं० प्रवर्त्त, प्रा० पवट्ट] ब्रिटिश शासन में, जोत की एक रीति जिसके अनुसार प्रति वर्ष जोतने का अधिकार नियमानुसार बदलता रहता था। भेजवारी। विशेष—इसमें गाँव के सब किसानों को जोतने के लिए जमीन मिलती रहती थी।
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पौंड  : पुं०=पाउन्ड (अंग्रेजी सिक्का)।
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पौंड़ना  : अ०=पौडना (तैरना)।
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पौडर  : पुं०=पाउडर। (देखें)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौंडरीक  : पुं० [सं० पुंडरीक+अण्] १. स्थलपद्म। पुंडरीक। २. एक प्रकार का कुष्ठ रोग जिसमें कमल के पत्ते के रंग का-सा वर्ण हो जाता है। ३. एक प्रकार का यज्ञ।
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पौंडर्य्य  : पुं० [सं० पुण्डर्य+अण्] स्थलपद्म।
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पौंड़ा  : पुं०=पौढ़ा (गन्ना)।
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पौंड़ी  : स्त्री०=पौंरी।
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पौड़ी  : स्त्री० [हिं० पाँव+ड़ी] १. लकड़ी का वह मोढ़ा जिस पर मदारी बंदर को नचाते समय बैठाता है। २. दे० ‘पाँव़ड़ी’। स्त्री० [?] एक प्रकार की कड़ी मिट्टी।
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पौंड्र  : वि० [सं० पुण्ड्र+अण्] पुंड्र देश का। पुं० १. पुंड्र देश का निवासी। २. पुंड्र देश का बना रेशमी जो किसी समय बहुत प्रसिद्ध था। ३. भीमसेन के शंख का नाम। ४. मनु के अनुसार एक प्राचीन जाति जो पहले क्षत्रिय थी पर पीछे संस्कार भ्रष्ट होकर वृषल हो गई थी। ५. दे० ‘पौंड्रक’।
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पौंड्रक  : पुं० [सं० पुण्ड्रक+अण्] एक प्रकार का मोटा गन्ना। पौंढ़ा। २. पुंड्र नामक प्राचीन जाति। ३. पुंड्र देश का एक राजा जो जरासंध का संबंधी था; और जिसे लोग मिथ्या वासुदेव भी कहते थे।
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पौंड्रिक  : पुं० [सं० पुण्ड्र+ठञ्—इक] १. मोटा गन्ना। पौढ़ा। २. लवा नामक पक्षी। ३. पुंड्र नामक देश। ४. एक गोत्र-प्रवर्त्तक ऋषि।
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पौंढ़ई  : विस०, पुं०=गन्नई (रंग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौंढ़ना  : सं०=पौंढ़ना।
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पौढ़ना  : अ० [सं० प्रलोठन] आराम करने या सोने के लिए लेटना। अ० [सं० प्लवन, प्रा० पव्वलन] आगे पीछे हिलना। झूलना। जैसे—झूले का प्रौढ़ना। अ०=पैरना (तैरना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौंढ़ा  : पुं० [सं० पौंड्रक] एक तरह का क़ड़े छिलकेवाला मोटा गन्ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौढ़ाना  : स० [हिं० प्रौढ़ना] १. किसी को पौढ़ने में प्रवृत्त करना। लेटाना या सुलाना। २. इधर-उधर हिलाना, डुलाना। झुलाना। माल की तौल तथा बटखरों आदि की जाँच या देख-रेख।
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पौताना  : पुं० [हिं० पाँव] १. जुलाहों के करघे में लकड़ी का एक औजार जो चार अंगुल लंबा और चौकोर होता है। २. दे० ‘पैताना’।
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पौतिक  : वि० [सं० पूतिक+अण्] (घाव या फोड़ा) जो पूर्ति अर्थात् विषाक्त कीटाणुओं के उत्पन्न होने से सड़ने लगा हो। पूति-दूषित। (सेप्टिक)
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पौतिनासिक्य  : पुं० [सं० पूति-नासिका, मध्य० स०,+ ष्यञ्] पीनस रोग।
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पौती  : स्त्री०=पिटारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौत्तलिक  : वि० [सं० पुत्तलिका+अण्] १. पुत्तलिका संबंधी। पुतलों या पुतलियों का। जैसे—पौत्तलिक अभिनय या नृत्य। २. मूर्तिपूजक।
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पौत्तिक  : पुं० [सं० पुत्तिका+अण्] पुत्तिका नाम की मधु-मक्खी द्वरा इकट्ठा किया हुआ मधु जो घी के समान गाढ़ा होता है।
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पौत्र  : पुं० [सं० पुत्र+अण्] [स्त्री० पौत्री] लड़के का लड़का। पोता।
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पौत्रिक  : वि० [सं० पुत्र+ठक्—इक] १. पुत्र-संबंधी। २. पौत्र संबंधी।
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पौत्रिकेय  : पुं० [सं० पुत्रिका+ढक्—एय] अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए पुत्र के स्थान पर माना हुआ कन्या का पुत्र।
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पौत्री  : स्त्री० [सं० पुत्र+अञ्+ङीप्] १. दुर्गा। ‘पौत्र’ का स्त्री० लड़के की लड़की। पोती।
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पौंद  : स्त्री०=पोंद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौद  : स्त्री० [सं० पोत] १. नया निकलता हुआ छोटा पौधा। २. कुछ विशिष्ट प्रकार के पौधों और वृक्षों का वह नया कल्ला जो एक स्थान से उखाड़कर दूसरे स्थान पर लगाया जाता है। क्रि० प्र०—जमाना। लगाना। ३. उपज। पैदावार। ४. नई पीढ़ी जिसमें अधिकतर बच्चे और नवयुवक ही होते हैं। स्त्री० [सं० पाद+पट] पाँवड़ा।
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पौदर  : स्त्री० [हिं० पाँव+डालना] १. चलने के समय पैर का चिह्र। २. पैदल चलने का रास्ता। ३. पगदंडी। ४. वह रास्ता जिस पर कोल्हू मोंट आदि के बैल चक्कर लगाते या आते-जाते हैं।
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पौदा  : पुं०=पौधा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौद्गलिक  : वि० [सं० पुद्गल+ठक्—इक] १. पुद्गल- संबंधी। द्रव्य या भूत-संबंधी। २. जीव-संबंधी। ३. जो सांसारिक सुख-भोगों में लिप्त हो।
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पौध  : स्त्री०=पौद। (देखें)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौधन  : स्त्री० [सं० पयस्+आधान] मिट्टी का वह बरतन जिसमें भोजन रखकर परोसा जाता है।
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पौधा  : पुं० [सं० पोत] १. वृक्ष का वह आरंभिक रूप; जो दो-तीन हाथ तक ऊँचा होता है तथा एक स्थान से उखा़ड़कर दूसरे स्थान पर लगाया जा सकता है। जैसे—आम या जामुन का पौधा। २. वे वनस्पतियाँ (लताओं, पेडों और झाड़ियों से भिन्न) जो दो-तीन हाथ तक ऊपर बढ़ती है तथा जिनके तने और शाखाएँ बहुत कोमल होते हैं। जैसे—गुलाब या बेले का पौधा। ३. रेशम या सूत का वह फुंदना जो बुलबुल पालनेवाले लोग सुन्दरता बढ़ाने के लिए बुलबुल की पेटी में बाँध देते हैं। ४. किसी प्रकार का झब्बा या फुँदना।
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पौधि  : स्त्री० १.=पौधा। २.=पौद।
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पौन  : पुं० [सं० पवन] १. वायु। हवा। २. चीज या प्राण जिसका रूप वायु के समान सूक्ष्म माना गया है। ३. भूत-प्रेत। मुहा०—(किसी पर) पौन बैठाना=किसी पर भूत-प्रेत की बाधा उपस्थित करना। ४. जादू-टोना जिसका प्रभाव लोक-विश्वास के अनुसार वायु के संसर्ग से दूर तक पहुँचता है। मुहा०—पौन चलाना या मारना=जादू या टोना चलाना। मूठ चलाना। वि० [सं० पाद+ऊन=पादोन, प्रा० पाओन] पूरे एक में से चौथाई कम। तीन चौथाई। जैसे—पौन घंटे में काम हो जायगा।
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पौन-सलाई  : स्त्री० [हिं०] एक प्रकार का बेलन जिस पर सूत कातने के पहले रूई तैयार की जाती है।
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पौनःपुनिक  : वि० [सं० पुनः पुनः+ठञ्—इक] पुनः पुनः या फिर फिर होनेवाला। जो बार बार होता हो।
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पौनःपुन्य  : पुं० [सं० पुनः पुनः+ष्य़ञ्.] कोई काम या बात बार-बार होने की अवस्था या भाव।
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पौनरुक्त  : पुं० [सं० पुनरुक्त+अण्] वह अवस्था जिसमें कोई बात दो बार अर्थात् फिर से कही गई हो। पुनरुक्त होने की अवस्था या भाव।
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पौनर्भवा  : स्त्री० [सं० पौनर्भव+टाप्] वह कन्या जिसका किसी के साथ एक बार विवाह संस्कार हो चुका हो और फिर दूसरी बार किसी दूसरे के साथ विवाह हुआ हो।
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पौनर्वादिक  : वि० [सं० पुनर्वाद+ठक्—इक] १. पुनर्वाद संबंधी। पुनर्वाद का। (एपेलेट) जैसे—पौनर्वादिक न्यायालय। (ऐपेलेट कोर्ट)। २. पुनर्वाद के विचार से परिणाम स्वरूप होनेवाला। जैसे—पौनर्वादिक आज्ञा। (एपेलेट आर्डर)
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पौना  : पुं० [सं० पाद+ऊन, प्रा० पाव+ऊन=पाऊन] पौने का पहाड़ा। वि०=पौन (तीन चौथाई)। पुं० [?] काठ लोहे आदि की एक प्रकार की कलछी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौनार  : स्त्री० [सं० पद्मनाल] कमल के फूल की नाल या डंठल जो बहुत नरम और कोमल होता है।
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पौनारी  : स्त्री०=पौनार (पद्मनाल) उदा०—भुजन छपानि कँवल पौनारी।—जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौनिया  : पुं० [हिं० पौना] छोटे अरज या कम चौड़ाई का एक प्रकार का कपड़ा जिसका थान प्रायः थान के साधारण मान का तीन-चौथाई होता था।
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पौनी  : स्त्री० [हिं० ‘पौना’ का स्त्री० अल्पा०] छोटा पौना या एक प्रकार की कलछी। पुं० [हिं० पावना] कुम्हार, धोबी, नाई आदि वे लोग जिन्हें मंगल अवसरों पर नेग मिलता है।
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पौने  : वि० [हिं० पौन] हिं० ‘पौन’ या ‘पौना’ का वह रूप जो उसे संख्यावाचक शब्दों के पहले लगने पर प्राप्त होता है। जैसे—पौने चार रुपए, पौने दस बजे। पद—पौने सोलह आने=बहुत अधिक अंशों में, बहुत अधिक रूप में। जैसे—आपकी बात पौने सोलह आने ठीक है; अर्थात् उसके ठीक न होने की बहुत कम संभावना है। मुहा०—(कोई चीज) औने-पौने करना= थोडा़-बहुत जो दाम मिले, उसी पर बेच डालना।
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पौमान  : पुं० [?] जलाशय। पुं०=पवमान।
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पौर  : वि० [सं० पुर+अण्] १. पुर या नगर-संबंधी। पुर का। २. पुर में उत्पन्न होनेवाला। ३. पूर्वकाल या पूर्व दिशा में उत्पन्न। ४. सदा पेट भरने की चिंता में रहनेवाला। पेटू। पुं० [सं०] १. नगर-निवासी। नागरिक। २. पुरु राजा का पुत्र। ३. रोहिष या रूसा नाम की घास। ४. नखी नामक गन्ध-द्रव्य। पुं०=प्रहर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [हिं० पौरि] १. ड्योढ़ी। २. दरवाजा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौर-जन  : पुं० [कर्म० स०] नागरिक।
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पौर-जानपद  : पुं० [कर्म० स०] प्राचीन भारतीय राज्य तंत्र में पुर या नगर और जनपद या बाकी देश के प्रतिनिधियों की सभाओं का सम्मिलित रूप।
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पौर-मुख्य  : पुं० [स० त०] नगर का प्रमुख या प्रधान।
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पौर-लेखक  : पुं० [ष० त०] प्राचीन भारतीय राजतंत्र में वह अधिकारी जिसके पास पुर या नगर के लेख्यों या दस्तावेजों की नकल और विवरण रहता था।
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पौर-वृद्ध  : पुं० [स० त०] प्रमुख और वयोवृद्ध तथा प्रतिष्ठित नागरिक।
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पौर-सख्य  : पुं० [स०त०] एक ही पुर या नगर में रहनेवाले लोगों में उत्पन्न होनेवाली मित्रता या सुहृदता।
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पौरक  : पुं० [सं० पौर√कै+क] १. पुर या नगर के समीप का बाग। २. घर के आस-पास का बगीचा।
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पौरंदर  : पुं० [सं० पुरन्दर+अण्] ज्येष्ठा नक्षत्र। वि० पुरन्दर-संबंधी। पुरन्दर का।
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पौरंध्र  : वि० [सं० पुरन्ध्री+अण्] स्त्री० संबंधी।
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पौंरना  : अ० [सं० प्लवन] तैरना।
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पौरव  : वि० [सं० पुरु+अण्] [स्त्री० पौरवी] १. पुरु-संबंधी। पुरु का। २. पुरु के वंश का। पुरु से उत्पन्न। पुं० १. पुरु का वंशज या संतान। २. महाभारत के अनुसार उत्तर पूर्व दिशा का एक देश। ३. उक्त देश का निवासी।
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पौरवी  : स्त्री० [सं० पौरव+ङीष्] १. युधिष्ठिर की एक स्त्री का नाम। २. वासुदेव की एक स्त्री ३. संगीत में, एक प्रकार की मूर्च्छना, इसका सरगम इस प्रकार है—ध, नि, स, रे, ग, म, प। प, ध, नि, स, रे, ग, म, प, ध, नि, स, रे।
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पौरस्त्य  : वि० [सं० पुरस्+त्यक्] १. पूर्वी दिशा या पूर्वी देशों से संबंध रखने या उनमें होनेवाला। २. पहले का पुराना।
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पौरस्त्री  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. पुर या नगर में रहनेवाली स्त्री। ‘ग्राम्या’ का विपर्याय। २. पढी़-लिखी या सुशील स्त्री। ३. अंतःपुर में रहनेवाली स्त्री।
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पौरा  : पुं० [हिं० पहरा या पैर ?] शुभाशुभ फलों के विचार से, घर में परिवार के सदस्य के रूप में किसी नये व्यक्ति का होनेवाला आगमन। जैसे—(क) बहू का पौरा अच्छा है, जब से आई है, तब से घर में बरकत दिखाई देने लगी है। (ख) इस नये शिष्य का पौरा अनर्थ-कारक सिद्ध हुआ।
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पौराणिक  : वि० [सं० पुराण+ठक्—इक] [स्त्री० पौराणिकी] १. पुराण संबंधी। पुराण या पुराणों का। २. जिसका उल्लेख पुराणों में हुआ हो। जैसे—पौराणिक आख्यान या कथा। ३. प्राचीन काल का। पुराना। पुं० १. वह ब्राह्मण जो पुराणों का पंडित हो, और पुराणों की कथाएँ लोगों को सुनाता हो। २. अठारह की संख्या का सूचक शब्द।
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पौंरि  : स्त्री०=पौरि या पौरी।
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पौरि  : स्त्री०=पौरी।
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पौरिक  : पुं० [सं० पुर+ठक्—इक] १. पुर में रहनेवाला व्यक्ति। २. पुर का प्रधान शासनिक अधिकारी। ३. दक्षिण भारत का एक प्राचीन देश। वि० पुर-संबंधी। पुर का।
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पौंरिया  : पुं०=पौरिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौरिया  : पुं० [हिं० पौरी] द्वारपाल। ड्योढ़ीदार। दरबान।
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पौरी  : स्त्री० [सं० प्रतोली; प्रा० पओली] घर के मुख्य द्वार के अन्दर का वह भाग जिसमें से होकर घर के कमरों, आँगन आदि में जाया जाता है। ड्योढ़ी।
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पौरुकुत्स  : पुं० [सं० पुरुकुत्स+अण्] पुरुकुस के गोत्र में उत्पन्न व्यक्ति।
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पौरुष  : वि० [सं० पुरुष+अण्] १. पुरुष या मनुष्य से संबंध रखनेवाला। पुरुष का। पुरुष-संबंधी। २. पुरुष की शक्ति विशेषतः शारीरिक शक्ति से संबंध रखनेवाला। पुं० १. पुरुष होने की अवस्था या भाव। २. पुरुषों में सामान्य रुप से होनेवाला गुण तथा विशेषताएँ। जैसे—बल, शौर्य, साहस आदि। ३. पुरुष का कर्म। पुरुषार्थ। ४. पुरुष की लिंगेंद्रिय। ५. वीर्य। शुक्र। ६. ऊँचाई या गहराई की ‘पुरसा’ नामक माप।
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पौरुषी  : स्त्री० [सं० पौरुष+ङीष्] स्त्री।
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पौरुषेय  : वि० [सं० पुरुष+ढञ्—एय] १. पुरुष-संबंधी। पुरुष का २. पुरुष का किया, बनाया या रचा हुआ। ३. आध्यात्मिक। पुं० १. पुरुष का काम। २. पुरुषों या मनुष्यों का समूह। जन-समुदाय। ३. वह मजदूर जो दैनिक वेतन पर काम करता हो।
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पौरुष्य  : पुं० [सं० पुरुष+ष्यञ्]=पौरुष।
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पौरुहूत  : वि० [सं० पुरुहूत+अण्] इंद्र-संबंधी।
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पौरू  : स्त्री० [देश०] मिट्टी के विचार से भूमि का एक भेद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौरोगव  : पुं० [सं० पुरस्-गो, ब० स०, पुरोगु+अण्] राजभवन की पाकशाला का प्रधान अधिकारी।
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पौरोडाश  : वि० [सं० पुरोडाश+अण्] पुरोडाश-संबंधी। पुरोडाश का। पुं० पुरोडाश के समर्पण के समय पढ़ा जानेवाला एक मंत्र।
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पौरोडाशिक  : पुं० [सं० पुरोडाश+ठक्—इक] परोडाश नामक मंत्र का पाठ करनेवाला। ऋत्विक।
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पौरोधस  : पुं० [सं० पुरोधस्+अण्] १. पुरोहित। २. पुरोहित का काम या पद।
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पौरोभाग्य  : पुं० [सं० पुरोभागिन्+ष्यञ्] १. दूसरों के दोष दिखलाना। २. ईर्ष्या या द्वेषपूर्ण भावना। ३. ईर्ष्या या द्वेष-वश किया हुआ कार्य।
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पौरोहित्य  : पुं० [सं० पुरोहित+ष्यञ्] १. पुरोहित होने की अवस्था या भाव। २. पुरोहित का काम, कृत्य या वृत्ति। ३. पुरोहितों का वर्ग या समाज। (प्राइस्टहुड)
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पौर्णमास  : पुं० [सं० पौर्णमासी+अण्] प्राचीन भारत में पूर्णिमा के दिन किया जानेवाला एक तरह का यज्ञ। वि० पूर्ण चन्द्र से संबंध रखनेवाला।
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पौर्णमासी  : स्त्री० [सं० पूर्णमास+अण्—ङीष्] पूर्णिमा।
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पौर्णमास्य  : पुं० [सं० पौर्णमासी+यत्] पूर्णिमा के दिन होनेवाले यज्ञ आदि।
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पौर्णामासिक  : वि० [सं० पूर्णमासी+ठञ्—इक] १. पूर्णिमा-संबंधी। २. पूर्णिमा के दिन होनेवाला।
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पौर्वात्य  : पुं० [सं० पूर्व+त्यक्] ‘पाश्चात्य’ के अनुकरण पर बना हुआ असिद्ध शब्द। शुद्ध रूप पौरस्त्य (पूर्व दिशा का)।
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पौर्वाद्धिक  : वि० [सं० पूर्वार्द्ध+ठञ्—इक] पूर्वार्द्ध-संबंधी।
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पौर्वापर्य  : पुं० [सं० पूर्वापर+ष्यञ्] १. पूर्व और पर अर्थात् आगे और पीछे होने की अवस्था या भाव। पूर्वापरता। २. अनुक्रम। सिलसिला।
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पौर्वाहिणक  : वि० [सं० पूर्वाह्ल+ठञ्—इक] [स्त्री० पौर्वाह्लिकी] पूर्वाह्ल संबंधी। पूर्वाह्ल का।
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पौर्विक  : वि० [सं० पूर्व+ठञ्—इक] १. जो पूर्व में अर्थात् पहले हुआ हो। २. जो पूर्व में अर्थात् पहले किया जाने को हो।
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पौल  : स्त्री०=पोल (बड़ा द्वार)।
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पौलना  : स० [?] काटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पौला (भद्दा जूता)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौलस्ती  : स्त्री० [पुलस्त+अण, ङीप्] रावण की बहन, शूर्पणखा।
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पौलस्त्य  : पुं० [सं० पुलस्त+यञ्] [स्त्री० पौलस्त्यी] १. पुलस्त्य का पुत्र या उनके वंश का पुरुष। २. रावण, विभीषण और कुंभकर्ण ३. कुबेर। ४. चन्द्रमा।
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पौला  : पुं० [हिं० पाँव, पाड+ला (प्रत्य०)] एक प्रकार की खड़ाऊँ जिसमें खूँटी नहीं होती, बल्कि छेद में बँधी हुई रस्सी में अँगूठा फँसा रहता है। पुं० [हिं० पाँव+ला (प्रत्य०)] [स्त्री० अल्पा० पौली] १. एक तरह का देहाती भद्दा जूता। (पश्चिम) २. जूता।
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पौलिया  : पुं०=पौरिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौलिश  : वि० [यू० पालस=एक यूनानी ज्योतिषी] पुलिस या पालस नामक यूनानी ज्योतिषी का (ज्योतिषिक सिद्धान्त)।
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पौली  : स्त्री० [सं० प्रतोली; पा० पओली] पौरी। ड्योढ़ी। स्त्री० [हिं० पाँव, पाउ+ली (प्रत्य०)] १. पैर का वह भाग जो खडे होने पर जमीन से आड़ा लगा रहता है। एड़ी से लेकर उँगलियों तक का भाग। पैर का तलुआ। २. चलने से जमीन पर पड़नेवाला पैर का निशान। पद-चिह्र।
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पौलुषि  : पुं० [सं० पुलुष+इञ्] १. पुलुवंश में उत्पन्न व्यक्ति। २. सत्ययज्ञ नामक एक ऋषि जो पुलु ऋषि के वंश में उत्पन्न हुए थे। (शतपथ ब्राह्मण)
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पौलोम  : वि० [सं० पुलोमन्+अण्] [स्त्री० पौलोमी] पुलोम-संबंधी। पुलोम का। पुं० १. पुलोमा ऋषि का अपत्य या वंशज। २. उपनिषद् काल में, दैत्यों की एक जाति या वर्ग।
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पौलोमी  : स्त्री० [सं० पौलोम+ङीप्] १. इंद्राणी। २. महर्षि भृगु की पत्नी।
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पौल्कस  : वि० [सं० पुल्कस+अण्] पुल्कस (एक संकर जाति) जाति संबंधी। पुल्कसों का। पुं० पुल्कस जाति का व्यक्ति।
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पौवा  : पुं०=पौआ। (देखें)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौश्चलेय  : पुं० [सं० पुंश्चली+ढक्—एय] पुंश्चली या कुलटा का पुत्र।
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पौंश्चल्य  : पुं० [सं० पुंश्चली+ष्यञ्] पुंश्चली होने की अवस्था या भाव। स्त्री का व्यभिचार। छिनाला।
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पौष  : पुं० [सं०पुष्य+अण्,य-लोप] विक्रम संवत् का दसवाँ महीना। उसमें पड़नेवाली पूर्णमासी पुण्य नक्षत्र में होती है।
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पौष्कर  : वि० [सं० पुष्कर+अण्] पुष्कर संबंधी। पुष्कर का। पुं० १. पुष्करमूल। २. कमल की नाल। मृणाल। भसीड़। ३. स्थल-पद्म ४. एरंड या रेंड की जड़।
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पौष्कल  : पुं० [सं० पुष्कल+अण्] एक तरह का अनाज।
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पौष्कल्य  : पुं० [सं० पुष्कल+ष्यञ्] १. पुष्कल होने की अवस्था या भाव। २. संपूर्णता।
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पौष्टिक  : वि० [सं० पुष्टि+ठक्—इक] १. शरीर का बल और वीर्य बढ़ाकर उसे पुष्ट करनेवाला (पदार्थ)। जैसे—पौष्टिक औषध, पौष्टिक भोजन। पुं० १. ऐसे कर्म जिनसे धन, जन आदि की वृद्धि होती हो। २. वह कपड़ा जो बच्चे का मुंडन हो चुकने पर उसके सिर पर ओढ़ाया जाता है।
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पौष्ण  : वि० [सं० पूषन्+अण्, उपधा-लोप] पुषा देवता संबंधी। पूषा देवता का। पुं० रेवती नक्षत्र।
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पौष्प  : वि० [सं० पुष्प+अण्] पुष्प-संबंधी। फूल का। पुं० १. फूलों के रस से बनाया जानेवाला मद्य। २. पुष्प-रेणु। पराग।
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पौष्पक  : पुं० [सं० पुष्पक+अण्] पीतल के कसाव से तैयार किया जानेवाला एक तरह का अंजन। कुसुमांजन। पुष्पांजन।
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पौसला  : पुं० [सं० पयःशाला] वह स्थान जहाँ लोगों को परोपकार की दृष्टि से पानी पिलाया जाता है। प्याऊ। क्रि० प्र०—चलाना।—बैठना।
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पौसार  : स्त्री० [हिं० पाँव] करघे में लकड़ी का वह डंडा जो ताने और राछ के नीचे लगा रहता है। इसी को दबाकर राछ ऊँची-नीची की जाती है।
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पौहर  : पुं०=प्रहर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पौहारी  : वि० [सं० पयस्=दूध+आहार] जिसका आहार केवल दूध हो। पुं० वह जो केवल दूध पीकर रहता हो, अन्न न खाता हो।
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