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भी  : अव्य० [सं० अपि या हि] एक अव्यय जिसका प्रयोग नीचे लिखे अर्थ या आशय व्यक्त करने के लिए होता है। (क) निश्चित रूप से किसी अथवा औरों के अतिरिक्त, साथ या सिवा। जैसे—दोनों भाइयों के साथ एक नौकर भी गया है। (ख) अधिक। ज्यादा। जैसे—यह और भी अच्छा है। (ग) तक या पर्यंत। लौं। जैसे—उसने केल जोर देने के लिए विशेषतः किसी प्रकार की अनुपयुक्तता दिखायी देने पर। जैसे—आप भी कैसे बातें करते हैं। (अर्थात् समझदार होकर भी विलक्षण बातें करते हैं)। स्त्री० [सं०√भी (भय होना)+क्विप्] भय। डर।
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भीउँ  : वि० पुं० =भीम। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भीक  : स्त्री०=भीख। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीख  : स्त्री० [सं० भिक्षा] १. किसी दरिद्र का दीनता दिखाते हुए उदरपूर्ति के लिए कुछ माँगना। भिक्षा। २. उक्त प्रकार से माँगने पर मिलनेवाली चीज। पद—भिखमंगा, भिखारी। क्रि० प्र०—देना।—पाना।—माँगना।—मिलना।
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भीखन  : वि० =भीषण। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भीखम  : वि० पुं० =भीष्म। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भीखमक  : पुं० =भीष्मक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भींगना  : अ०=भीगना।
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भीगना  : अ० [सं० अभ्यंज] १. पानी या और किसी तरल पदार्थ के संयोग के कारण तर होना। आर्द्र होना २. तरल पदार्थ के संयोग से अन्नकणों का नरम पड़ना तथा फूलना। ३. आर्द्र होना। पद—भीगी बिल्ली=बहुत ही दीन-हीन बना हुआ तथा हत-प्रभ व्यक्ति।
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भींगी  : स्त्री०=भृंगी (मादा भौंरा)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भींच  : स्त्री० [हिं० भींचना] भींचने की क्रिया या भाव।
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भींचना  : स० [हिं० खींचना] १. कसकर खींचना या दबाना। जैसे—किसी को बाँहों में भींचना। २. (आँख या मुँह) इस प्रकार जोर से दबाना कि वह बहुत कुछ बन्द हो जाय।
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भीचना  : अ० १. =भींचना २. =भीगना।
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भीचर  : पुं० [?] सुभट। वीर। (डिं०)
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भींजना  : अ० [हिं० भींगना] १. आर्द्र, गीला या तर होना। भीगना। २. किसी कोमल मनोभाव से अच्छी तरह युक्त होना। गदगद या पुलकित होना। ३. स्नान करना। नहाना। ४. किसी के साथ बहुत अधिक हिल-मिल जाना। ५. किसी के अन्दर घुसना या समाना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भीजना  : अ० [हिं० भीगना] १. किसी के साथ परचना तथा हिलना-मिलना। २. दे० ‘भींगना’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भींट  : पुं० =भीट। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीट  : पुं० [देश] १. उभरी हुई या ऊँची जमीन। २. दे० ‘भीटा’। ३. मन भर के बराबर एक पुरानी तौल।
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भीटन  : पुं० =भीटा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीटा  : पुं० [देश] १. मिट्टी, कंकड़ों आदि का कोई प्राकृतिक ऊँचा ढेर जो प्रायः कहीं कहीं समतल भूमि पर दिखाई देता है। २. पान की खेती के लिए बनाया या तैयार किया हुआ अधिक ऊँचा और चारों ओर ढालुआँ खेत जो ऊपर तथा चारों ओर से छाजन तथा लताओं से घिरा रहता है।
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भीड़  : स्त्री० [हिं० भिड़ना] १. किसी स्थान पर एक साथ तथा बिना किसी क्रम से जुटे लोगों की संज्ञा। क्रि० प्र०—लगना।—लगाना। मुहावरा—भीड़ छँटना=भीड़ में आये हुए लोगों का धीरे-धीरे इधर-उधर होना जिससे भीड़ कम हो। २. किसी चीज या बात की अधिकता। जैसे—काम की भीड़। आपत्ति। मुसीबत। संकट। उदाहरण—(क) जुग जुग भीर (भीड़) हरी संतन की।—मीराँ। (ख) तुम हरो जन की भीर (भीड़)।—मीराँ। क्रि० प्र०—कटना।—काटना।—पड़ना। ३. आगा-पीछा। असमंजस। उदाहरण—पर घर घालक लाज न भीरा।—तुलसी।
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भीड़-भड़क्का  : पुं० =भीड़-भाड़।
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भीड़-भाड़  : स्त्री० [हिं० भीड़+भाड़ अनु०] एक स्थान पर होनेवाला बहुत से मनुष्यों का जमाव। जन-समूह। भीड़।
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भीड़न  : स्त्री० [हिं० भीड़ना] १. भीड़ने की क्रिया या भाव। २. मलने, लगाने या भरने की क्रिया।
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भीड़ना  : स० [हिं० भिड़ाना] १. मिलाना। २. लगाना। ३. मलना। ४. (दरवाजा) बन्द करना। ५. दे० ‘भिड़ाना’। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भीड़ा  : वि० [हिं० भिड़ना] [स्त्री० भीड़ी] सँकरा। तंग जैसे—भीड़ी गली। स्त्री०=भीड़। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीड़ी  : स्त्री०=भिड़ी। स्त्री०=भीड़। वि० भीड़ा की स्त्री रूप।
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भीत  : भू० कृ० [सं०√भी+क्त] [स्त्री० भीता] १. डरा हुआ। जिसे भय लगा हो। २. विषद या संकट में पड़ा हुआ। स्त्री०=भीति (डर)। स्त्री० [सं० भित्ति] दीवार। मुहावरा—(किसी को) भीत में चुनना=प्राण-दंड देने के लिए किसी को कही खड़ा करके उसके चारों ओर दीवार खड़ी करना। भीत में दौड़ना=अपने सामर्थ्य से बाहर कार्य करना। भीत के बिना चित्र बनाना=बिना किसी आधार के कोई काम करना या बात कहना। २. विभाग करनेवाला परदा। ३. चटाई। ४. कमरे का फरश। गज। ५. खंड। टुकड़ा। ६. जगह। स्थान। ७. दरार। ८. कसर। त्रुटि। ९. अवसर। मौका।
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भींतड़ा  : पुं० [हिं० भीत] घर। मकान। उदाहरण—भागीजै तज भीतड़ा ओडे जिम तिम अंत।—कविराजा सूर्यमल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीतमना (नम्)  : वि० [सं० ब० स०] मन में डरा हुआ।
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भीतर  : अव्य० [सं० अभ्यंतर] १. घेरे,भवन आदि की सीमाओं के अन्तर्गत। जैसे—घर के भीतर जो चाहे सो करो। २. मन में। पुं० १. अन्दरवाला भाग। २. मन। ३. अंतःपुर। पद—भीतर का कुआँ=वह उपयोगी पदार्थ जिससे कोई लाभ न उठा सके। अच्छी पर किसी के काम न आ सकने योग्य चीज।
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भीतरचारी (रिन्)  : वि० [सं० भीत√चर् (प्राप्त होना+णिनि, उप० स०] डर-डर कर काम करनेवाला।
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भीतरा  : वि० [हिं० भीतर] भीतर या जनानेखाने में जानेवाला। स्त्रियों में आने-जानेवाला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीतरि  : अव्य०=भीतर। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भीतरिया  : पुं० [हिं० भीतर] १. वल्लभ सम्प्रदाय के मंदिरों मे वह पुजारी जो गर्भ-गृह अर्थात् मंदिर के भीतरी भाग में रहकर देवता की सेवा-पूजा करता हो। २. वह जो किसी का भीतरी भेद या रहस्य जानता हो। वि०=भीतरी।
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भीतरी  : वि० [हिं० भीतर+ई (प्रत्यय)] १. भीतरवाला। अंदर का। जैसे—भीतरी कमरा, भीतरी दरवाजा। २. छिपा हुआ। गुप्त। जैसे—भीतरी बात या भेद। ३. घनिष्ठ। जैसे—भीतरी दोस्त।
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भीतरी-टाँग  : स्त्री० [हिं० भीतरी+टाँग] कुश्ती का एक पेंच। जब विपक्षी पीठ पर रहता है, तब मौका पाकर खिलाड़ी भीतर ही से टाँग, मार कर विपक्षी को गिराता है। इसी को भीतरी टाँग कहते हैं।
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भीति  : स्त्री० [सं०√भी+क्तिन्] १. डर। भय। २. किसी काम, चीज या बात या स्थिति को भीषण या विकट समझने की दशा में मन में उत्पन्न होनेवाला वह तीव्र जो प्रायः अयुक्त होने पर भी निरंतर बना रहता और उस काम, चीज या बात से मनुष्य को बहुत दूर रखता है (फोबिया) जैसे—जलभीति, पाप-भीति, भोजन-भीति, रोग-भीति, स्त्री० भीति आदि। स्त्री०=भीत (दीवार)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीतिकर  : वि० [सं० भीति√कृ (करना)+अच्] भयंकर। भयावना।
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भीतिकारी  : वि० =भीतिकर।
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भीती  : स्त्री,० [सं०] कार्तिकेय की एक अनुचरी या मातृका का नाम। स्त्री० १. =भीति (दीवार)। २. =भीति (डर)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीन  : पुं० [हिं० बिहान] सबेरा। प्रातःकाल। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भीनना  : अ० [हिं० भींगना] १. किसी चीज के छोटे-छोटे अंशों या कणों का किसी दूसरी चीज के सभी भीतरी भागों में पहुँचकर अच्छी तरह एक-रस और सम्मिलित होना। जैसे—कपड़े में रंग भींनगा। २. लाक्षणिक रूप में किसी तत्त्व का किसी के अन्दर पहुँचकर अच्छी तरह व्याप्त तथा सम्मिलित होना। जैसे—मन में किसी का अनुराग या हवा में कोई सुगंध भीनना। ३. चारों ओर से अच्छादित होना। ४. अटकना। फँसना। उदाहरण—मीन ज्यों बंसी भीने।—सूर।
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भीना  : वि० [हिं० भीनना या भींजना] [स्त्री० भीनी] बहुत ही मंद, सूक्ष्म या हल्का। जैसे—भीनी भीनी गन्ध।
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भीभल  : वि० =विह्वल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीम  : वि० [सं०√भी (भय करना)+मक्] १. भयंकर। भीषण। २. बहुत बड़ा। ३. बहुत बडा उत्साही या बहादुर। पुं० १. साहित्य में भयानक रस। २. शिव। ३. विष्णु। ४. अम्लबेल। ५. कुंती के एक पुत्र जो युधिष्ठिर से छोटे तथा अन्य पांडवों से बड़े थे और जो गदा धारण करते थे। भीमसेन। वृकोदर। पद—भीम का हाथी=भीमसेन का फेंका हुआ हाथी। (कहा जाता है कि एक बार भीमसेन ने सात हाथी आकाश में फेंक दिय थे जो आज तक वायुमंडल में घूम रहे हैं, लौटकर पृथ्वी पर नहीं आय। इसका प्रयोग ऐसे पदार्थ या व्यक्ति के होता है। जो एक बार जाकर फिर न लौटे।) ६. विदर्भ के एक राजा जिन्हें दमन नामक ऋषि के वरसे दम, दांत और दमन नामक तीन पुत्र और दमयंती नाम की कन्या हुई थी। ७. महर्षि विश्वामित्र के पूर्व-पुरुष जो पुरूरवा के पौत्र थे। ८. संगीत में काफी ठाठ का एक राग।
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भीम-तिथि  : स्त्री० [मध्य० स०]=भीमसेनी एकादशी।
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भीम-दर्शन  : वि० [ब० स०] [स्त्री० भीम-दर्शना] जो देखने में भयानक हो। डरावनी आकृतिवाला।
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भीम-द्वादशी  : स्त्री० [मध्य० स०] माघ शुक्ला द्वादशी।
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भीम-नाद  : वि० [ब० स०] डरावनी आवाज करनेवाला। पुं० शेर। सिंह।
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भीम-पलाशी  : स्त्री० [सं०] संपूर्ण जाति की एक रागिनी।
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भीम-बल  : पुं० [ब० स०] १. एक प्रकार की अग्नि। २. धृतराष्ट्र का एक पुत्र।
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भीम-मुख  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का बाण (रामायण)।
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भीम-रथ  : पुं० [ब० स०] १. पुराणानुसार एक असुर जिसे विष्णु ने अपने कूर्म अवतार में मारा था। २. धृतराष्ट्र का एक पुत्र।
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भीमक  : पुं० [सं०] पुराणानुसार एक प्रकार का गम जो पार्वती के क्रोध से उत्पन्न हुए थे।
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भीमकर्मा (र्मन्)  : वि० [ब० स०] बहुत बड़ा पराक्रमी।
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भीमता  : स्त्री० [सं० भीम+तल्+टाप्] भीम या भयानक होने की अवस्था या भाव। भयंकरता। डरावनापन।
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भीमरथी  : स्त्री० [सं०] १. सह्य पर्वत से निकली हुई एक नदी (पुराण)। स्त्री० ७७वें वर्ष के सातवें मांस की सातवी रात की समाप्ति पर होनेवाली मनुष्य की शारीरिक अवस्था जो असह्र तथा बहुत कठिन होती है। (वैद्यक)। वि० ऐसा बुड्ढा जो ७०-८० वर्षों का हो चुका हो। बहुत बुड्ढा (व्यक्ति)।
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भीमरा  : स्त्री०=भीमा (नदी)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीमराज  : पुं० [सं० भृगंराज] काले रंग की एक प्रकार की चिड़िया जिसकी टाँगें छोटी और पंजे बड़े होते हैं और इसकी दम में केवल १० पर होते हैं। यह अनेक पशुओं तथा मनुष्यों की बोली अच्छी तरह बोल सकती है।
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भीमरिका  : स्त्री० [सं०] सत्यभामा के गर्भ के उत्पन्न की कृष्ण की एक कन्या।
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भीमसेन  : पुं० [सं०] युधिष्ठिर के छोटे भाई। वृकोदर। (दे०) (‘भीम’)।
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भीमसेनी  : वि० [हिं० भीमसेन] भीमसेन-संबंधी। भीमसेन का। जैसे—भीमसेनी एकादशी। पुं० कपूर का बरास नामक प्रकार या भेद।
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भीमसेनी एकादशी  : स्त्री० [हिं० भीमसेनी+एकादशी] १. ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी। निर्जला एकादशी। २. कार्तिक शुक्ला एकादशी। ३. माघ शुक्ला एकादशी।
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भीमसेनी कपूर  : पुं० [हिं०] एक विशेष प्रकार का कपूर जो बोर्नियों, सुमात्रा आदि द्वीपों में होनेवाले एक प्रकार के वृक्षों के निर्यास से तैयार किया जाता है। बरास।
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भीमा  : स्त्री० [सं० भीम+टाप्] १. रोचन नाम का गंध-द्रव्य। २. कोड़ा या चाबुक। ३. दुर्गा। ४. दक्षिणी भारत की एक नदी जो पश्चिमी घाट से निकलकर कृष्णा नदी में मिलती है। ५. ४॰ हाथ लंबी, २॰ हाथ चौड़ी और २९ हाथ ऊँची नाव। (युक्तिकल्पतरु) वि० सं० ‘भीम’ का स्त्री०।
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भीमान् (मत्)  : वि० [सं० भी+मतुप्] भयावह। भयंकर।
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भीमोदरी  : स्त्री० [सं० भीम-उदर, ब० स०, ङीष्] दुर्गा।
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भीर  : स्त्री०=भीड़। वि०=भीरु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीरना  : अ० [सं० भी या हिं० भीरु] भयभीत होना। डरना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भीरा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का वृक्ष जो मध्य-भारत तथा दक्षिण-भारत में होता है। इसकी लकड़ियों से शहतीर बनते हैं और इसमें से गोंद, रंग और तेल निकलता है। वि०=भीरु (कायर)। स्त्री०=भीड़। वि०=भीड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीरी  : स्त्री० [देश०] अरहर का टाल या राशि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीरु  : वि० [सं० भी+क्रु] १. जिसे भय हुआ हो। डरा हुआ। २. कायर। डरपोक। पुं० [सं०] १. श्रृंगाल। गीदड़। २. बाघ। ३. एक प्रकार की ईख। स्त्री० [सं०] १. शतावरी। २. कंटकारी। भटकटैया। ३. बकरी। ४. छाया।
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भीरु  : स्त्री० [सं० भीरु] स्त्री० (डिं०) वि० =भीरु।
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भीरु-पत्री  : स्त्री० [सं० ब० स०+ङीष्] शतमूली।
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भीरु-हृदय  : पुं० [सं० ब० स०] हिरन।
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भीरुक  : पुं० [सं० भीरु+कन्] १. वन। जंगल। २. चाँदी। ३. एक प्रकार की ईख। ४. उल्लू। वि० भीरु। कायर। डरपोक।
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भीरुता  : स्त्री० [सं० भीरु+तल्+टाप्] १. भीरु होने की अवस्था या भाव। कायरता। बुजदिली। २. डर। भर।
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भीरुताई  : स्त्री०=भीरुता। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भीरे  : अव्य० [हिं० भिड़ना] पास। समीप।
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भील  : पुं० [सं० भिल्ल] [स्त्री० भीलनी] १. विंध्य की पहाड़ियों तथा खानदेश, मेवाड़, मालवा और दक्षिण के जंगलों में रहनेवाली एक वन्य जाति। २. उक्त जाति का पुरुष। स्त्री० [?] वह मिट्टी जो ताल के सूखने पर निकलती है तथा जिस पर पपड़ी जमी होती है।
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भील-भूषण  : स्त्री० [सं० भिल्लभूषण] गुंजा या घुंघची जिसकी मालाएँ भील लोग पहनते हैं।
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भीली  : वि० [हिं० भील] १. भील-संबंधी। २. भीलों में होनेवाला। स्त्री० भीलों की बोली।
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भीलुक  : वि० [सं० भी+क्लुकन्] भीरु। डरपोक।
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भीव  : पुं० भीमसेन। वि०=भीम।
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भींव सेन  : पुं०=भीमसेन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीवै  : वि०=भीम। पुं०=भीम (पांडव)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीष  : स्त्री०=भीख।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीषक  : वि० [सं०√भी (भय करना)+णिच्, षुक्+ण्वुल्—अक] भीषण।
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भीषज  : पुं०=भेषज।
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भीषण  : वि० [सं०√भी+णिच्, षक्,+ल्य—अन] [भाव० भीषणता] १. जो देखने में बहुत भयानक हो। डरावना। २. बहुत ही उग्र तथा दुष्ट स्वभाववाला। ३. दुष्परिणाम के रूप में होनेवाला। विकट। बहुत ही बुरा। जैसे—भीषण कांड। पुं० १. साहित्य का भयानक रस। २. कुंदरू। ३. कबूतर। ४. एक प्रकार का ताल या ताड़। ५. शल्लकी। सलई। ६. ब्रह्मा। शिव।
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भीषणता  : स्त्री० [सं० भीषण्+तल्+टाप्] भीषण होने की अवस्था या भाव।
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भीषन  : वि०=भीषण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीषम  : पुं०=भीष्म।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीषा  : स्त्री० [सं०√भी+णिच्, षुक्,+अड़्+टाप्] १. भयभीत स्त्री। २. डर। भय।
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भीषिका  : स्त्री० [सं० विभीषिका] १. ऐसी स्थिति जिसमें बहुत से लोग भयभीत हों। २. बहुत बड़े अनिष्ट की आशंका जिसके फलस्वरूप लोग विचलित होते तथा इधर-उधर भागने लगते हैं। आतंक। (पैनिक)
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भीष्म  : वि० [सं०√भी+मक्, षुक्-आगम] डरावना। भयंकर। भीषण। पुं० १. शिव। २. गंगा के गर्भ से उत्पन्न राजा शान्तनु का आठवाँ और सबसे छोटा पुत्र जो ‘गांगेय’ और ‘देवव्रत’ भी कहा जाता है। ३. साहित्य का भयानक रस। ४. राक्षस। ५. दे० ‘भीष्मक’।
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भीष्म-पंचक  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक के पाँच दिन।
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भीष्म-पितामह  : पुं० [सं० कर्म० स०] राजा शान्तनु के पुत्र। भीष्म।
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भीष्म-मणि  : पुं० [सं० कर्म० स०] एक तरह का सफेद पत्थर।
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भीष्म-रत्न  : पुं०=भीष्म मणि।
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भीष्म-सू  : स्त्री० [सं० ष० त०] भीष्म की माता, गंगा।
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भीष्मक  : पुं० [सं० भीष्म+कन्] विदर्भ देश के एक राजा जो रुक्मिणी के पिता थे।
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भीष्माष्टमी  : स्त्री० [सं० भीष्म-अष्टमी, मध्य० स०] माघ शुक्ला अष्टमी। इस तिथि को भीष्म ने प्राण त्यागे थे।
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भीसम  : वि०, पुं०=भीष्म।
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