शब्द का अर्थ
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सस :
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पुं० [सं० शशि] चंद्रमा। शशि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [सं० शशक] खरगोश। पुं० [सं० शस्य] १. अनाज। धान्य। २. खेती-बारी। ३. फसल। ४. हरियाली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससक :
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पुं० [सं० शशक] १. खरगोश। २. रहस्य संप्रदाय में, (क) जीव या आत्मा। (ख) ओंकार शब्द। |
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ससंकना :
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अ०=सशंकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससकना :
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अ० १.=ससंकना। २.=सिसकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससत :
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अव्य० [सं० स+सत्य] सचमुच। वस्तुतः। उदाहरण—साखियात गुणमै ससत।—प्रिथीराज। |
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ससन :
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पुं० [सं०√सस् (हिसा करना)+ल्युट—अन] [भू० कृ० ससित] यज्ञ के बलि-पशु का हनन बलिदान। पुं० [सं० श्वसन] १. साँस। २. उच्छ्वास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससना :
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स० [सं० ससन] १. यज्ञ में पशु का बलिदान करना। २. मार डालना। वध करना। अ० १. बलिदान होना। २. मारा जाना। अ० [सं० श्वसन] सांस लेना। अ० १. =ससंकना। २. =सिसकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससमा :
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पुं० [सं० शशि] चन्द्रमा। उदाहरण—प्रकट परिपूरन ससमाष।—भगवत रसिक। |
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ससरना :
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अ० [सं० सरण] सरकना। खिसकना। |
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ससवाना :
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स० [हि० ससना का प्रे०] १. सशंकित करना। २. भयभीत करना। डरवाना। स० [सं० ससन] हत्या कराना। |
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ससहर :
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पुं० [सं० शशधर] चन्द्रमा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससा :
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पुं० [सं० शशा] खरगोश। शसक। पुं०=शशि (चन्द्रमा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससाना :
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स० [सं० सशंक] १. सशंकित करना। २. बेचैन या विकल करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स० [सं० शासन] १. दंड देना। २. कष्ट देना। अ० १. =ससंकना। २. =सिसकना। |
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ससि :
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पुं०=शशि (चंद्रमा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससि-गोती :
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पुं० [सं० शशि+गोत्र] मोती। उदाहरण—हार लागि बेधा ससि-गोती।—नूर मुहम्मद। |
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ससिअर :
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पुं०=शशिधर (चंद्रमा)। उदाहरण—अनु धनि तूँ ससिअर निसि माहाँ।—जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससिता :
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स्त्री०=शिशुता (बचपन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससिधर :
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पुं०=शशधर (चंद्रमा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससिभान :
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पुं०=शशुभान (चंद्रमा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससिहर :
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पुं०=शशिधर (चंद्रमा)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)। |
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ससी :
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पुं०=शशि (चन्द्रमा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससीम :
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वि० [सं० स+सीमा] [भाव० ससीमता] जिसकी सीमा हो या नियत हो। सीमित। (लिमिटेड)। |
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ससुर :
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पुं० [सं० श्वसुर] १. विवाहित व्यक्ति के संबंध के विचार से उसकी पत्नी (या पति) का पिता। २. संबंध के विचार से ससुर के समान और उसके स्थान पर होनेवाला व्यक्ति। जैसा—चचिया ससुर, ममिया ससुर। |
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ससुरा :
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पुं० [सं० श्वसुर] १. श्वसुर। ससुर। २. एक प्रकार की गाली। जैसा—उसससुरे को मै क्या समझता हूँ। ३. दे० ‘ससुराल’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससुरार :
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स्त्री०=ससुराल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ससुराल :
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स्त्री० [सं० श्वसुरालय] १. श्वसुर का घर। पति या पत्नी के पिता का घर। २. लाक्षणिक अर्थ में, ऐसा घर जहाँ पहुँचने पर पका-पकाया भोजन ठाठ से मिलता हो। ३. कारागृह। जेलखाना (गुंडे और बदमाश)। पद—ससुराल का कुत्ता=वह दामाद जो ससुराल में पड़ा रहता हो। |
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ससों :
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स्त्री०=सरसों। |
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सस्ता :
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वि० [सं० स्वस्थ] [स्त्री० सस्ती] १. (पदार्थ) जिसका मूल्य अपेक्षया साधारण से कुछ कम हो। २. (पदार्थ) जिसके मूल्य में पहले की अपेक्षा कमी हो। जिसका भाव उतर गया हो। ३. जो बहुत ही थोड़े व्यय से अथवा सहज में मिल जाय। जैसा—सस्ता यश। ४.जिसका महत्व बहुत ही कम या प्रायः नहीं के समान हो। जैसा—सस्ता अनुवाद, सस्ता परिहास। |
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सस्ताना :
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अ० [हि० सस्ता+ना (प्रत्य)] किसी वस्तु का कम दाम पर बिकना। सस्ता हो जाना। स० भाव कम करना। सस्ता करना। |
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सस्ती :
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स्त्री० [हि० सस्ता+ई (प्रत्यय)] १. सस्ते होने की अवस्था या भाव। सस्तापन। २. ऐसा समय जब सब चीजें अपेक्षया कम मूल्य पर बिकती हो। वि० स्त्री हि० सस्ता का स्त्री। |
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सस्त्रीक :
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वि० [सं० स० त०] जिसके साथ उसकी पत्नी या स्त्री हो। सपत्नीक। |
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सस्मित :
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वि० [सं०] मुस्कराहट या हँसी से युक्त। जैसा—सस्मित मुखारविद। क्रि० वि० मस्कराते हुए। |
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सस्य :
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पुं० [सं० शस्य] १. अनाज। धान्य। २. पौधा, वृक्षों आदि का उत्पादन। ३. शस्त्र। हथियार। ४. विशेषता। गुण। |
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सस्यक :
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पुं० [सं० सस्य+कन्] १. बृहत्संहिता के अनुसार एक प्रकार की मणि। २. असि। तलवार। ३. शस्य। धान्य। ४. साधु व्यक्ति। वि० गुणों या विशेषताओं से युक्त। |
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सस्वेदा :
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स्त्री० [सं० अव्य० स] ऐसी कन्या जिसका हाल ही में कौमार्य भंग हुआ हो। दूषित कन्या। |
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