शब्द का अर्थ
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नाट :
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पुं० [सं०√ नट् (नाचना)+घञ्] १. नृत्य। नाच। २. नकल। स्वाँग। ३. कर्नाटक के पास का एक प्राचीन देश। ४. उक्त देश का निवासी। ५. संगीत में, एक प्रकार का राग, जो किसी के मत से मेघराग का और किसी के मत से दीपक राग का पुत्र है। पुं० [?] काँटे, कील आदि की नोक जो चुभने पर शरीर के अंदर टूट कर रह जाती है। उदा०–चुबैक साँवरे पीय बिनु क्यों निकसहिं ते नाट।–नंददास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नाट वसंत :
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पुं० [सं०] संगीत में एक प्रकार का संकर राग। |
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नाटक :
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पुं० [सं०√नट्+ण्वुल–अक] १. नाट्य या अभिनय करनेवाला। नट। २. नटों या अभिनेताओं के द्वारा रंगमंच पर होनेवाला ऐसा अभिनय, जिसमें दूसरे पात्रों का रूप धरकर उनके आचरणों, कार्यों, चरित्रों, हाव-भावों, आदि का प्रदर्शन करते हैं। अभिनय। (ड्रामा) ३. वह साहित्यिक रचना, जिसमें किसी कक्ष या घटना का ऐसे ढंग से निरूपण हुआ हो कि रंग-मंच पर सहज में उसका अभिनय हो सके। ४. कोई ऐसा आचरण या व्यवहार जो शुद्ध हृदय से नहीं, बल्कि केवल दूसरों को दिखलाने या धोखे में रखने के उद्देश्य से किया जाय। जैसे–यह पंचायत क्या हुई है, उसका नाटक भर हुआ है। |
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नाटक-शाला :
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स्त्री०=नाट्यशाला। |
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नाटका-देवदारु :
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पुं० [नाटक+देवदारु] दक्षिण भारत में होनेवाला एक प्रकार का छोटा पेड़, जिसकी लकड़ी से एक प्रकार का तेल निकलता है। इसकी फलियों का साग बनता है और फल गरीब लोग दुर्भिक्ष के समय खाते हैं। |
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नाटकावतार :
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पुं० [सं० नाटक-अवतार, ष० त०] किसी नाटक में अभिनय के अंतर्गत होनेवाला दूसरे नाटक का अभिनय। |
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नाटकिया :
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पुं० [सं० नाटक+हिं० ईया (प्रत्य०)] १. नाटक में अभिनय करनेवाला। २. बहुरूपिया। |
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नाटकी :
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स्त्री० [सं०] इंद्रसभा। पुं० [सं० नाटक] नाटक करके जीविका उपार्जन करनेवाला व्यक्ति। नाटकिया। वि०=नाटकीय। |
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नाटकीय :
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वि० [सं० नाटक+छ–ईय] १. नाटक-संबंध। नाटक का। २. बहुत ही आकस्मिक रूप से, परन्तु कुशलता और चतुरता पूर्वक किया जानेवाला। |
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नाटना :
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अ०=नटना (पीछे हटना या मुकरना)। |
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नाटा :
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वि० [सं० नत=नीचा] [स्त्री० नाती] १. जिसकी ऊँचाई या डील साधारण से कम हो। छोटे कद या डील का। कम ऊँचा या कम लंबा। जैसे–नाटा आदमी, नाटा पेड़। पुं० कम ऊँचा या छोटे डील का बैल। |
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नाटा करंज :
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पुं० [हिं० नाटा+करंज] एक प्रकार का करंज। |
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नाटाभ्र :
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पुं० [सं०] तरबूज। |
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नाटार :
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पुं० [सं० नटी+आरक्] अभिनेत्री का पुत्र। |
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नाटिका :
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स्त्री० [सं० नाटक+टाप्, इत्व] कल्पित कथावाला एक प्रकार का दृश्य-काव्य जिसका नायक राजा, नायिका कनिष्ठा तथा अधिकतर पात्र राज-कुल के होते हैं। इसमें स्त्री-पात्रों और नृत्य-गीत आदि की बहुलता होती है। |
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नाटित :
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भू० कृ० [सं०√ नट्+णिच्+क्त] (नाटक) जिसका अभिनिय हो चुका हो। अभिनीत। पुं० अभिनय। |
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नाट्य :
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पुं० [सं० नट+ञ्य] १. नट का काम या भाव। २. नाचने-गाने, बाजे आदि बजाने और अभिनय करने का काम। ३. अभिनय आदि के रूप में किसी की नकल करने या स्वाँग भरने की क्रिया या भाव। ४. ऐसा नक्षत्र जिसमें नाट्य या नाटक का आरंभ शुभ माना जाता हो। |
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नाट्य-प्रिय :
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पुं० [ब० स०] महादेव। |
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नाट्य-मंदिर :
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पुं० [ष० त०] नाट्यशाला। |
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नाट्य-रासक :
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पुं० [सं०] एक प्रकार का उपरूपक दृश्य-काव्य जिसमें एक ही अंक होता है। इसका नायक उदात्त, नायिका वासक-सज्जा और उपनायक पीठमर्द होता है। इसमें अनेक प्रकार की गीत और नृत्य होते हैं। |
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नाट्य-शाला :
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स्त्री० [सं० ष० त०] विशिष्ट आकार-प्रकार का बना हुआ वह भवन या मकान जिसमें एक ओर अभिनय या नाटक करने का मंच और दूसरी ओर दर्शकों के बैठने के लिए स्थान होता है। रंग-शाला। |
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नाट्य-शास्त्र :
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पुं० [ष० त०] वह शास्त्र जिसमें नाचने-गाने और अभिनय आदि करने की कलाओं का विवेचन होता है। |
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नाट्यकार :
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पुं० [सं० नाट्य√ कृ (करना)+अण्] १. नाटक करनेवाला। नट। २. नाटक में अभिनय करनेवाला व्यक्ति। अभिनेता। ३. नाटककार। |
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नाट्यधर्मिता :
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स्त्री० [सं० नाट्य-धर्म, ष० त०+ठन्–इक] वह पुस्तिका जिसमें अभिनय-संबंधी निर्देश हों। |
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नाट्यागार :
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पुं० [नाट्य-आगार, ष० त०] नाट्यशाला। |
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नाट्यालंकार :
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[पुं० नाट्य-अलंकार, ष० त०] अभिनय या नाटक का सौंदर्य बढ़ानेवाली वे विशिष्ट बातें, जिन्हें साहित्यकारों ने उनके अलंकार के रूप में माना है। विशेष–साहित्य-दर्पण में ये ३३ नाट्यालंकार कहे गए हैं–आशीर्वाद, अक्रेंद, कपट, अक्षमा, गर्व, उद्यम, आश्रय, उत्प्रासन, स्पृहा, क्षोभ, पश्चात्ताप, उपयति, आशंसा, अध्यवसाय, विसर्प, उल्लेख, उत्तेजन, परीबाद, नीति, अर्थ विशेषण, प्रोत्साहन, सहाय्य, अभिमान, अनुवृत्ति, उतकीर्तन, यांचा, परिहार, निवेदन, पवर्तन, आख्यान, युक्ति, प्रहर्ष और शिक्षा। |
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नाट्योक्ति :
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स्त्री० [नाट्य-उक्ति, स० त०] भारतीय नाट्यशास्त्र में विशिष्ट पात्रों के लिए बतलाई हुई कुछ विशिष्ट रूप की उक्तियाँ या कथन-प्रकार; यथा–ब्राह्मणों को ‘आर्य’ राजा को ‘देव’ पति को ‘आर्यपुत्र’ आदि कहकर संबोधित करने का विधान। |
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नाट्योचित :
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वि० [नाट्य-उचित, ष० त०] १. जो नाट्य या नाटक के लिए उचित या उपयुक्त हो। २. जिसका अभिनय हो सके। |
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