शब्द का अर्थ
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कुंड :
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पुं० [सं०√कुंण (शब्द करना)+ड] १. छोटा तालाब। २. नदियों आदि में थोड़े-से घेरे में अधिक गहरा स्थान। ३. किसी स्थान पर किसी प्रकार का कुछ गहरा स्थान। उदाहरण—गढ़ तर सुरँग कुंड अवगाहा।—जायसी। ४. चौंड़े मुँह का गहरा बर्तन। कुंडा ५. प्राचीन काल का अनाज नापने का एक बड़ा पात्र। ६. होम करने के लिए खोदा हुआ गड्ढा या मिट्टी का बना हुआ वैसा पात्र। हवन कुंड। ७. बटलोई। ८. कमंडलु। ९. सधवा स्त्री का ऐसा पुत्र जो उसके जार या परपुरुष से उत्पन्न हुआ हो। जारज पुत्र। १॰. शिव का एक नाम। ११. धृतराष्ट के एक पुत्र का नाम। १२. खप्पर। १३. ज्योतिष में चंद्र-मंडल का एक प्रकार का रूप। पुं० [?] १. पूला गट्टा। २. लोहे की टोप। ३. हौंदा। |
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कुंड-कीट :
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पुं० [उपमि० स०] १. ब्राह्मणी का जारज पुत्र। २. वह जिसने बिना विवाह किये किसी स्त्री को घर में रख लिया हो। ३. चार्वाक-दर्शन का अनुयायी या नास्तिक। |
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कुंड-कील :
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पुं० [उपमि० स०] नीच आदमी। |
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कुंड-गोलक :
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पुं० [ब० स०] काँजी। |
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कुँड-पुजी :
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स्त्री० [हिं० कुँड़+पुजी=पूजना]=कुँड-मुदनी। |
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कुँड-मुँदनी :
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स्त्री० [हिं० मुँड+मुदनी-मूँदना] रबी की बोआई समाप्त होने पर किसानों का मनाया जानेवाला उत्सव। |
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कुंडकोदर :
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वि० [सं० कुंडक, कुंड+कन्, कुंडक-उदर, ब० स०] घड़े जैसे पेटवाला। पुं० शिव का एक गण। |
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कुंडपायिनामयन :
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पुं० [सं० कुंडपायिनाम्-अयन, अलुक्० स०] एक यज्ञ जिसके लिए यजमान २१ रात्रि तक दीक्षित रहता था। |
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कुंडपायी (यिन्) :
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पुं० [सं० कुंड√पा (पीना)+णिनि] १. ऐसा यजमान जो सोलह ऋत्विजों से सोमसत्र कराकर कुंडाकार चमसे से सोमपान कर चुका हो। २. उक्त के वंशज या शिष्य। |
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कुँड़रा :
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पुं० [सं० कुंडल] [स्त्री० अल्पा, कुँडरी] १. किसी वस्तु की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर मंडलाकार खींची हुई रेखा। २. उक्त प्रकार की वह रेखा जिसके अंदर खड़े होकर लोग शपथ करते हैं। ३. कई फेरे देकर मंडलाकार लपेटी हुई रस्सी या कपड़ा जिसे सिर पर रखकर बोझ या घड़ा आदि उठाते हैं। इँडुवा। गेंडुरी। ४. कुंडा। घड़ा। |
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कुंडल :
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पुं० [सं० कुंड√ला (आदान)+क] १. कान में पहना जानेवाला मंडलाकार प्रसिद्ध गहना, जो बड़े बाले की तरह होता है। २. चंद्रमा या सूर्य के चारों ओर दिखाई देनेवाले बादलों का गोल घेरा। ३. लकड़ी, लोहे आदि का कोई गोल घेरा या बंद, जो किसी चीज के चारों ओर अथवा मुँह पर सुरक्षा आदि के लिए लगाया जाता है। बंद। जैसे—कोल्हू, चरसे आदि का कुंडल। ४. किसी प्रकार की मंडलाकार आकृति या रचना। जैसे—साँप का कुंडल बनाकर बैठना। ५. दो मात्राओं और एक अक्षर का मात्रिक गण। (छंदशास्त्र) जैसे—मा। ६. एक सम मात्रिक छंद, जिसके प्रत्येक चरण में २२ मात्राएँ होती है और अंत में २ गुरु होते हैं। |
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कुंडलपुर :
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पुं० =कुंडिनपुर। |
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कुंडलाकार :
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वि० [सं० कुंडल-आकार, ब० स०] जिसका आकार कुंडल या गेंडुरी की तरह गोल हो। मंडलाकार। वर्त्तुल। |
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कुंडलिका :
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स्त्री० [सं० कुंडली+तन्-टाप्, ह्रस्व] १. गोल रेखा। २. जलेवी नाम की मिठाई। ३. कुंडलिया छंद। |
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कुंडलित :
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वि० [सं० कुंडल+इतच्] जो कुंडल की तरह गोलाकार रूप में स्थित हो। |
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कुंडलिनी :
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स्त्री० [सं० कुंडल+इनि-ङीष्] १. हठ योग में नाभि के पास मूलाधार के नीचे प्रायः सुषुप्त अवस्था में रहनेवाली वह शक्ति जिसे साधना में जाग्रत किया जाता है और जिसके ब्रह्मरन्ध्र में पहुँच जाने पर योगी मुक्त और अमर जीवन प्राप्त करता है। २. इमरती या जलेबी नाम की मिठाई। ३. गुडुच। गिलोय। ४. सोमलता। |
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कुंडलिया :
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स्त्री० [सं० कुंडलिका] छः चरणों का एक मात्रिक छंद,जिसके पहले दो चरणों का एक मात्रिक छंद, पहले दो चरण दोहे के और अन्तिम चार रोले के होते हैं। इसके पहले चरण का पहला शब्द छठे चरण के अंत में भी होता है। |
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कुंडली :
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स्त्री० [सं० कुंडल+ङीष्] १. किसी प्रकार की गोल आकृति, रचना या रेखा। जैसे—साँप का कुंडली मारकर बैठना। २. फलित ज्योतिष में वह गोलाकार चक्र अथवा चौकोर लिखावट जिसमें यह दिखलाया जाता है कि किसी के जन्म के समय कौन-कौन से ग्रह किस-किस लग्न या स्थान में थे जिसके आधार पर उसके सारे जीवन के शुभाशुभ फल बतलाये जाते हैं। जन्म-पत्री का मुख्य और मूल भाग। ३. कुंडलिनी। ४. गेंडुरी। ५. डफली नाम का बाजा। ६. इमरती या जलेबी नाम की मिठाई। ७. गुडुच। गिलोय। ८. केवाँच। कौंछ। ९. कचनार। पुं० [सं० कुंडल+इनि] १. साँप। २. वरुण। ३. विष्णु। ४. मोर। ५. चितकबरा हिरन। ६. कुंडल। वि० १. जो कानों में कुंडल पहने हो। २. किसी प्रकार का कुंडल धारण करनेवाला। |
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कुंडा :
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पुं० [सं० कुंड] १. चौड़े मुंह का मिट्टी का बना हुआ बड़ा मटका। २. उक्त में भरकर देवी-देवताओं को चढ़ाया जानेवाला प्रसाद अथवा संबंधियों के यहाँ भेजी जानेवाली मिठाई। पुं० [सं० कुंडल] १. किवाड़ की चौखट में लगा हुआ कोढ़ा, जिसमें साँकल फँसाते हैं। २. कुश्ती का एक दाँव,जिसमें दाँव लगानेवाले के शरीर की मुद्रा कुंडलाकार हो जाती है। पुं० [?] जहाज के अगले मस्तूल का चौथा खंड। तिरकट। ताबर डोल। |
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कुंडाला :
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पुं० [सं० कुंड] मिट्टी की वह कूँड़ी या पथरी जिसमें कलाबत्तू बनानेवाले टिकुरियों पर कलाबत्तू लपेटकर रखते हैं। |
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कुंडाशी (शिन्) :
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पुं० [सं० कुंड√अश् (भोजन करना)+णिनि] १. कुंडा। (जारज पुत्र) का अन्न खानेवाला व्यक्ति। २. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। |
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कुंडि :
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स्त्री० [सं० कुंड] लोहे का टोप। कूँड़। उदाहरण—संड-मुंड सब टूटहिं सिउँ बकतर औ कुंडि।—जायसी। |
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कुंडिक :
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पुं० [सं० ] धृतराष्ट्र का एक पुत्र। |
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कुंडिका :
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स्त्री० [सं० कुंड+कन्-टाप्, इत्व] १. पत्थर का बना हुआ बर्तन। कूँड़ी। पथरी। २. छोटा कुंड या तालाब। ३. कमंडल। ४. ताँबे का बना हुआ हवन पात्र। ५. एक उपनिषद् का नाम। |
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कुंडिनपुर :
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पुं० [सं० कुंडिन√कुंड+इनच्, कुंडिन-पुर, ष० त०] विदर्भ (बरार) का एक प्राचीन नगर। |
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कुँडिया :
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स्त्री० [सं० कुंड] शोरे के कारखाने का चौखूँटा गड्ढा। स्त्री०=कूँड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुंडी :
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स्त्री० [सं०√कुंड+इन्-ङीष्] १. बड़े कटोरे के आकार का एक प्रकार का पात्र। कूँड़ी। २. दरवाजा बंद करने की जंजीर। मुहावरा—कुंडी खटखटाना=कुंडी से खट-खट शब्द करते हुए दरवाजा खोलने का संकेत करना। ३. जंजीर या श्रंखला की कोई कड़ी। ४. किसी प्रकार की मंडलाकार रचना। छल्ला। जैसे—घड़ी या लंगर में लगी हुई कुंडी। ५. मुर्रा, भैंस, जिसके सींग छल्ले की तरह घूमे हुए होते हैं। |
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कुंडू :
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पुं० [देश] काले रंग का एक पक्षी, जिसका कंठ और मुँह सफेद तथा पूँछ पीली होती हैं। |
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कुंडोदर :
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पुं० [सं० कुंड-उदर, ब० स०] शिव का एक गण। |
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