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नपुंसक  : वि० [सं० न स्त्री० न पुमान्, नि० नपुंसक आदेश] [भाव० नपुंसकता] १. वह (व्यक्ति) जिसमें काम-वासना या स्त्री-संभोग की शक्ति बिलकुल न हो अथवा बहुत ही कम हो। क्लीव। विशेष—वैद्यक में, नपुंसक पाँच प्रकार के माने जाते हैं।—आसेव्य, सुगंधी, कुंभीक, ईर्ष्यक और षंड। २. कायर। पुं० १. वह पुरुष जिसमें स्त्री-संभोग की शक्ति न हो। नार्मदा। २. ऐसा मनुष्य जिसमें न तो पूर्ण पुरुषों के चिह्न हों या न स्त्रियों के ही। हिजड़ा। विशेष—वैद्यक के अनुसार जब पुरुष का वीर्य और माता का रज समान होता है तब नपुंसक संतान उत्पन्न होती है। ३. दे० ‘नपुंसक लिंग’।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
नपुंसक लिंग  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. संस्कृत व्याकरण में तीन प्रकार के लिंगों में से एक जिसमें ऐसे पदार्थों का अंतर्भाव होता है जो न तो पुल्लिंग हो और न स्त्री लिंग। विशेष—संस्कृत के सिवा अंग्रेजी, मराठी आदि भाषाओं में भी यह तीसरा लिंग होता है, परन्तु हिन्दी, पंजाबी आदि भाषाओं में नहीं होता।
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नपुंसक-मंत्र  : पुं० [सं० कर्म० स०] जैनों के अनुसार वह मंत्र जिसके अंत में ‘नमः’ हो।
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नपुंसक-वेद  : पुं० [सं० मध्य० स०] जैनियों के अनुसार एक प्रकार का मोहनीय कर्म जिसके उदय होने पर स्त्री के सिवा बालक या पुरुष के साथ संभोग करने की इच्छा उत्पन्न होती है।
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नपुंसकता  : स्त्री० [सं० नपुंसक+तल्—टाप्] १. नपुंसक होने की अवस्था या भाव। हिजड़ापन। २. वैद्यक में एक प्रकार का रोग जिसमें मनुष्य का वीर्य इस प्रकार नष्ट हो जाता है कि वह स्त्री के साथ संभोग करने के योग्य नहीं रह जाता। नामर्दी।
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नपुंसकत्व  : पुं० [सं० नपुंसक+त्व]=नपुंसकता।
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