शब्द का अर्थ
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पित्ता :
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पुं० [सं० पित्त] १. वह थैली जिसमें पित्त रहता है। पित्ताशय। (देखें) २. शरीर के अंदर का पित्त, जिसका मनुष्य के मनोभावों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। पद—पित्तामार काम=ऐसा कठिन काम जो बहुत देर में पूरा होता हो और जिसमें बहुत अधिक तल्लीनता अथवा सहिष्णुता की आवश्यकता हो। मुहा०—पित्ता उबलना या खौलना=किसी कारणवश मन में बहुत अधिक क्रोध उत्पन्न करना। पित्ता निकलना=बहुत अधिक, कष्ट, परिश्रम आदि के कारण शरीर की दुर्दशा होना। पित्ता पानी करना=किसी काम को पूरा करने के लिए बहुत अधिक परिश्रम करना। पित्ता मरना=शरीर में उत्साह, उमंग आदि का बहुत कुछ अंत या अभाव हो जाना। पित्ता मारना=(क) मन के दूषित भाव या बुरी बातें उमड़ने न देना। (ख) मन के उत्साह, उमंग आदि को दबा या रोककर रखना। जैसे—पित्ता मारकर काम करना सीखो। ३. हिम्मत। साहस। हौसला। जैसे—उसका क्या पित्ता है जो तुम्हारे सामने ठहरे। ४. कुछ पशुओं के शरीर से निकला हुआ पित्त नामक पदार्थ जिसका उपयोग औषध के रूप में होता है। जैसे—बैल का पित्ता। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पित्ता :
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पुं० [सं० पित्त] १. वह थैली जिसमें पित्त रहता है। पित्ताशय। (देखें) २. शरीर के अंदर का पित्त, जिसका मनुष्य के मनोभावों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। पद—पित्तामार काम=ऐसा कठिन काम जो बहुत देर में पूरा होता हो और जिसमें बहुत अधिक तल्लीनता अथवा सहिष्णुता की आवश्यकता हो। मुहा०—पित्ता उबलना या खौलना=किसी कारणवश मन में बहुत अधिक क्रोध उत्पन्न करना। पित्ता निकलना=बहुत अधिक, कष्ट, परिश्रम आदि के कारण शरीर की दुर्दशा होना। पित्ता पानी करना=किसी काम को पूरा करने के लिए बहुत अधिक परिश्रम करना। पित्ता मरना=शरीर में उत्साह, उमंग आदि का बहुत कुछ अंत या अभाव हो जाना। पित्ता मारना=(क) मन के दूषित भाव या बुरी बातें उमड़ने न देना। (ख) मन के उत्साह, उमंग आदि को दबा या रोककर रखना। जैसे—पित्ता मारकर काम करना सीखो। ३. हिम्मत। साहस। हौसला। जैसे—उसका क्या पित्ता है जो तुम्हारे सामने ठहरे। ४. कुछ पशुओं के शरीर से निकला हुआ पित्त नामक पदार्थ जिसका उपयोग औषध के रूप में होता है। जैसे—बैल का पित्ता। |
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पित्तांड :
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पुं० [पित्त-अंड, ब० स०] घोडों के अंडकोश में होनेवाला एक रोग। |
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पुं० [पित्त-अंड, ब० स०] घोडों के अंडकोश में होनेवाला एक रोग। |
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पित्तातिसार :
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पुं० [पित्त-अतिसार, मध्य० स०] वह अतिसार रोग जो पित्त के प्रकोप या दोष से होता है। |
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पुं० [पित्त-अतिसार, मध्य० स०] वह अतिसार रोग जो पित्त के प्रकोप या दोष से होता है। |
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पित्ताभिष्यंद :
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पुं० [पित्त-अभिष्यंद, मध्य० स०] पित्त कोप से आँख आने का रोग। |
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पुं० [पित्त-अभिष्यंद, मध्य० स०] पित्त कोप से आँख आने का रोग। |
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पित्तारि :
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पुं० [पित्त-अरि, ष० त०] १. पित्त-पापडा। २. लाख। ३. पीला चंदन। |
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पुं० [पित्त-अरि, ष० त०] १. पित्त-पापडा। २. लाख। ३. पीला चंदन। |
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पित्तारुण :
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पुं० [सं० पित्त-अरुण] आधुनिक विज्ञान में, शरीर के रक्त रस में रहनेवाला एक रंगीन तत्त्व जिसकी अधिकता से आदमियों को कामला या पीलिया नामक रोग हो जाता है। (बिली रुबिन)। |
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पुं० [सं० पित्त-अरुण] आधुनिक विज्ञान में, शरीर के रक्त रस में रहनेवाला एक रंगीन तत्त्व जिसकी अधिकता से आदमियों को कामला या पीलिया नामक रोग हो जाता है। (बिली रुबिन)। |
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पित्ताशय :
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पुं० [पित्त-आशय, ष० त०] शरीर के अंदर यकृत के पीछे की ओर रहनेवाली थैली के आकार का वह अंग जिसमें पित्त रहता है। (गालब्लैडर) |
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पुं० [पित्त-आशय, ष० त०] शरीर के अंदर यकृत के पीछे की ओर रहनेवाली थैली के आकार का वह अंग जिसमें पित्त रहता है। (गालब्लैडर) |
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