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सिंह  : पुं० [सं०] [स्त्री० सिंहनी] १. बिल्ली की जाति का, पर उससे बहुत बड़ा एक प्रसिद्ध हिंसक जन्तु जो अपने वर्ग में सबसे अधिक पराक्रमी, बलवान और देखने में भव्य होता है। इसकी गर्दन पर बड़े बड़े बाल (केसर) होते हैं। शेर बबर। केशरी। २. लोक व्यवहार में उक्त के आधार पर बल-वीर्य और श्रेष्ठता का सूचक शब्द। जैसे—पुरुष सिंह। ३. ज्योतिष में, मेष आदि बारह राशियों में से पाँचवी राशि। ४. छप्पय छंद के सोलहवें भेद का नाम। ५. वास्तुकला में ऐसा प्रासाद जिसमें बारह कोनों पर सिंह की मूर्तियाँ बनी होती थीं। ६. एक प्रकार का आभूषण जो रथ के बैलों के माथे पर पहनाया जाता था। ७. वर्तमान अवसर्पिणी के २४वें अर्हत् का चिन्ह जो लोग रथ यात्रा आदि के समय झंडों पर बनाते हैं। ८. दिगम्बर जैन साधुओं के चार भेदों में से एक। ९. संगीत में एक प्रकार का राग। १॰. वेंकटगिरि का नाम। ११. एक प्रकार का कल्पित पक्षी। १२. लाल सहिंजन।
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सिंह पौर  : पुं०=सिंह-द्वार।
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सिंह-कर्ण  : पुं० [सं०] खिड़की या गवाक्ष का कोना।
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सिंह-केसर  : पुं० [सं० ष० त०] १. सिंह की गर्दन के बाल। २. फेनी नामक पकवान का पुराना नाम। ३. बकुल। मौलसिरी।
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सिंह-घोष  : पुं० [सं० ष० त० ब० स० व०] एक बुद्ध का नाम।
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सिंह-तुंड  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार की विकट मछली जो नदियों से सटी हुई चट्टानों की दरारों में रहती हैं।
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सिंह-द्वार  : पुं० [सं०] १. प्राचीन भारतीय वास्तु में, किले नगर या महल का वह प्रधान और बड़ा द्वार, जिसकी बाहरी तरफ दोनों ओर सिंह की आकृतियाँ बनी होती थीं। २. बड़ा और मुख्य द्वार। सदर फाटक।
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सिंह-नंदन  : पुं० [सं०] संगीत में, ताल से साठ मुख्य भेदों में से एक।
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सिंह-नाद  : पुं० [सं०] १. शेर की गरज या दहाड़। २. प्रतियोगिता, युद्ध आदि के समय गरजकर की जीने वाली ललकार। जोरदार शब्दों में ललकार कही जाने वाली बात। ३. एक प्रकार का वर्णवृत्त। जिसके प्रत्येक चरण में क्रम से सगण, जगण, सगण, सगण और एक गुरु वर्ण होता है। इसे कलहंस और नंदिनी भी कहते हैं। ४. संगीत में, एक प्रकार का ताल। ५. शिव का नाम। ६. बौद्धों में धर्मिक ग्रन्थों आदि का होने वाला पाठ।
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सिंह-पर्णी  : स्त्री० [सं०] माषपर्णी ।
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सिंह-पिण्पली  : स्त्री० [सं०] सिंहली पीपल।
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सिंह-पुच्छ  : पुं० [सं०] पिठवन। पृश्निपर्णी।
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सिंह-पुच्छी  : स्त्री० [सं०] १. चित्रपर्णिका या चित्रपर्णी। २. बन उड़द। माषपर्णी। ३. पिठवन। पृश्निपर्णी।
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सिंह-पुरुष  : पुं० [सं० उपमि० स०] १. सिंह के समान पराक्रमी पुरुष। २. जैनियों के नौ वासुदेवों में से एक।
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सिंह-पुष्पी  : स्त्री० [सं०] पृश्निपर्णी। पिठवन।
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सिंह-भैरवी  : स्त्री० [सं०] संगीत में, भैरवी रागिनी का एक प्रकार या भेद।
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सिंह-मल  : पुं० [सं०] एक प्रकार की मिश्र धातु। पंच-लौह।
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सिंह-मुख  : वि० [सं० ब० स०] जिसकी मुख की आकृति शेर की मुख की आकृति के जैसी होती हो। पुं० १. शिव का एक गण। २. एक राक्षस।
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सिंह-मुखी  : वि० [सं०] सिंह-मुख। स्त्री० १. अड़ूसा। २. बाँस। ३. बन उड़द। ४. एक प्रकार की खारी मिट्टी। ५. काली निर्गुण्डी या सँभालू।
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सिंह-वाहना  : स्त्री० [सं० ब० स०] दुर्गा (जिनका वाहन सिंह है)।
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सिंह-वाहिनी  : स्त्री० [सं०] १. सिंह पर सवारी करने वाली दुर्गा। २. संगीत में कर्णाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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सिंह-विक्रम  : वि० [सं० ब० स०] घोड़ा जिसमें सिंह के समान शक्ति हो। पुं० १. घोड़ा। २. संगीत में, एक प्रकार का ताल।
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सिंह-विक्रांत  : पुं० [सं०] १. शेर की चाल। २. शेर के समान पराक्रमी और वीर पुरुष। ३. घोड़ा। ४. ऐसे दंडक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण और सात अथवा सात से अधिक यगण हों।
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सिंह-विक्रीड  : पुं० [सं०] दंडंक वृत्त का एक भेद जिसमें नौ से अधिक यगण होते हैं। इसका प्रयोग अधिकता से प्राकृत भाषा के कवियों ने किया है।
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सिंह-विक्रीडित  : पुं० [सं०] १. योग में एक प्रकार की समाधि। २. संगीत में, एक प्रकार का ताल। ३. दे० ‘सिंह-विक्रीड’।
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सिंह-विजृंभित  : पुं० [सं० ब० स० उपमि० स०] बौद्ध मत में, एक प्रकार की समाधि।
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सिंह-हनु  : वि० [सं० ब० स०] जिसकी दाढ़ सिंह के समान हो। पुं० गौतम बुद्ध के पितामह का नाम।
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सिंहकर्मा (र्मन्)  : वि० [सं० ब० स०] सिंह के समान पराक्रम दिखाने वाला। पराक्रमी। वीर।
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सिंहग  : पुं० [सं० सिंह√गम् (जाना)+ड] शिव का एक नाम।
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सिंहच्छदा  : स्त्री० [सं० ब० स०] सफेद दूब।
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सिंहनादक  : पुं० [सं० सिंह√नद् (ध्वनि करना) ण्वुल्-अक्, ब० स०] सिंधी नामक बाजा।
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सिंहनादी (दिन्)  : वि० [सं० नाद+इन्] [स्त्री० सिंहनादिनी] १. जो सिंहनाद करता हो। २. जो सिंह के समान गर्जना करता हो। पुं० एक बोधिसत्व का नाम।
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सिंहनी  : स्त्री० [सं०] १. शेर की मादा। शेरनी। २. एक प्रकार का छंद जिसके चारों चरण में क्रम से १२, १८, २॰ और २२ मात्राएँ होती हैं। यह क्रम उलट देने पर जो रूप होता है उसे गाहिनी कहते हैं।
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सिंहयाना  : स्त्री० [सं० ब० स०] सिंह पर सवारी करने वाली, दुर्गा।
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सिंहल  : पुं० [सं०] [वि० सिंहली] १. पीतल। २. टीन। ३. प्राचीन भारत के दक्षिण का एक द्वीप जो कुछ लोगो के मत में आधुनिक ‘लंका’ (देश) है। लंका-द्वीप। ४. उक्त देश का निवासी। सिंहली।
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सिंहलक  : वि० [सं० सिंहल+कन] सिंहल-संबंधी। सिंहल का। पुं० १. पीतल। २. दारचीनी।
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सिंहला  : स्त्री० [सं० सिंहल-टाप्] सिंहल द्वीप लंका। २. राँगा। ३. पीतल। ४. छाल या बकला। ५. दारचीनी।
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सिंहली  : वि० [सं० सिंहल+हिं० ई० (प्रत्य०)] सिंहल द्वीप में होने वाला। लंका-संबंधी पुं० १. सिंहल-द्वीप का निवासी। २. सिंहल द्वीप का हाथी स्त्री० सिंहल द्वीप की भाषा।
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सिंहली पीपल  : स्त्री० [सं० सिंह-पिप्पली] सिंहल में होने वाली एक प्रकार की लता जिसके बीज दवा के काम में आते हैं।
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सिंहलील  : पुं० [सं०] १. संगीत में, एक प्रकार की ताल। २. कामशास्त्र में एक प्रकार का आसन या रति-बंध।
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सिंहस्थ  : वि० [सं० सिंह√स्था (ठहरना)+क] सिंह राशि में स्थित कोई (ग्रह)। जैसे—सिंहस्थ वृहस्पति। पुं० वह समय जब वृहस्पति सिंह राशि में होता है, और इसलिये तब विवाह आदि कुछ शुभ कार्य वर्जित हैं।
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सिंहा  : स्त्री० [सं०] १. करेमू का साग। २. कटाई। भटकटैया। ३. बहती। बन-भाँटा। पुं० १. नाग देवता। २. सिंह लग्न। ३. वह समय जब सूर्य इस लग्न में रहता है। पुं०=नर-सिंघा (बाजा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सिंहाण (क)  : पुं० [सं० सिंघ+आनच् पृषो० सिद्ध] १. लोहे पर लगने वाला जंग या मोर्चा। २. नाक में से निकलने वाला मल। रेंट। सीड़।
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सिंहानन  : पुं० [सं० ब० स०] १. काला सँभालू। काली निर्गुंडी। २. अड़ूसा। वि० सिंह के समान मुख वाला।
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सिंहार-हार  : पुं०=हर-सिंगार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सिंहारव  : पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाटक पद्धति का एक राग।
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सिंहाली  : स्त्री० [सं० सिंह+लच्+ङीप] १. सिंहली पीपल। सैंहली। २. दे० ‘सिहली’।
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सिंहावलोकन  : पुं० [सं०] १. सिंह की तरह पीछे देखते हुए आगे बढ़ना। २. किये हुए कामों या बीती हुई बातों का स्वरूप जानने या बतलाने के लिए उन पर द्रष्टिपात करना। ३. संक्षेप में पिछली बातों का दिग्दर्शन या वर्णन। (रिट्रास्पेक्शन) ४. कविता में ऐसी रचना जिसमें किसी चरण के अन्त में आये हुए कुछ शब्दों से फिर उसके बाद वाले चरण का आरंभ किया जाता है। जैसे—यदि पहले चरण के अंत में ‘पारिजात’ हो और उसके बाद वाले चरण का आरंभ भी ‘पारिजात’ से हो तो यह सिंहावलोकन कहलायगा। ५. साहित्य में, यमक अलंकार का एक प्रकार या भेद जिसमें छंद का अंत भी उसी शब्द से किया जाता है जिससे उसका आरंभ होता है।
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सिंहावलोकनिक  : वि० [सं०] १. सिंहावलोकन के रूप में या उसके सिद्धान्त से संबंध रखने वाला। जिसमें सिंहावलोकन होता हो। (रिट्रासपेक्टिव) २. दे० ‘प्रतिवर्ती’।
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सिंहावलोकित  : भू० कृ० [सं०] जिसका या जिसके संबंध में सिंहावलोकन हुआ हो। (रिट्रास्पेक्टेड)
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सिंहासन  : पुं० [सं० सिंह+आसन, मध्य० स०] १. राजाओं के बैठने या देवमूर्तियों की स्थापना के लिये बना हुआ एक विशेष प्रकार का आसन जो चौकी के आकार का होता है और जिसके दोनों ओर शेर के मुख की आक्रति बनी होता है। २. देवताओं का एक प्रकार का आसन जो कमल के पत्ते के आकार का होता है। ३. काम-शास्त्र में, सोलह प्रकार के रति बंधों में से एक। ४. चंदन, रोली आदि का वह टीका या तिलक जो दोनों के लिये बना हुआ एक विशेष प्रकार का आसन जो चौकी के आकार का होता है और जिसके दोनों ओर शेर के मुख की आक्रति बनी होता है। २. देवताओं का एक प्रकार का आसन जो कमल के पत्ते के आकार का होती है। ३. काम-शास्त्र में, सोलह प्रकार के रति बंधों में से एक। ४. चंदन, रोली आदि का वह टीका या तिलक जो दोनों भौंहों के बीच में लगाया जाता है। ५. लोहे की कीट। मंडूर। ६. फलित ज्योतिष में, एक प्रकार का चक्र जिसमें मनुष्य की आकृति में विभक्त २७ कोठे या खाने होते हैं। इन कोठों या खानों में नक्षत्रों के नाम भरे जाते हैं और उनसे शुभाशुभ फल जाना जाता है।
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सिंहास्य  : पुं० [सं० ब० स०] १. अड़ूसा। २. कचनार। ३. एक बड़ी मछली।
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सिंहिका  : स्त्री० [सं०] १. दाक्षायणी देवी की एक मूर्ति का रूप। २. एक राक्षसी जो कश्यप की पत्नी और राहू की माता थी। ३. ऐसी कन्या जिसके घुटने चलने के समय आपस में टकराते हों और इसीलिये जो विवाह के अयोग्य कही गई है। ४. शोभन नामक छंद। ५. कंटकारी। भटकटैया। ६. अड़ूसा। ७. वन-भंटा।
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सिंहिकेय  : पुं० [सं० सिंहिका+ढक्-एय] सिंहिका (राक्षसी) के पुत्र राहू।
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सिंही  : स्त्री० [सं०] १. सिंह या शेर की मादा। शेरनी। सिंहनी। २. आर्या नामक छंद का एक भेद। ३. राहु की माता, सिंहिका। ४. अड़ूसा। ५. थूहड़। ६. बन-मूँग। ७. पीली कौड़ी। ८. नर-सिंघा नाम का बाजा। स्त्री०=सिंगी।
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सिंहेश्वरी  : स्त्री० [सं० ष० त०] दुर्गा।
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सिंहोड़  : पुं०=सेहुँड़।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सिंहोदरी  : वि० स्त्री० [सं० ब० स०] सिंह की कमर की तरह पतली कमर वाली (सुन्दरी स्त्री)।
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सिंहोन्नता  : स्त्री० [सं० ब० स० उपमि० स०] बसंत-तिलका छंद का दूसरा नाम।
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