शब्द का अर्थ
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जीर :
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पुं० [सं०√जु (गति)+रक्, ई आदेश] १. जीरा। २. फूलों का केसर। ३. तलवार। वि० जल्दी या तेज चलनेवाला। पुं० [फा० जिरह] जिरह। कवच। वि०=जीर्ण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जीरक :
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पुं० [सं० जीर+कन्] जीरा। |
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जीरण(रन) :
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वि०=जीर्ण। |
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जीरना :
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अ० [सं० जीर्ण] १. जीर्ण या पुराना होना। उदाहरण–वह हाई वह जीरई साकर संग निवेदि।–कबीर। २. कुम्हलाना मुरझाना। ३. फटना। |
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जीरह :
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पुं०=जिरह। |
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जीरा :
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पुं० [सं० जीरक] १. एक पौधा जिसके सुगंधित छोटे फूल सुखाकर मसाले के काम में लाये जाते हैं। २. उक्त पौधे के सुखाये या सूखे हुए फूल। ३. उक्त आकार की कोई छोटी महीन लंबी चीज। ४. फूलों का केसर। |
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जीरिका :
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स्त्री० [सं०√जृ (जीर्ण होना)+रिक्, ई, आदेश+कन्-टाप्] वंशपत्री नामक घास। |
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जीरी :
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पुं० [हिं० जीरा] १. फूलों आदि का छोटा कण। २. एक प्रकार का अगहनी धान। ३. काली जीरी। |
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जीरोपटन :
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पुं० [देश०] एक पौधा और उसका फूल। |
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जीर्ण :
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वि० [सं०√जृ+क्त, ईत्व, नत्व] [स्त्री० जीर्णा] १. जो बहुत पुराना होने के कारण इतना कट-फट या टूट-फूट गया हो कि ठीक तरह से काम में न आ सकता हो। जैसे–जीर्ण दुर्ग जीर्ण वस्त्र। २. (व्यक्ति) जो बुड्ढा होने के कारण जर्जर और शिथिल हो गया हो। ३. बहुत दिनों का पुराना। जीर्ण रोग। ४. जो पुराना होने के कारण अपना महत्व गँवा चुका। जैसे–जीर्ण विचार। ५. पेट में पहुँचकर अच्छी तरह पचा हुआ। पचित या पाचित। जैसे–जीर्ण अन्न। |
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जीर्ण-ज्वर :
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पुं० [कर्म० स०] वैद्यक में, वह ज्वर जो २१ या अधिक दिनों तक आता हो। पुराना बुखार। |
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जीर्ण-दारु :
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पुं० [ब० स०] वृद्धदारक वृक्ष। विधारा। |
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जीर्ण-पत्र :
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पुं० [ब० स०] कदंब का पेड़। |
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जीर्ण-वज्र :
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पुं० [कर्म० स०] वैक्रांत मणि। |
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जीर्णक :
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वि० [सं० जीर्ण+कन्]=जीर्ण। |
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जीर्णता :
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स्त्री० [सं० जीर्ण+तल्-टाप्] १. जीर्ण होने की अवस्था या भाव। २. बुढ़ापा। |
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जीर्णा :
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स्त्री० [सं० जीर्ण+टाप्] काली जीरी। |
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जीर्णि :
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स्त्री० [सं० जृ+क्तिनन्, ईत्व, नत्व] १. जीर्णता। २. पाचन। |
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जीर्णोद्वार :
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पुं० [सं० जीर्ण-उद्धार, ष० त०] किसी पुरानी वास्तु रचना का फिर से होनेवाला उद्धार, सुधार या मरम्मत। टूटी-फूटी इमारत या चीज फिर से ठीक और दुरुस्त करना। |
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