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शब्द का अर्थ

चिड़  : स्त्री० [सं० चटक] चिडिया। पक्षी। उदाहरण–चारौं पल ग्रीधणी चिड़।–प्रिथीराज। स्त्री=चिढ़।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
चिड़चिड़ा  : वि० [हिं० चिड़चिड़ाना] [स्त्री० चिड़चिड़ी] १. (व्यक्ति) जो बिना किसी बात के अथवा बहुत ही साधारण बाते से चिढ़कर बिगड़ खड़ा होता हो। बात-बात पर कुद्ध हो जानेवाला। जैसे–रुपए-पैसे की तंगी से वे चिड़चिड़े हो गये हैं। २. (स्वभाव) जिसमें चिड़चिड़ापन हो। ३. जो चिड़चिड़े या चिट चिट शब्द करता हुआ जलता हो। जैसे–चिड़ चिड़ लकड़ी। पुं० [अनु०] भूरे रंग का एक प्रकार का छोटा पक्षी। पुं०=चिचड़ा(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चिड़चिड़ाना  : अ० [अनु०] [भाव० चिड़चिड़ाहट] १. (व्यक्ति के संबध में) जरा-सी बात से चिढ़कर क्रोध-भरी बातें कहना। नाराज होना। बिगड़ बैठना। २. (काठ या जलावन के संबंध में) जलने या जलाने पर चिड़ चिड़ शब्द होना। ३. (पदार्थ के संबंध में) ऊपरी तल का सूख कर जगह-जगह से थोड़ा बहुत उखड़ या फट जाना। जैसे–चमड़े का पट्टा या जूता चिड़चिड़ाना। स० किसी व्यक्ति को इस प्रकार अप्रसन्न या रुष्ट करना कि वह चिढ़ या बिगड़कर उलटी-सीधी बातें कहने लगे। जैसे–तुमने तो आते ही उन्हें चिड़चिड़ा दिया।
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चिड़चिड़ा़हट  : स्त्री० [हिं० चिड़चिड़ाना+हट (प्रत्य०)] १. चिड़चिड़ाने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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चिड़वा  : पुं० [सं० चिविट] हरे भिगोये या कुछ उबाले हुए धान को भाड़ में भूनकर और फिर कूटकर बनाया हुआ उसका चिपटा दाना। चिउड़ा।
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चिड़ा  : पुं० [हिं० चिड़ी का पुं०] गौरा या गौरैया पक्षी का नर।
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चिड़ाना  : स० दे० ‘चिढ़ाना’।
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चिड़ारा  : पुं० [देश०] नीची जमीन का खेत जिसमें जड़हन बोया जाता है। डबरी।
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चिड़िया  : स्त्री० [सं० चटिका, प्रा० चड़िआ या सं० चिरि=तोता] १. वह जीव जो पंखों या परों की सहायता से आकाश में उड़ता है। पक्षी। मुहावरा–चिड़िया के छिनाले में पकड़ा जाना=अकारण झंझट में पड़ना या फँसना। २. गोरैया। पद–चिड़िया का दूध=ऐसी चीज जो वास्तव में उसी प्रकार न होती हो, जिस प्रकार चिड़ियों का दूध नहीं होता। चिड़िया-नोचन=ऐसी स्थिति जिसमें चारों ओर से लोग उसी प्रकार तंग या परेशान करते हों, जैसे–चिड़िया के पर नोचे जाते हैं। ३. ऐसा मालदार असामी जिससे कुछ धन ऐंठा या ठगा जा सकता हो। ४. कोई युवती और सुन्दर परन्तु कुछ दुशचरित्रा स्त्री। (बाजारू)। पद–सोने की चिड़िया (क) बहुत बड़ा और मालदार असामी। (ख) बहुत रूपवती और सुंदर स्त्री। ५. काठ का वह डंडा जिसके दोनों ओर निकला हुआ कुछ लंबोतरा अंश होता है और जो किसी चीज के नीचे बैसाखी की तरह टेक या सहारे के लिए लगाया जाता है। जैसे–डोली या पालकी रोकने के समय डंडों के नीचे लगाई जानेवाली चिड़िया। ६. उक्त आकार का लोहे का वह टुकड़ा जो तराजू की डाँड़ी के ऊपर और नीचे लगा रहता है। ७. अँगिया, कुरती आदि में लगे हुए वे गोलाकार टुकड़े जिनमें स्त्रियों के स्तन रहते हैं। कटोरी। ८. पायजामें, लहँगे आदि का वह ऊपरी नलाकार अंश जिसमें इजारबंद या नाला डाला जाता है। नेफा। ९. ताश के चार रंगों में एक रंग जो काला और प्रायः पक्षी के आकार का होता है। चिड़ी। (शेष तीन रंग हुकुम, पान, और ईट कहलाते हैं।) १॰. एक प्रकार की सिलाई जिसमें पहले कपड़े के दोनों पल्ले सीकर तब सिलाई की ओर वाले उनके दोनों सिरों को अलग-अलग उन्हीं पल्लों पर उलट कर इस प्राकार बखिया कर देते हैं कि एक प्रकार की बेल-सी बन जाती है।
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चिड़िया-घर  : पुं० [हिं० पद] वह स्थान जहाँ अनेक प्रकार के पशु-पक्षी आदि जन-साधारण को प्रदर्शित करने के लिए एकत्र करके रखे जाते हैं। चिड़िया-खाना। (जू)।
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चिड़िया-चुनमुन  : पुं० [हिं० चिड़िया+अनु०] चिड़िया और उनकी तरह के दूसरे छोटे जीव-जंतु।
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चिड़ियाखाना  : पुं०=चिड़िया-घर।
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चिड़िहार  : पुं० [हिं० चिड़िया+हार (प्रत्यय)] चिड़िया पकड़ने वाला व्यक्ति। बहेलिया।
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चिड़ी  : स्त्री० [हिं० चिड़िया] १. चिड़िया। पक्षी। पखेरू। २. ताश का चिड़िया नामक रंग।
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चिड़ीमार  : पुं० [हिं० चिडी+मारना] चिड़ियाँ पकड़ने या फँसानेवाला। बहेलिया।
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