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करुण  : वि० [सं०√कृ (करना) + उनन्] १. करुणा से युक्त। करुणा हो। दुःखद। जैसे—करुण दृश्य। पुं० १. साहित्य में नौ रसों में से एक जिसके अधिष्ठाता देवता वरुण कहे गये है। विशेष— मन में इस रस का संचार उस विकट दुःख के कारण होता है जो वियोग। शोक आदि से उत्पन्न होता है। इसका आलंबन वियोग, उद्दीपन वियुक्त व्यक्ति की किसी वस्तु का दर्शन या उसकी चर्चा और अनुभाव रोना-कलपना आदि कहे गये हैं। २. एक बुद्ध का नाम। ३. परमेश्वर। ४. एक प्राचीन तीर्थ। ५. करना नीबू या उसका पेड़।
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करुणा  : स्त्री० [सं० करुण+टाप्] किसी असमर्थ, असहाय, दुःखी अथवा संकट में पड़े हुए व्यक्ति को देखकर मन में होनेवाली उसके दुःख की ऐसी अनुभूति जो उसका कष्ट या दुःख दूर करने की प्रेरणा करती हो। (कम्पैशन)
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करुणा  : वि० =कड़ुआ। पुं० =करुआ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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करुणा-दृष्टि  : स्त्री० [ष० त०] ऐसी दृष्टि जिससे करुणा प्रकट होती हो।
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करुणा-निधान (निधि)  : वि० [ष० त०] जिसका हृदय करुणा से भरा हो। दूसरों पर सदा करुणा करनेवाला।
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करुणाकर  : वि० [सं० करुणा-आकर ष० त०] दूसरों के दुःख से दुःखी होनेवाला अर्थात् अत्यन्त दयालु।
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करुणामय  : विं० [सं० करुणा+मयट्] करुणा से युक्त या भरा हुआ।
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करुणार्द्र  : विं० [सं० करुणा-आर्द्र, तृ० त०] जिसका मन करुणा से आर्द्र या द्रवित हो रहा हो या हो जाता हो।
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करुणी (णिन्)  : वि० [सं० करुणा+इनि] करुणा या दया का अधिकारी का पात्र। जिस पर करुणा की जानी चाहिए।
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