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पवाड़ा  : पुं० [मरा० पवाड़ (कीर्ति, महत्त्व), अथवा सं० प्रवाद?] १. मराठी भाषा का एक प्रसिद्ध लोक छंद जिसमें प्रायः किसी बहुत बड़े या वीर पुरुष की कीर्ति, गुण, पराक्रम आदि का प्रशंसात्मक वर्णन होता था। २. मध्य-युगीन राजस्थान में वह लोककाव्य जिसे परवर्ती चारणों ने विरुदावली शैली में समस्त तत्त्वों से युक्त करके प्रचलित किया था और जो प्रायः लोकगीत के रूप में गाया जाता था। ब्रज में इसी को ‘पमारा’ और मालवे में ‘पँवारा’ कहते हैं। ३. किसी काम या बात का ऐसा व्यर्थ विस्तार जिसमें झगड़े-झमेले की बहुत-सी बातें हों; और इसीलिए जिनसे सहज में जी ऊब जाय।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पवाड़ा  : पुं० [मरा० पवाड़ (कीर्ति, महत्त्व), अथवा सं० प्रवाद?] १. मराठी भाषा का एक प्रसिद्ध लोक छंद जिसमें प्रायः किसी बहुत बड़े या वीर पुरुष की कीर्ति, गुण, पराक्रम आदि का प्रशंसात्मक वर्णन होता था। २. मध्य-युगीन राजस्थान में वह लोककाव्य जिसे परवर्ती चारणों ने विरुदावली शैली में समस्त तत्त्वों से युक्त करके प्रचलित किया था और जो प्रायः लोकगीत के रूप में गाया जाता था। ब्रज में इसी को ‘पमारा’ और मालवे में ‘पँवारा’ कहते हैं। ३. किसी काम या बात का ऐसा व्यर्थ विस्तार जिसमें झगड़े-झमेले की बहुत-सी बातें हों; और इसीलिए जिनसे सहज में जी ऊब जाय।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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