शब्द का अर्थ
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पंड :
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वि० [सं०√पंड् (जाना)+अच्] फल-रहित। निष्फल। पुं० १. नपुंसक। हिजड़ा। २. (वृक्ष) दो कभी फलता न हो। स्त्री० [सं० पिंड] बड़ी और भारी गठरी। (पश्चिम) |
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समानार्थी शब्द-
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पंडग :
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पुं० [सं० पंड√गम् (जाना)+ड ?] १. नपुंसक। हिजड़ा। २. खोजा। |
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पंडत :
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विं०, पुं०=पंडित। (पश्चिम) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पंडत-खाना :
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पुं० [हिं०] १. जेलखाना। बंदीगृह। २. जूआखाना। (पश्चिम) |
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पंडरा :
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पुं० [हिं० पानी+ढरना (ढरा)] पनाला। नाबदान। पुं०=पड़वा (भैंस का बच्चा)। |
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पँडरू :
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पुं०=पड़वा। |
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पंडल :
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वि० [सं० पांडुर] पांडु वर्ण का। पीला। पुं० [सं० पिंड] बदन। शरीर। पुं०=पांडव। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पँडवा :
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पुं० [?] भैंस का बच्चा। पड़वा। |
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पंडवा :
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पुं०=पांडव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पंडा :
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पुं० [सं० पंडित] [स्त्री० पंडाइन] १. वह ब्राह्मण जो तीर्थ यात्रियों को मंदिरों आदि के दर्शन कराता तथा उनसे प्राप्त होनेवाले धन से अपनी जीविका चलाता हो। २. रसोई बनानेवाला ब्राह्मण। ३. रहस्य सम्प्रदाय में, बुद्धि। |
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पँडाइन :
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स्त्री० हिं० ‘पाँडे’ का स्त्री०। |
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पंडाइन :
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स्त्री० हिं० ‘पंडा’ का स्त्री०। |
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पंडापूर्व :
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पुं० [सं० पंड-अपूर्व, सुप् सुपा० स०] धर्म और अधर्म से उत्पन्न वह अदृष्ट जो कर्म के अनुसार फल न दे सकता हो अथवा ऐसे फल की प्राप्ति में बाधक हो। (मीमांसा) |
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पंडाल :
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पुं० [तमिल पेंडल] कनातों आदि से घिरा और तंबुओं से छाया हुआ वह बड़ा मंडप, जिसके नीचे संस्थाओं, सभाओं आदि के अधिवेशन होते हैं। |
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पंडित :
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वि० [सं० पंडा+इतच्] [स्त्री० पंडिता, पंडिताइन, पंडितानी] कुशल। दक्ष। निपुण। पुं० १. वह जो किसी विद्या या शास्त्र का बहुत अच्छा ज्ञाता हो। विद्वान। २. शास्त्रों आदि का ज्ञाता ब्राह्मण। ३. ब्राह्मणों के नाम के पहले लगनेवाली आदरसूचक उपाधि। ४. सार्वराष्ट्रीय सांकेतिक में वह बहुत चमकीला और तेज प्रकाश जो समुद्री और हवाई जहाजों को उनका मार्ग और ठहरने का स्थान बतलाता है। |
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पंडित-जातीय :
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वि० [सं० पंडित-जाति, ष० त०+छ—ईय] १. जो पंडित न होने पर भी किसी रूप में पंडितों के वर्ग में आ सकता हो। २. साधारण या सामान्य रूप से कुशल या दक्ष। |
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पंडितक :
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पुं० [सं० पंडित+कन्] धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। |
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पंडितमानिक :
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वि०=पंडितमानी। |
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पंडितमानी (निन्) :
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वि० [सं० पंडित√मन (मानना)+णिनि] ऐसी दंभी जो पंडित न होने पर भी अपने आप को पंडित समझता हो। |
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पंडितम्मन्य :
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वि० [सं० पंडित√मन् खश्, मुम्, श्यन्]=पंडितमानी। |
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पंडितराज :
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पुं० [ष० त०] १. बहुत बड़ा पंडित या विद्वान। २. संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान जगन्नाथ की उपाधि। |
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पंडितवादी (दिन्) :
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वि० [सं० पंडित√वद् (बोलना)+णिनि]=पंडितमानी। |
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पंडिता :
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वि० स्त्री० [सं० पंडित+टाप्] पंडित (स्त्री)। विदुषी। |
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पंडिताइन :
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स्त्री०=पंडितानी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पंडिताई :
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स्त्री० [हिं० पंडित+आई (प्रत्य०)] १. पांडित्य। विद्वत्ता। मुहा०—पंडिताई छाँटना=अनावश्यक रूप से कुअवर पर अपने पांडित्य का व्यर्थ परिचय देना। २. पंडितों की वृत्ति या व्यवसाय। |
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पंडिताऊ :
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वि० [सं० पंडित] १. पंडितों जैसा। पंडितों की तरह का। २. विद्वत्तापूर्ण। ३. पंडितों में प्रचलित और मान्य। ४. आडम्बपूर्ण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पंडितानी :
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स्त्री० [सं० पंडित] १. पंडित की स्त्री। २. ब्राह्मणी। |
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पंडितिमा (मन्) :
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स्त्री० [सं० पंडित+इमनिच्] पांडित्य। विद्वत्ता। |
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पंडु :
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वि० [सं०√पंड् (गति)+कु] १. पीलापन लिये हुए मटमैला। २. पीला। ३. सफेद। |
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पंडुक :
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पुं० [सं० पांडु] [स्त्री० पंडुकी] फाख्ता नामक पक्षी। पेंडकी। |
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पंडुर :
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पुं० [सं० पंडु√रा (देना)+क] पानी में रहनेवाला साँप। वि०=पांडुर। |
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पँडेरी :
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स्त्री० [हिं० पड़ना] वह परती भूमि जिसमें ऊख बोया जाने को हो। क्रि० प्र०—छोड़ना।—रखना। |
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पंडोह :
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पुं० [हिं० पानी+दह] पनाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पंडौ :
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पुं०=पांडव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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पंड्रक :
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वि० [सं०] १. पंगु। २. नपुंसक। |
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