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शब्द का अर्थ

प्रतिमुख सन्धि  : स्त्री० [सं० मयू० स०] साहित्य में, रूपक (नाटक) की पाँच प्रकार की सन्धियों में से दूसरी सन्धि जिसमें ‘विन्दु’ नामक अर्थ नामक अर्थ-प्रकृति और ‘प्रयत्न’ नामक अवस्था का मिश्रण होता है। मुख-सन्धि में जो बीज बोया जाता है, उसके विकास का आरंभ इसी में दिखाई देता है। विलास, परिसर्प, विद्युत्, तपन, नर्म, नर्मद्युति, प्रगमन, विरोध, पर्यपासुन, पुप्प, वज्र, उपन्यास और वर्ण-संहार इसके १३ अंग कहे गये हैं जो प्रायः प्रयोग में नहीं लाये जाते।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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