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चूक  : स्त्री० [हिं० चूकना] १. चूकने की क्रिया या भाव। २. अनजान मे असावधानी से अथवा प्रमाद, विस्मृति आदि के कारण होनेवाली कोई गलती या भूल। उदाहरण–छमहू चूक अनजानत केरी।–तुलसी। ३. वह अक्षर, शब्द, पद, वाक्य आदि जो कहने, पढ़ने-लिखने आदि के समय अनजान में अथवा असावधानी, जल्दी या विस्मृति के कारण छूट जाता है। (ओमिशन)। ४. छल-कपट। धोखा-फरेब। उदाहरण–अहौ हरिबलि सों चूक करी।–परमानंददास। ५. छोटा छेद या दरार। पुं० [सं० चुक्र] १. किसी खट्टे फल विशेषतः नीबू के रस से बनी एक प्रकार की बहुत तेज खटाई। २. एक प्रकार का खट्टा साग।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
चूकना  : अ० [सं० च्युत कृत] १. भूल करना। २. कहने, पढ़ने, लिखने आदि के समय कोई अक्षर शब्द, पद, बात आदि प्रायः असावधानी या विस्मृति के कारण छोड़ देना। जैसा होना चाहिए उससे भिन्न कुछ और कर या कह जाना। ३. किसी लक्ष्य पर ठीक प्रकार से संधान न कर पाना। निशाना या वार खाली जाना। ४. असावधानी, उपेक्षा आदि के कारण किसी सुअवसर का सदुपयोग करने से रह जाना। ठीक समय पर लाभ न उठा पाना। ५. न रह जाना। समाप्त होना। चुकना। उदाहरण–सतगुरु मिलै अँधेरा चूकै।–कबीर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
चूका  : पुं० [सं० चुक्र] चूक नामक खट्टा साग।
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