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पट्ट  : पुं० [सं०√पट्+क्त] १. बैठने की चौकी या पीढ़ा। पाटा। २. लिखने का अभ्यास करने की तख्ती। पटिया। ३. लकड़ी का वह बड़ा टुकड़ा, जिस पर नाम आदि लिखा अथवा सूचनाएँ आदि लगाई जाती हैं। जैसे—नाम-पट्ट,सूचना पट्ट। ४. पट्टा। (दे०) ५. पत्थर,लकड़ी लोहे आदि का चौकोर या बड़ा टुकड़ा। ६. तांबे आदि धातुओं का पत्तर, जिस पर राजकीय आज्ञाएँ, दान-पत्र आदि उकेरे या खोदे जाते थे। ७. घाव पर बाँधने की कपड़े की पट्टी। ८. ढाल। ९. पगड़ी। १॰. दुपट्टा। ११. नगर। शहर। १२. चौमुँहनी। चौराहा। १३. राजसिंहासन। पद—पट्ट-महिषी।(देखें)। १४. रेशम। १५. पटसन। पाट। १६. टसर का बना हुआ कपड़ा। वि० [अनु०]=पट (चित्त का विपर्याय)। पुं० दे० ‘पट्टा’ (ठीके आदि का लेख्य)।
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पट्ट  : पुं० [हिं० पट्टी] १. एक प्रकार मोटा ऊनी देशी कपड़ा, जो साधारण सूती कपड़ों की अपेक्षा कम चौड़ा और प्रायः लम्बी पट्टी के रूप में बुना हुआ होता है। २. एक प्रकार का चारखानेदार कपड़ा। पुं० [?] तोता (पक्षी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पट्ट-देवी  : स्त्री० [मध्य० स०] प्राचीन काल में राजा की वह प्रथम ब्याही हुई स्त्री, जो उसके साथ सिंहासन पर बैठती थी।
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पट्ट-महिषी  : स्त्री० [मध्य० स०] पट-रानी। (दे०)
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पट्ट-रंग  : पुं० [ष० त०] पतंग या बक्कम जिसकी लकड़ी से रंग निकलता है।
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पट्ट-रंजक,पट्ट-रंजन  : पुं०=पट्ट-रंग।
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पट्ट-राज  : पुं० [मध्य० स०] पुजारी। (महाराष्ट्र)
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पट्ट-राज्ञी  : स्त्री० [मध्य० स०] पट-रानी।
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पट्ट-लेख्य  : पुं० [ष० त०] वह लेख्य जिसमें पट्टे की शर्तें आदि लिखी हों। (लीज डीड)।
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पट्ट-वस्त्र,पट्ट-वासा (सस्)  : वि० [ब० स०] जो रंगीन या रेशमी वस्त्र पहनता हो।
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पट्टक  : पुं० [सं० पट्ट+कन्] १. लिखने की तख्ती या पट्टी। २. घाव,चोट,सूजन आदि पर बाँधने की पट्टी। ३. एक प्रकार का रेशमी लाल कपड़ा, जिसकी पगड़ियाँ बनती थीं। ४. ताँबे आदि का वह पत्थर जिस पर राजकीय आज्ञाएँ, दान-लेख आदि उकेरे या खोदे जाते थे।
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पट्टकीट  : पुं० [ष० त०] रेशम का कीड़ा।
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पट्टज  : पुं० [पट्ट√जन् (उत्पन्न होना)+ड] रेशम के कीड़ों की एक जाति।
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पट्टदोल  : स्त्री० [मध्य० स०] एक तरह का झूला जो कपड़े का बना होता था।
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पट्टन  : पुं० [सं०√पट्ट+तनप्] नगर। शहर।
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पट्टनी  : स्त्री० [सं० पट्टन+ङीष्] १. छोटा नगर। नगरी। २. रेशमी कपड़ा।
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पट्टला  : स्त्री० [सं० पट्ट√ला (लेना)+क—टाप्] १. आधुनिक जिले की तरह की एक प्राचीन शासनिक इकाई। २. उक्त इकाई में रहनेवाला जन-समूह। (कम्यूनिटी)।
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पट्टशाक  : पुं० [कर्म० स०] पटुआ।
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पट्टह घोषक  : पुं० [सं० पटहघोषक] ढिंढोरा पीटने या मुनादी करनेवाला व्यक्ति।
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पट्टा  : पुं० [सं० पट्ट] १. वह अधिकार-पत्र जो भूमि या स्थावर संपत्ति का स्वामी किसी असामी, किरायेदार या ठेकेदार को इसलिए लिखकर देता है कि वह उस भूमि या स्थावर संपत्ति का कुछ समय के लिए उचित उपयोग कर सके, उससे होनेवाली आय वसूल कर सके अथवा उसकी पैदावार बेच सके; और उससे होने वाली आय वसूल कर सके अथवा उसकी पैदावार बेंच सके; और उसका कुछ अंश भूमि या संपत्ति के स्वामी को भी देता रहे। क्रि० प्र०—देना।—लिखना। २. वह पत्र या लेख्य जो मध्ययुग में असामी या काश्तकार किसी जमींदार की जमीन जोतने-बोने के लिए लेते समय उसे इसलिए लिखकर देता था कि नियत समय के उपरांत जमींदार को उस जमीन का फिर से मनमाना उपयोग करने का अधिकार हो जायगा। विशेष—इसकी स्वीकृति का सूचक जो लेख्य जमींदार लिख देता था, उसे ‘कबूलयित’ कहते थे। क्रि० प्र०—लिखना।—लिखाना। ३. कुछ स्थानों में वे नियम, जो लगान वसूल करनेवाले कर्मचारियों के लिए बनाये जाते थे। ४. उक्त के आधार पर कहार,धोबी,नाई भाट आदि का वह नेग, जो उन्हें वर-पक्ष से दिलवाया जाता था। क्रि० प्र०—चुकवाना।—चुकाना।—दिलाना।—देना। ५. चमड़े आदि का वह तस्मा या पट्टी जो कुछ पशुओं के गले में उन्हें बाँधकर रखने के लिए पहनाई जाती है। जैसे—कुत्ते,बंदर या बिल्ली के गले का पट्टा। ६. उक्त के आधार पर, कमर में बाँधने का चमड़े आदि का वह तस्मा, जिसमें चपरास टँगी रहती या तलवार लटकाई जाती है। ७. उक्त के आधार पर दक्षिण भारत या महाराष्ट्र देश की एक प्रकार की तलवार, जो कमर में लटकाई जाती थी। ८. किसी चीज का कोई कम चौड़ा और अधिक लंबा टुकड़ा जिससे कोई विशेष काम लिया जाता हो। जैसे—कामदार जूते या टोपी का पट्टा=मखमल आदि का वह लंबा टुकड़ा जिसपर सलमें-सितारे का काम बना हो। ९. कुछ चौड़ी पटरी के आकार का कलाई पर पहना जानेवाला एक प्रकार का गहना। १॰. कोई ऐसा चिन्ह या निसान जो कुछ कम चौड़ा और अधिक लंबा हो। जैसे—घोड़े या बैल के माथे का पट्टा। ११. एक प्रकार का लंबोत्तरा गहना जो घोड़ों के माथे पर लटकाया जाता है। १२. पुरुषों के सिर के दोनों ओर के बाल जो मध्ययुग में बड़ी पट्टी के रूप में, सँवारकर दोनों ओर लटकाये जाते थे। विशेष—स्त्रियों के इस प्रकार सँवारकर बाँधे हुए बाल ‘पट्टी’ कहलाते हैं। १३. बैठने के लिए बना हुआ काठ का पटरा। पीढ़ा। पुं० [?] कोई ऐसा अनाज, फली या दानों की बाल जो अभी पूरी तरह से पककर तैयार न हुई हो। (पूरब)। पुं० [सं० पट्टी] [स्त्री० अल्पा० पट्टी] १. एक प्रकार का प्राचीन शस्त्र। २. लड़ाई-भिड़ाई के समय का पैंतरा।
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पट्टा-पछाड़  : पुं०=पट्टे-पछाड़।
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पट्टा-बैठक  : स्त्री०=पट्टे-बैठक।
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पट्टाधारी  : पुं० [हिं० सं०] वह व्यक्ति जिसने किसी निश्चित अवधि के लिए कुछ शर्तों पर किसी से कोई जमीन या संपत्ति भोग्यार्थ प्राप्त की हो। पट्टे पर जमीन आदि लेनेवाला। (लीज होल्डर)
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पट्टाभिषेक  : पुं० [सं० पट्ट-अभिषेक,स० त०] १. राज्याभिषेक। २. वे विशिष्ट कृत्य जो जैन विद्वानों को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने के समय होते हैं। ३. वह साहित्यिक रचना, जिसमें उक्त कृत्यों का वर्णन होता है।
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पट्टार  : पुं० [सं० पट्ट√ऋ (गति)+अण्] [वि० पट्टारक] एक प्राचीन देश।
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पट्टारक  : वि० [सं० पट्टार+वुन्—अक] पट्टार देश का।
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पट्टांशुक  : पुं० [सं० पट्ट-अंशुक,कर्म० स०] १. रेशमी कपड़ा। २. शरीर के ऊपरी भाग में पहनने या ओढ़ने का कपड़ा।
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पट्टाही  : स्त्री० [पट्ट-अही,स० त०] पटरानी।
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पट्टिका  : स्त्री० [सं० पट्ट+कन्—टाप्,इत्व] १. छोटा तख्ती। पटिया। २. छोटा चित्र-पट या ताम्र पट। ३. कपड़े की छोटी पट्टी। ४. रेशमी फीता। ५. पठानी लोध। ६. दस्तावेज। पट्टा।
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पट्टिका-बैठक  : स्त्री०=पट्टे-बैठक।
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पट्टिका-लोध्र  : पुं० [मयू० स०] पठानी लोध।
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पट्टिका-वायक  : पुं० [ष० त०]=पट्टिकार।
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पट्टिकाख्य  : पुं० [सं० पट्टिका-आख्या,ब० स०] पठानी लोध। रक्त-लोध्र।
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पट्टिकार  : पुं० [सं० पट्टिका√ऋ+अण्] रेशमी वस्त्र बनानेवाला कारीगर।
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पट्टिय  : स्त्री० [सं० पट्टिका] केश-विन्यास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पट्टिल  : पुं० [सं० पट्ट+इलच्] पूतिकरंज। पलंग।
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पट्टिश  : पुं० [सं०√पट (गति)+टिशच्] आधुनिक पटा नामक अस्त्र के आकार का एक प्राचीन अस्त्र।
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पट्टिशी (शिन्)  : वि० [सं० पट्टिश+इनि] १. पट्टिश बाँधनेवाला। २. पट्टिश हाथ में लेकर लड़नेवाला। पटेबाज।
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पट्टिस  : पुं० [सं० पट्टिश] पटा नामक अस्त्र।
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पट्टी  : स्त्री० [सं० पट्टिका] १. लकड़ी की वह लंबोत्तरी, चौरस और चिपटी पटरी जिस पर बच्चों को अक्षर लिखने का अभ्यास कराया जाता है। तख्ती। पटिया। पाटी। २. अभ्यास आदि के लिए पट्टी पर दिया जाने वाला पाठ। सबक। ३. आदेश। शिक्षा। ४. उक्त के आधार पर लाक्षणिक रूप में कोई ऐसी उलटी-सीधी बात जो किसी को अपने अनुकूल बनाने के लिए अथवा किसी अन्य दुष्ट उद्देश्य से अच्छी तरह समझा-बुझाकर किसी के मन में बैठा दी गई हो। बुरी नियत से दी जाने वाली सलाह। मुहा०—(किसी को) पट्टी पढ़ाना=किसी को उलटी-सीधी बातें समझा-बुझा या सिखा-पढ़ाकर अपने अनुकूल अथवा गलत रास्ते पर लगाना या बहकाना। उदा०—मीत सुजान अनीति की पाटी इतै पै न जानिये कौन पढ़ाई।—घनानंद। (किसी की) पट्टी में आना=किसी के द्वारा सिखलाई उलटी-सीधी अथवा अनुचित बात सही मानकर उसके अनुसार आचरण या कार्य करना। ४. कपड़े,काठ,धातु आदि का वह लंबा किंतु कम चौड़ा पतला टुकड़ा, जो किसी बड़े अंश से काट, चीर या फाड़ कर अलग किया या निकाला गया हो। ५. कपड़े का उक्त आकार का ऐसा टुकड़ा, जो घाव,चोट आदि पर बाँधा जाता है। ६. बुना हुआ ऐसा कपड़ा जिसकी चौड़ाई सामान्य माप के अन्य कपडों से अपेक्षाकृत कम या बहुत कम होती है। जैसे—(क) घुटने और टखने के बीचवाले अंश में बाँधी जानेवाली पट्टी। (ख) इस साड़ी पर कला बत्तू की पट्टी लग जाय तो अच्छा हो। ७. उक्त आकार का टाट का वह टुकड़ा जो वैसी ही टुकड़ों के साथ जोड़ या सीकर जमीन पर बिछाया जाता है। ८. ऊन का बुना हुआ देशी गरम कपड़ा, जिसकी चौड़ाई अन्य सूती कपड़ों की चौड़ाई से कम होती। जैसे—इस कोट में पट्टू की एक पूरी पट्टी लग जायगी। ९. कपड़े की बुनावट में उसकी लंबाई के बल में कुछ मोटे सूतों से बना हुआ किनारा। १॰. लकड़ी के वे लंबे टुकड़े, जो खाट या चारपाई के ढांचे में लंबाई के बल लगे रहते हैं। पाटी। ११. उक्त आकार-प्रकार की वह लकड़ी, जो छत या छाजन के नीचे लगाई जाती है। बल्ली। १२. छाजन में लगी हुई कड़ियों की पंक्ति। १३. नाव के बीचों-बीच का तख्ता। १४. पत्थर का लंबाकम चौड़ा और पतला आयताकार टुकड़ा। पटिया। १५. किसी रचना का ऐसा विभाग जो एक सीध में दूर तक चला गया हो। जैसे—खेमों, झोंपडियों या दुकानों की पट्टी। १६. स्त्रियों के सिर के बालों की वह रचना जो कंघी की सहायता से बना-सँवारकर माँग के दोनों ओर प्रस्तुत की जाती है। पाटी। पद—माँग-पट्टी। (देखें) मुहा०—पट्टी जमाना=माँग के दोनों ओर के बालों को गोंद या चिपचिपे पदार्थ की सहायता से इस प्रकार बैठाना कि ये सिर के साथ बिलकुल चिपक जाएँ और जमी हुई पट्टी की तरह मालूम होने लगें। १७. मध्ययुग में, किसी संपत्ति अथवा उससे होनेवाली आय का वह अंश जो उसके किसी हिस्सेदार को मिलता था। पत्ती। पद—पट्टी का गाँव= मध्ययुग में, ऐसा गाँव जिसके बहुत से मालिक होते थे और इसी कारण जहाँ प्रायः अव्यवस्था या कुप्रबंध रहता था। १८. वह अतिरिक्त कर जो जमींदार किसी विशिष्ट कार्य के लिए धन एकत्र करने के उद्देश्य से अपने असामियों या खेतिहरों पर लगाता था। अबवाब। नेग। १९. एक प्रकार की मिठाई जो चाशनी में चने की दाल, तिल आदि पागकर पतली तह के रूप में जमाकर बनाई जाती है। जैसे—तिल-पट्टी, दाल-पट्टी। २॰. घोड़े की दौड़ का वह प्रकार जिसमें वह एक सीध में दूर तक सरपट दौड़ता हुआ चला जाता है। स्त्री० [सं०] १. पठानी-लोध। २. पगड़ी में लगाई जानेवाली कलगा या तुर्रा। ३. घोड़ों आदि के मुँह पर बाँधा जानेवाला तोबड़ा। ४. घोड़े की पीठ और पेट पर बाँधा जानेवाला तस्मा। तंग।
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पट्टीदार  : पुं० [हिं० पट्टी=पत्ती+फा० दार ] [भाव० पट्टीदारी] १. वह व्यक्ति जिसका किसी जमीन,संपत्ति आदि में हिस्सेदारी हो। हिस्सेदार २. एक हिस्सेदार के संबंध के विचार से दूसरा हिस्सेदार। ३. बराबर का अधिकारी। वि० [हिं० पट्टी+फा० दार] (वस्त्र) जिसमें पट्टी आदि टँगी या लगी हुई हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पट्टीदारी  : स्त्री० [हिं० पट्टीदारी ] १. पट्टीदार होने की अवस्था या भाव। २. दो या कई पट्टीदारों में होनेवाला पारस्परिक संबंध। मुहा०—(किसी से) पट्टीदारी अटकना=ऐसा झगड़ा उपस्थित होना, जिसका कारण पट्टी या हिस्सेदारी हो। पट्टीदारी के कारण विरोध होना। ३. किसी के साथ किया जानेवाला बराबरी का दावा। यह कहना कि हम भी अमुक काम या बात में तुम्हारे बराबर या बराबरी के हिस्सेदार हैं। ४. मध्ययुग में वह जमींदारी, जिसके पट्टीदार या मालिक कई आदमी संयुक्त रूप से होते थे।
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पट्टीवार  : अव्य० [हिं० पट्टी+फा० वार] हर पट्टी या हिस्से के विचार से। अलग-अलग। जैसे—यह हिसाब पट्टीवार बना है। वि० (ऐसी बही या लिखा-पढ़ी) जिसमें पट्टियों का हिसाब अलग-अलग रखा जाता हो। जैसे—पट्टीवार जमाबंदी।
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पट्टे-पछाड़  : पुं०[हिं० पट+पछाड़ना] कुश्ती का एक पेंच।
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पट्टे-बैठक  : स्त्री० [हिं० पट+बैठक] कुस्ती का एक पेंच।
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पट्टैत  : पुं० [हिं० पट्टा+ऐत (प्रत्य०)] काले,नीले या लाल रंग का वह कबूतर जिसके गले में सफेद कंठी हो। पुं०=पटैत (पटेबाज)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पट्टोला  : पुं० [सं० पट्टदुकूल] १. रेशमी वस्त्र। २. कपड़े की वह कतरन या धज्जी जिससे बच्चे खेलते हैं। (पश्चिम)।
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पट्टोलिका  : स्त्री० [सं०=पट्टालिका,पृषो० सिद्धि] १. पट्टा। अधिकारपत्र। २. दे० ‘पटोलिका’।
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