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दिल  : पुं० [फा०] १. शरीर के अंदर का हृदय नामक अंग, जिसकी सहायता से शरीर मे रक्त का संचार होता है। कलेजा। (मुहा० के लिए दे० ‘कलेजा’ के मुहा०) २. लाक्षणिक रूप में चित्त। जी। मन। पद—दिल की फाँस=मन में खटकता रहनेवाला कष्ट, दुःख या पीड़ा। मुहावरा—(किसी से) दिल अटकना=श्रृंगारिक क्षेत्र में, प्रेम या स्नेह होना। (किसी पर) दिल आना=किसी के प्रति अनुराग या प्रेम होना। दिल उमड़ना=चित्त का दया, स्नेह आदि कोमल मनोविकारों के कारण द्रवीभूत होना। दिल उलटना=(क) जी घबराना। (ख) जी मिचलाना। दिल कड़ा या कडुवा करना=कोई काम या बात करने के लिए मन में साहस या हिम्मत करना। दिल कबाब होना=बहुत अधिक मानसिक कष्ट या संताप होना। जी जलना। (किसी काम, चीज या बात के लिए) दिल करना=मन में प्रवृत्ति उत्पन्न होना। जी चाहना। दिल का कँवल या कमल खिलना=चित्त या मन बहुत प्रसन्न होना। दिल का गुबार या बुखार निकालना=मन में दबा हुआ कष्ट कुछ कटु शब्दों में किसी के सामने प्रकट करना। दिल की गाँठ या घुंडी खोलना=(क) मन में छिपाकर रखी हुई बात किसी से कहना। (ख) मन में दबा हुआ द्वेष या वैर दूर करना। दिल कुढ़ना=चित्त या मन अन्दर ही अन्दर दुःखी होना। दिल के फफोले फोड़ना=दिल का गुबार या बुखार निकालना। (देखें ऊपर) दिल को करार होना=चित्त में शांति होना। चैन मिलना। (कोई बात) दिल में लगना=किसी बात का चित्त या मन पर ऐसा प्रभाव पड़ना जो सहज में भुलाया न जा सके। दिल खोलकर=(क) पूरी उदारता से। (ख) बिलकुल शुद्ध हृदय से। जैसे—दिल खोलकर किसी से बातें करना। (किसी काम या बात में) दिल गवाही देना=अंतःकरण या विवेंक से किसी काम या बात का अनुमोदन या समर्थन होना। जैसे—जिस काम में दिल गवाही न दे, वह काम नहीं करना चाहिए। दिल जमना=(क) किसी काम में चित्त या मन लगना। जी लगना। (ख) किसी बात की ओर से मन संतुष्ट होना। दिल ठिकाने होना=चित्त सांत या स्थिर होना। दिल ठोंककर=चित्त या मन मे दृढ़ता और साहस रखकर (कोई काम करना)। (किसी का) दिल देखना=किसी प्रकार का यह पता लगाना कि इसके मन में क्या बात या विचार है अथवा यह क्या करेगा। (किसी को) दिल देना=किसी से अत्यधिक प्रेम करना। पूरी तरह से अनुरक्त होना। दिल दौडाऩा=चित्त या मन को किसी ऐसे काम या बात की ओर प्रवृत्त करना जिसकी प्राप्ति या सिद्धि दूर हो अथवा सहज न हो। (हाथों में या से) दिल पकड़े फिरना=ममता, मोह आदि के कारण बहुत ही विकल होकर इधर-उधर घूमना। (कोई बात) दिल मे नक्श होना=मन में अच्छी तरह अंकित होना या बैठ जाना। दिल में मैल लाना=मन में दुर्भाव, द्वेष आदि को स्थान देना। मन ही मन बुरा मानना। दिल पसीजना या पिघलना=मन में उदारता, दया स्नेह आदि कोमल वृत्तियों का आविर्भाव होना। दिल फटना=(क) आघात, कष्ट आदि के कारण मन में असह्य वेदना होना। (ख) पहले का-सा सदभाव या स्नेह न रह जाना। (किसी की ओर से) दिल फिरना या फिर जाना=चित्त या मन हट जाना। विरक्ति होना। दिल फीका होना=जी खट्टा होना। पहले का सा अनुराग या सद्भाव न रह जाना। दिल भटकना=चित्त या व्यग्र या चंचल होना। मन मे इधर-उधर के विचार उठना। दिल मसोसना या मसोसकर रह जाना=क्रोध, दुःख आदि तीव्र मनोविकारों को मन में दबाकर रह जाना। (किसी के) दिल पर घर या जगह करना=किसी के अनुराग, आदर आदि का पात्र बनना। दिल में बल पड़ना=दिल में फरक आना। (देखें ऊपर) दिल में फरक आना=पहले का- सा अनुराग या सद्भाव न रह जाना। मन में दुर्भाव की सृष्टि होना। दिल मैला करना=मन में दुर्भाव, द्वेष आदि दूषित मनोविकार उत्पन्न करना। (किसी का) दिल रखना=किसी की इच्छा के अनुसार कोई काम करके उसे प्रसन्न या संतुष्ट करना। (किसी का) दिल रखना=किसी की इच्छा के अनुसार कोई काम करके उसे प्रसन्न या संतुष्ट करना। (किसी का दिल लेना=(क) किसी के मन की बातों की थाह या पता लेना। (ख) किसी को पूरी तरह से अपनी ओर अनुरक्त करना। दिल से=अच्छी तरह, चित्त या मन लगाकर। (कोई बात) दिल से उठना=मन में किसी बात की प्रवृत्ति या स्फूर्त्ति होना। जैसे—जब तुम्हारा दिल ही नहीं उठता, तब तुम्हारा उनसे मिलने जाना व्यर्थ है। (कोई बात) दिल से दूर करना=उपेक्ष्य समझकर कुछ भी ध्यान न देना या बिलकुल भूल जाना। (किसी का) दिल हाथ में करना या लेना=किसी को पूरी तरह से अपनी ओर अनुरक्त करके उसके विश्वास, स्नेह आदि के भाजन बनना। दिल हिलना=(क) चित्त या मन का दयार्द्र होना। (ख) मन में कुछ भय होना। जी दहलना। दिल ही दिल में=अन्दर ही अन्दर। मन ही मन। दिलोजान से=पूरी शक्ति और सामर्थ्य से; अथवा अच्छी तरह मन लगाकर। ३. ऐसा हृदय, जिसमें उत्साह, उदारता उमंग, स्नेह आदि कोमल भाव यथेष्ठ मात्रा में हों। जैसे—वह दिल और दिमाग का आदमी है। पद—दिल का बादशाह=(क) बहुत बड़ा उदार या दानी। (ख) मनमौजी। मुहावरा—दिल टूटना=किसी दुःखद या विपरीत घटना के कारण मन का सारा उत्साह या उमंग कम होना या दब जाना। (किसी का) दिल तोड़ना=ऐसा काम करना, जिससे किसी का सारा उत्साह या उमंग दब जाय या नष्ट हो जाय। दिल बढना=अनुराग, उत्साह, उमंग आदि में ऐसी वृद्धि होना जो किसी काम या बात की ओर प्रवृत्त करे। दिल बुझना=मन में अनुराग, उत्साह, उमंग आदि बिलकुल न रह जाना। (किसी से) दिल मिलना=प्रकृति या स्वभाव की समानता के कारण परस्पर अनुराग और सदभाव होना। पद—दिल-चला, दिल-दार, दिलवर आदि। विशेष—दिल के शेष मुहा० के लिए देखें ‘चित्त’, ‘जी’ और ‘मन’ के मुहा०।
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दिल-गुरदा  : पुं० [फा० दिल+गुरदा] १. हिम्मत। सहारा। २. बहादुरी। वीरता।
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दिल-चला  : वि० [फा० दिल+हिं० चलना] १. हिम्मतवाला। दिलेर। साहसी। २. बहादुर। वीर। ३. मनमौजी। ४. रसिक।
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दिल-चोर  : वि० [फा० दिल+हिं० चोर] १. जो काम करने से जी चुराता हो। कामचोर। २. चित्त या मन हरण करनेवाला।
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दिल-जमई  : स्त्री० [फा० दिल+अ० जमअः+ई (प्रत्य०)] किसी काम या बात की ओर से मन में होनेवाली तसल्ली या सन्तोष। अच्छी तरह जी भरने की अवस्था या भाव। इतमीनान। जैसे—अच्छी तरह अपनी दिल- जमई करके तक मकान खरीदें।
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दिल-जला  : वि० [फा० दिल+हिं० जलना] जिसे बहुत अधिक मानसिक कष्ट पहुँचा हो। अत्यंत दुःखी।
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दिल-दरिया  : वि०=दरिया-दिल।
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दिल-दरियाव  : वि०=दरिया-दिल।
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दिल-फेंक  : वि० [फा० दिल+हिं० फेंकना] (व्यक्ति) जो बिना समझे-बूझे जगह-जगह या कभी इस पर और कभी उस पर अनुरक्त या आसक्त होता फिरे। जो मिल जाय, इसी को अपना प्रेम-पात्र बनानेवाला।
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दिल-बहार  : पुं० [फा० दिल+बहार] खशखाशी रंग का एक भेद।
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दिलगीर  : वि० [फा०] [भाव० दिलगीरी] १. उदास। २. खिन्न। दुःखी।
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दिलगीरी  : स्त्री० [फा० दिलगीर+ई (प्रत्य०)] १. उदासी। २. मानसिक खिन्नता या दुःख।
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दिलचस्प  : वि० [फा०] [भाव० दिलचस्पी] (काम, चीज या बात) जिसमें दिल रमता या लगता हो। चित्ताकर्षक मनोरंजक।
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दिलचस्पी  : स्त्री० [फा०] १. दिलचस्प होने की अवस्था या भाव। मनोरंजकता। २. किसी काम या बात के प्रति होनेवाला ऐसा अनुराग, जिसके फलस्वरूप कुछ सुख मिलता या स्वार्थ सिद्ध होता हो। रस। जैसे—इन बातों में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है।
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दिलदार  : वि० [फा०] [भाव० दिलदारी] १. अच्छे दिल और स्नेहपूर्ण स्वभाववाला २. जिसके प्रति अनुराग किया जाय और जिसे दिल या मन दिया जाय। ३. रसिक। ४. उदार। दाता। दानी।
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दिलदारी  : स्त्री० [फा० दिलदार+ई (प्रत्य०)] १. दिलदार होने की अवस्था या भाव। २. प्रेमिक होने की अवस्था या भाव। प्रेमिकता ३. रसिकता।
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दिलदौर  : वि०=दिलदार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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दिलपसंद  : वि० [फा०] जो दिल को पसंद हो। चित्ताकर्षक।
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दिलबर  : वि० [फा०] प्यारा। प्रिय। पुं० प्रेमपात्र।
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दिलबस्त  : वि० [फा०] [भाव० दिलबस्तगी] जिसका दिल या मन किसी ओर या किसी से बँधा अर्थात् लगा हो।
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दिलबस्तगी  : स्त्री० [फा०] ऐसी स्थिति, जिसमें दिल या मन किसी काम या बात में सुखद रूप से बँधा अर्थात् लगा हो या लगा रहे। जैसे—चार मित्रों के आ जाने से हमारी दिलबस्तगी रहती (या होती) है।
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दिलरुबा  : वि० [फा०] मनोरंजक। रमणीय। पुं० १. प्रेमी। माशूक। २. एक प्रकार का बाजा, जिसमें बजाने के लिए ताल लगे होते हैं।
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दिलवल  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़।
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दिलवाना  : स०=दिलाना।
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दिलवाला  : वि० [फा० दिला+हिं० वाला (प्रत्य०)] १. जिसमें दिल हो अर्थात् बहुत उदार और सहृदय। २. रसिक। ३. साहसी।
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दिलवैया  : वि० [हिं० दिलवाना+ऐसा (प्रत्य०)] जो किसी को किसी दूसरे से कोई चीज दिलवाने में सहायक होता हो। दिलानेवाला।
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दिलशाद  : वि० [फा०] १. जिसका दिल सदा प्रसन्न रहे। प्रसन्नचित्त। २. चित्त या मन को प्रसन्न करने या रखनेवाला।
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दिलहर  : वि० [फा० दिल+हिं० हरना] मन हरनेवाला। मनोहर। वि०=दिलेहेद (दिल्लेदार)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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दिलहा  : पुं०=दिल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दिलहेदार  : वि०=दिलहेदार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दिलाना  : स० [हिं० देना का प्रे०] १. किसी को किसी दूसरे से कुछ प्राप्त कराना। दिलवाना। २. किसी को कुछ प्राप्त करने में सहायता देना। संयो० क्रि०—देना।
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दिलारा  : वि० [फा०] १. दिल की प्रसन्नता बढ़ानेवाला २. मनोहर। लुभावना। २. परमप्रिय। (श्रृंगारिक क्षेत्र में) पुं० प्रेम-पात्र। माशूक।
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दिलावर  : वि० [फा०] [भाव० दिलावरी] १. बहादुर। वीर। २. हिम्मत या हौसलेवाला। साहसी।
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दिलावरी  : स्त्री० [फा०] १. बहादुरी। वीरता। २. साहस। हिम्मत।
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दिलावेज  : वि० [फा० दिलावेज़] सुन्दर। प्रियदर्शन।
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दिलासा  : पुं० [फा० दिल+हिं० आसा] क्षुब्ध या दुःखित हृदय को दिया जानेवाला आश्वासन। ढारस। तसल्ली। धैर्य। क्रि० प्र०—दिलाना।—देना।
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दिली  : वि० [फा०] १. दिल या हृदय से संबंध रखनेवाला। हार्दिक। जिससे बहुत अधिक अभिन्नता और घनिष्ठता हो। घनिष्ठ। जैसे—दिली दोस्त।
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दिलीप  : पुं० [सं०] इक्ष्वाकु-वंशी एक प्रसिद्ध राजा जो अंशुमान् के पुत्र राजा सागर के परपोते तथा भागीरथ के पिता थे। (वाल्मीकि) विशेष—कालिदास ने इन्हें रघु का पिता बतलाया है। २. चंद्रवंशी राजा कुरु के वंशज एक राजा।
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दिलीर  : पुं० [सं०√दल् (नष्ट करना)+ईर्, पृषो० सिद्धि] भुइँफोड़। ढिंगरी।
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दिलेर  : वि० [फा०] [भाव० दिलेरी] १. बहादुर। वीर। २. हिम्मतवाला। साहसी। ३. उदारता-पूर्वक देनेवाला। दाता।
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दिलेरी  : स्त्री० [फा०] १. बहादुरी। वीरता। २. साहस। हिम्मत। ३. दानशीलता। उदारता। क्रि० प्र०—दिखाना।
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दिल्लगी  : स्त्री० [फा० दिल+हिं० लगना] १. दिल लगने या लगाने की क्रिया या भाव। २. परिहास। मनोविनोद। मुहावरा—(किसी की) दिल्लगी उडाना=हास-परिहास की बातें कहकर तुच्छ सिद्ध करने का प्रयत्न करना। उपहास करना। पद—दिल्लगी में=केवल दिल्लगी के विचार से। यों ही। हँसी में। ३. ऐसी घटना या बात, जिससे लोगों का मनोरंजन होने के सिवा उन्हें हँसी भी आवे। जैसे—कल सड़क पर एक दिल्लगी हो गई; एक आदमी के कन्धे पर कहीं से एक बन्दर आ कूदा। ४. ऐसा काम या बात, जो हास-परिहास की तरह सुगम हो या जो सब लोग कर सकें। जैसे—कविता करना क्या तुमने दिल्लगी समझ रखा है।
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दिल्लगीबाज  : पुं० [हिं० दिल्लगी+फा० बाज] [भाव० दिल्लगीबाजी] वह जो प्रायः दूसरों को हँसानेवाली बातें कहता हो। हँसी या दिल्लगी करनेवाला। ठठोल। हँसोड़।
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दिल्लगीबाजी  : स्त्री० [हिं० दिल्लगी+फा० बाजी] १. दिल्लगी करने की क्रिया या भाव। २. दे० ‘दिल्लगी’।
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दिल्ला  : पुं० [देश०] दरवाजे के पल्ले के ढाँचे में कसा तथा जड़ा हुआ लकड़ी का चौकोर टुकड़ा, जो प्रायः उसे सुन्दर रूप देने के लिए होता है। दिलहा।
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दिल्ली  : स्त्री० [इन्द्रप्रस्थ के मयूरवंशी राजा दिलू के नाम पर] पश्चिमोत्तर भारत की एक प्रसिद्ध नगरी जहाँ मध्ययुग में बहुत दिनों तक हिंदू राजाओं तथा मुगल बादशाहों की राजधानी थी; और जिसे सन् १९१२ में अंगरेजों ने फिर से राजधानी बनाया था। इस समय स्वतन्त्र भारत की राजधानी भी यहीं है।
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दिल्लीवाल  : वि० [हिं० दिल्ली+वाल (प्रत्य०)] १. दिल्ली-संबंधी। दिल्ली का। २. दिल्ली का रहनेवाला। ३. दिल्ली में बनने या होनेवाला। पुं० एक प्रकार का देशी जूता, जो पहले दिल्ली में बनता था।
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दिल्लेदार  : वि० [देश० दिलहा+फा० दार] (दरवाजे का पल्ला) जिसमें दिल्ले लगे हों।
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