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कसना  : स० [सं० कर्षण; प्रा० कस्सण] १. बंधन आदि इस प्रकार कसकर खींचना कि वह और भी दृढ़ या पक्का हो जाय। जकड़ने या बाँधने के लिए बंधन कड़ा करना। जैसे—चलने के लिए कमर कसना। २. कोई चीज कहीं रखकर उसे दृढ़ता से बाँधना। जैसे—घोड़े पर जीन या साज कसना। पद—कसकर=(क) अच्छी तरह और खूब जोर से दबाते हुए। जैसे—गठरी या बिस्तर कसकर बाँधना। उदा०—कस-कस बाँधु सौत, ढीले बाँधूँ बालमा।—स्त्रियों का गीत। (ख) पूरा जोर या शक्ति लगाकर। जैसे—कसकर थप्पड़ या बेंत लगाना। (ग) पक्का और पूरा, बल्कि इससे भी कुछ अधिक। जैसे—वह गाँव यहाँ से कसकर चार कोस है। ३. किसी को इस प्रकार जकड़कर और दृढ़तापूर्वक बंधन या वश में लाना अथवा किसी स्थान पर स्थित करना कि वह तनिक भी इधर-उधर न होने पावे। जकड़कर बाँधना, बैठाना या लगाना। जैसे—(क) किसी कल या यंत्र के पुरजे और पेंच कसना। (ख) घोड़े पर सवारी करना। ४. आवश्यक उपकरणों आदि से युक्त करके अपने काम के लिए तैयार करना। जैसे—शेर पर चलाने के लिए बंदूक कसना। पद—कसा-कसाया=सब तरह से तैयार और दुरुस्त। पूर्णरूप से प्रस्तुत। ५. किसी आधान या पात्र में कोई चीज ठूँस या दबाकर उसे अच्छी तरह या पूरा भरना। जैसे—गाड़ी में मुसाफिर कसना, बोरे में बरतन कसना। ६. तलवार या उसके लोहे की उत्तमता परखने के लिए उसे जगह-जगह दबाना या लचाना। अ० १. बंधन का इस प्रकार कड़ा होना या खिंचना कि वह अधिक जकड़ जाय या पक्का हो जाय। जैसे—रस्सी अधिक कस गई है, जरा ढीली कर दो। मुहा०=कसकर रहना=अपने आप को वश में रख कर आचरण या व्यवहार करना। उदा०—रहि न सक्यौ, कसु कर रह्यौ, बस करि लीन्हों भार।—बिहारी। २. उक्त क्रिया के फलस्वरूप बँधे हुए अंग, पदार्थ आदि का चारों ओऱ से बहुत दबना या जकड़ा जाना। जैसे—कमर बहुत कस गई है; पेटी जरा ढीली कर दो। ३. पहनने के कपड़ों आदि का इतना छोटा या तंग होना कि उससे कोई अंग दबे या अच्छी तरह इधर-उधर न हो सके। जैसे—इस कुरते का गला जरा कसता है। ४. आधान या पात्र का इतना अधिक भरा होना कि उसमें कुछ भी अवकाश या रिक्त स्थान न रह जाय। जैसे—(क) सारा कमरा आदमियों से कस गया था। (ख) मटका अचार से कसा हुआ है। ५. सब तरह से तैयार या दुरुस्त किया हुआ। पूर्ण रूप से प्रस्तुत। उदा०—डोली-डंडा कसा धरा, मैं नहीं जाती री, मेरा माँ।—स्त्रियों का गीत। पद—कसा-कसाया=सब तरह से तैयार या प्रस्तुत। पुं० [स्त्री० अल्पा० कसनी] १. वह चीज जिससे कोई दूसरी चीज कस या दबाकर बाँधी जाय। कसने का उपकरण या साधन। जैसे—पट्टा, रस्सी आदि। २. विस्तृत अर्थ में किसी चीज का गिलाफ या बेठ। स० [सं० कषण] १. जोर से घिसना या रगड़ना। जैसे—पत्थर पर चंदन कसना। २. छोटे-छोटे टुकड़े करने के लिए किसी चीज पर रगड़ना। जैस—कद्दूकस पर कद्दू कसना। ३. सोना परखने के लिए उसका कुछ अंश कसौटी पर रगड़ना। जैसे—सोना जाने कसे, आदमी जाने बसे।——कहा०। ४. भले-बुरे की परख करने के लिए किसी प्रकार की कठिन या विकट परीक्षा लेना। उदा०—सूर प्रभु हँसत अति प्रीति उर में बसत, इन्द्र को कसत हरि जगत धाता।—सूर। ५. खोआ बनाने के लिए दूध को औटकर गाढ़ा करते हुए उसे कड़ाही में बराबर रगड़ते हुए चलाना। ६. घी, तेल आदि में कोई चीज अच्छी तरह तलना या भूनना। ७. किसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए किसी कष्ट या क्लेश पहुँचाना। पीड़ित करना। जैसे—तपस्या से शरीर कसना। उदा०—भरत भवनि बसि तप तन करहीं।—तुलसी। ८. अपने लाभ या हित के लिए ऐसा उपाय या कार्य करना, जिससे दूसरा कोई दबे या घाटे में रहे अथवा उसे कष्ट हो। जैसे—(क) उन्हें जरा और कसो तो बाकी रुपए भी मिल जायेंगे। (ख) जो सस्ता सौदा बेचेगा, वह तौल में जरूर कसेगा। (ग) इतना दाम कसना ठीक नहीं। ९. शरीर को कष्ट सहने के योग्य बनाना। उदा०—करहिं जोग-जप-तन कसहीं।—तुलसी। पुं० [?] एक प्रकार का जहरीला मकड़ा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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