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शब्द का अर्थ

ला  : प्रत्यय [अ०] एक प्रत्यय जो कुछ शब्दों के आरम्भ में लगकर अभाव या राहित्य सूचित करता है। जैसे—ला-जबाव, ला-परवाह, ला-वारिस आदि।
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ला-खिराज  : वि० [फा०] (भूमि) जिसका खिराज अर्थात् लगान न देना पड़े। कर या लगान से मुक्त।
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ला-खिराजी  : स्त्री० [फा० लाखिराज+ई (प्रत्यय)] १. वह भूमि जिस पर खिराज या लगान न देना पड़े। २. कर या लगान से होनेवाली छूट। वि०=ला-खिराज।
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ला-जबान  : स्त्री० [अ+फा०] गाली।
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ला-जबाव  : वि० [फा०] १. जिसके जवाब अर्थात् जोड़ या बराबरी का और कोई न हो। अनुपम। बेजोड़। २. (व्यक्ति) जो जवाब या उत्तर न दे सकता हो। निरुत्तर। ३. (बात) जिसका जवाब या उत्तर न दिया जा सकता हो।
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ला-पता  : वि० [अ० ला+हिं० पता] १. जिसका पता न लगे। खोया हुआ। २. जो इस प्रकार कहीं चला गया या छिप गया हो कि किसी तरह उसका पता न लगा सके। ३. (पत्र आदि) जिस पर पता न लिखा गया हो और यों ही डाक में छोड़ दिया गया हो। क्रि० प्र०—रहना।—होना।
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ला-परवाह  : वि० [अ+फा०] [भाव० लापरवाही] १. जिसे किसी बात की परवाह या चिंता न हो। निश्चिन्त। बे-फिक्र। २. जो अपने काम पर ठीक तरह से ध्यान न देता हो। असावधान।
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ला-परवाही  : स्त्री० [अ० ला+फा० परवाह] १. लापरवाह होने की अवस्था या भाव। बे-फिक्री। २, असावधानी। प्रमाद।
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ला-बुद  : वि० [अ०] जरूरी। आवश्यक।
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ला-बुदी  : वि० =लाबुद।
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ला-वबाल  : वि० [अ० ला+फा० वबाल] १. ला-परवाह। २. आवारा। ३. अविचारी।
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ला-वबाली  : स्त्री० [अ+फा०] १. ला-वबाल होने की अवस्था या भाव। २. आवारागर्दी। ३. अविचार
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ला-वल्द  : वि० [फा०] [भाव०-लावल्दी] जो पिता न हो अर्थात् जिसके आगे सन्तान न हो। निःसन्तान।
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ला-वारिस  : वि० [अ०] [भाव० ला-वारिसी] १. (व्यक्ति) जिसका कोई वारिस अर्थात् उत्तराधिकारी न हो। २. (वस्तु) जिसे संभावकर न रखा गया हो और जो यों ही इधर-उधर पड़ी रहती हो। ३. (माल) जिसकी देख-रेख करनेवाला या मालिक न हो।
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ला-वारिसी  : स्त्री० [अ० ला-वारिस] ला-वारिस होने की अवस्था या भाव। वि० =ला-वारिस।
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ला-सानी  : वि० [अ०] जिसका सानी या जोड़ का कोई न हो। अद्वितीय। बेजोड़।
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लाइ  : पुं० [सं० अलात=लुक, प्रा० अलाप] अग्नि। आग। स्त्री० [हिं० लाना] लगन। लगावट।
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लाइक  : वि० =लायक।
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लाइची  : स्त्री० =इलायची।
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लाइट  : स्त्री० [अं०] रोशनी। प्रकाश। उजाला।
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लाइट-हाउस  : पुं० [अं०] प्रकाश गृह। प्रकाश-स्तम्भ।
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लाइन  : स्त्री० [अं०] १. अवली। पंक्ति। कतार। २. रेखा। लकीर। ३. रेल की पटरी। ४. घरों की वह पंक्ति जिनमें सिपाही रहते हैं। बैरिक। मुहावरा—लाइन सपुर्द करना=किसी सिपाही पर कोई आरोप होने पर उसका विचारार्थ लाइन या बैरक में भेजा जाना।
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लाइब्रेरियन  : पुं० [अं०] पुस्तकाध्यक्ष।
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लाइब्रेरी  : स्त्री० [अं०] पुस्तकालय।
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लाइसेंस  : पुं० [अं०] १. कोई विशेष कार्य करने के लिए दिया जानेवाला अनुज्ञापत्र। २. अनुज्ञा।
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लाई  : स्त्री० [सं० लाजा] धान, बाजरे आदि को सुखाकर और गरम बालू में भूनकर बनाई हुई खील। लावा। पद—लाई का सत्तू=उक्त प्रकार की खीलों को पीसकर बनाया हुआ सत्तू जो बहुत जल्दी हजम होता और इसीलिए दुर्बल रोगियों को खिलाया जाता है। स्त्री० [हिं० लाना=लगाना] १. आपस में विरोध उत्पन्न कराने या एक को तुच्छ या बुरा सिद्ध करने के लिए एक की बात दूसरे से जाकर कहना। इधर की बात उधर लगाना। चुगली। पद—लाई-लुतरी। क्रि० प्र०—लगाना।
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लाई-लुतरी  : स्त्री० [हिं] १. चुगली। २. शिकायत। वि० स्त्री० एक की बात दूसरे से कह करके आपस में विरोध कराने अथवा एक की दृष्टि में दूसरे को तुच्छ या हीन सिद्ध करनेवाली (स्त्री)।
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लाउड-स्पीकर  : पुं० [अं०] बिजली की सहायता से चलनेवाला एक प्रकार का प्रसिद्ध यंत्र जिसके द्वारा सब तरह की आवाजें इच्छानुसार तेज अथवा धीमी की जा सकती है।
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लाऊ  : पुं० =लौआ (घिया)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाँक  : स्त्री० [सं० लक=डंठल या बाल] १. ताजी कटी हुई फसल। २. भूसा। स्त्री० लंक (कमर) उदाहरण—फटै धर प्रेत बटै सिर फाँक, लटै मन केक उहै उर लाँका।—कविराजा सूर्यमाल।
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लाकड़ा  : पुं० [स्त्री० लाकड़ी] =लकड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाकुटिक  : वि० [सं० लकुट+ठञ्-इक] लकुट या डंडा धारण करनेवाला। पुं० १. पहरेदार। चाकर। सेवक।
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लाक्षण  : वि० [सं० लक्षण+अण्] लक्षण संबंधी। लक्षण का।
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लाक्षणिक  : वि० [सं० लक्षण+ठक्—इक] १. लक्षण संबंधी। २. जिससे लक्षण प्रकट हों। ३. लक्षणों से युक्त। ४. अर्थ या प्रयोग जो शब्द की लक्षणा शक्ति पर आश्रित या उससे संबद्ध हो। ५. लक्षण के रूप में होनेवाला। पुं० १. वह जो लक्षणों का ज्ञाता हो। लक्षण जाननेवाला। २. ऐसा छंद जिसके प्रत्येक चरण में ३२ मात्राएँ होती है।
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लाक्षण्य  : वि० [सं० लक्षण+ण्यञ्] १. लक्षण-संबंधी। २. लक्षण बतलानेवाला। ३. लक्षणों का ज्ञान रखनेवाला।
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लाक्षा  : स्त्री० [सं०√लक्ष्य+अ+टाप्] लाख नामक लाल पदार्थ जो कुछ वृक्षों पर कीड़े बनाते हैं। दे० ‘लाख’।
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लाक्षा-गृह  : पुं० [सं० ष० त०] लाख का वह गृह जिसे दुर्योधन ने पाँडवों को जला देने की इच्छा से बनवाया था पर इसमें आग लगने से पहले ही सूचना पाकर पांडव लोग इसमें से निकल गये थे।
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लाक्षा-रस  : पुं० [सं० ष० त०] महावर जो पहले पानी में लाख उबाल कर बनाते थे।
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लाक्षा-वृक्ष  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. ढाक। पलास। २. कौशाम्र। कोसम।
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लाक्षिक  : वि० [सं० लाक्षा+ठक्—इक] १. लाक्षा संबंधी। लाख का। २. लाख का बना हुआ।
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लाख  : वि० [सं० लक्ष, प्रा० लाख] जो संख्या में सौ हजार हो। पद—लाक टके की बात=अत्यन्त उपयोगी तथा मूल्यवान् बात। पुं० सौ हजार की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है—१,०००,०० मुहावरा—लाख से लीख होना=धन कुबेर का निर्धन होना। क्रि० वि० बहुत अधिक। बहुतेरा। जैसे—मैंने उन्हें लाख समझाया पर उन्होंने कुछ सुनी नहीं। स्त्री० [सं० लाक्षा] लाल रंग का एक प्रसिद्ध पदार्थ जो पलास, पीपल आदि के वृक्षों की टहनियों पर कई प्रकार के लाख कीड़ों की कुछ प्राकृतिक क्रियाओं से बनता है, और जिसका उपयोग चूडि़याँ आदि बनाने, पत्थर और लोहे को जोड़कर एक करने तथा रंग आदि बनाने के कामों में होता है। लाह।
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लाखना  : अ० [हिं० लाख] १. बरतनों के छेदों पर लाख लगाकर उन्हें बंद करना। २. लाख के घोल से मिट्टी के बरतनों पर लेप करना। स०=लखना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाखपती  : पुं०=लखपती। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाखा  : पुं० [हिं० लाख] १. लाख का बना हुआ एक प्रकार का रंग जिसे स्त्रियाँ सुन्दरता के लिए होठों पर लगाती हैं क्रि० प्र०—जमाना।—लगाना। २. गेहूँ के पौधों में लगनेवाला एक रोग जिससे पौधे की नाल लाल रंग की होकर सड़ जाती है। इसे गेरुआ या कुकुहा भी कहते हैं। क्रि० प्र०—लगना। ३. मारवाड़ के एक प्रसिद्ध वैष्णव भक्त। वि० [स्त्री० लाखी] लाख के रंग का। जैसे—लाखी गाय।
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लाखागृह  : पुं०=लाक्षागृह। (दे०)
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लाखी  : वि० [हिं० लाख+ई (प्रत्यय)] लाख के रंग का। मटमैला। लाखा। पुं० उक्त प्रकार का मटमैला लाल रंग।
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लाखों  : वि० [हिं० लाख] १. कई लाख। २. अत्यधिक, विशेषतः असंख्य।
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लाँग  : स्त्री० [सं० लांगूल] पहनी हुई धोती या लँगोट का वह छोर जिसे जाँघों के नीचे से निकाल कर पीछे कमर में खोंसा जाता है। काछ।
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लाग  : स्त्री० [हिं० लगना] १. लगे हुए होने की अवस्था या भाव। लगाव। संपर्क। संबंध। जैसे—इस मकान में बगल वाले मकान से लाग है, अर्थात् उसमें से इसमें सहज में कोई आ सकता हो। २. मानसिक दृष्टि से होनेवाली किसी प्रकार की लगावट। जैसे—अनुराग, प्रेम, लगन आदि। ३. प्रतिस्पर्धा। होड़। पद—लग-डाँट। ४. दुश्मनी। बैर। शत्रुता। ५. कोई ऐसा उपाय, तरकीब या उक्ति जो अन्दर-अन्दर या गुप्त रूप से काम करती हो, और ऊपर सहसा न दिखाई देती हो। जैसे—(क) आग का खेल। (ख) जादू टोना या मंत्र-तंत्र। ६. उक्त के आधार पर एक प्रकार का ऐसा स्वाँग, जिसमें विशेष कौशल हो और जो जल्दी समझ में न आवे। जैसे—किसी के पेट या गरदन के आरपार (वास्तव में नही, बल्कि कौशल से दिखलाने भर के लिए) तलवार या कटार गई हुई दिखलाना। ७. वह नियत धन जो विवाह आदि शुभ अवसरों पर ब्राह्मणों, भाटों, नाइयों आदि को अलग अलग रस्मों के संबंध में दिया जाता है। ८. खाने-पीने का कच्चा सामान। रसद। (बुन्देल) ९. भूमि-कर। लगान। १॰. धातुओं को फूँककर तैयार किया हुआ रस। भस्म। ११. एक प्रकार का नृत्य। १२. वह चेप जिससे चेचक का अथवा इसी प्रकार का और कोई टीका लगाया जाता है। वि० काम में आने या लग सकने के योग्य। उदाहरण—तुरी लाग ले ताकि तिम।—प्रिथीराज। अव्य० [सं० लग्न] १. तक। पर्यंत। २. निकट। पास। ३. लिए। वास्ते। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लाग-डाँट  : स्त्री० [सं० लग्न-दण्ड या हिं० लाग-वैर+डाँट] १. आपस में होनेवाली ऐसी प्रतिस्पर्धा पूर्ण स्थिति जिसमें कुछ वैर-विरोध का भाव भी सम्मिलित हो। २. दे० ‘लग्न-दण्ड’ (नृत्य)।
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लाग-दाँट  : स्त्री०=लाग-डाँट। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लाग-लपेट  : स्त्री० [हिं०] १. संपर्क। संबंध। २. वह तत्त्व या भाव जो किसी बात में अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा या लगा हुआ हो। ३. विशेषतः ऐसी बात जिसमें धोखा-धडी की कोई और बात भी छिपी हो।
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लागत  : स्त्री० [हिं० लगना] १. किसी पदार्थ के निर्माण में होनेवाला व्यय। जैसे—इस कारखाने पर ५0 हजार लागत बैठी है। क्रि० प्र०—आना।—बैठना।—लगना। २. वह पूँजीगत व्यय जो विक्रयार्थ बनाई हुई किसी वस्तु पर पड़ता है और जिसमें श्रम, पूँजी, व्यवस्था आदि का पुरस्कार भी सम्मिलित होता है।
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लागना  : वि० [हिं० लगना] किसी के पीछे लगा रहनेवाला। पुं० १. वह व्यक्ति जो टोह लेने के लिए किसी के पीछे लगा हुआ हो। २. व्याध। शिकारी। अ०=लगना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लागर  : वि० [फा० लागर] [भाव० लागरी] दुबला-पतला और कमजोर। अशक्त और कृश।
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लाँगल  : पुं० [सं०√लंग् (गति)+कलच्, पृषो० सिद्धि] १. खेत जोतने का हल। २. शुक्ल पक्ष की द्वितीया और उसके कुछ दिन बाद दिखाई देनेवाले चन्द्रमा के दोनों श्रृंग या नुकीले सिरे। ३. पुरुष का लिंग। शिश्न। ४. ताड़ का पेड़। ५. जहाज या नाव का लंगर। ६. एक प्रकार का पौधा और उसके फूल।
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लांगल-चक्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] फलित ज्योति में, हल के आकार का एक प्रकार का चक्र जिसकी सहायता से भावी फसल के संबंध में शुभाशुभ फल जाना जाता है।
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लांगल-दंड  : पुं० [सं० ष० त०] हरिस।
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लांगल-ध्वज  : पुं० [सं० ब० स०] बलराम।
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लांगलक  : पुं० [सं० लांगल+कन्] हल की आकृति का वह चीरा जो भगंदर रोग में लगाया जाता है। (सुश्रुत)
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लांगलि  : पुं० [सं० लांगली] १. कलियारी नाम का जहरीला पौधा। २. मंजीठ। ३. जल पीपल। ४. पिठवन। ५. केवाँच। ६. गजपीपल। ७. चव्य। ८. महाराष्ट्री लता। ९. ऋषभक नामक अष्टवर्ग की ओषधि।
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लांगलिक  : पुं० [सं० लांगल+ठन्—इक] एक प्रकार का स्थावर विष। वि० लांगल अर्थात् हल-संबंधी।
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लांगलिका  : स्त्री० =लांगली (कलियारी)।
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लांगली (लिन्)  : पुं० [सं० लांगल+इनि] १. श्री बलराम जी। २. नारियल। ३. साँप। स्त्री० [लागंल+ अच्+ङीष्] १. एक नदी का नाम। (पुराण)। २. कलियारी। ३. मंजीठ। ४. पिठवन। ५. केवाँच। कौंछ। ६. जलपीपल। ७. गजपीपल। ८. चाव। चव्य। ९. महाराष्ट्री लता। १॰. ऋषभक नामक अष्ट वर्ग की ओषधि।
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लाँगा  : पुं० =लहँगा।
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लागि  : अव्य० [हिं० लगना] १. कारण हेतु। २. निमित। लिए। वास्ते। ३. तक। पर्यन्त। स्त्री० =लग्गी। स्त्री० =लगन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लागुडिक  : वि० [सं० लगुड+ठक्-इक] जो हाथ में डंडा लिये हो। पुं० पहरेदार। प्रहरी।
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लागू  : वि० [हिं० लगना] १. जो लग सकता हो या लगाया जा सकता हो। प्रयुक्त होने के योग्य। चरितार्थ होनेवाला। जैसे—वही नियम यहाँ भी लागू होता है। (मराठी से गृहीत) २. जो किसी प्रकार किसी के साथ लगा रहता हो। सम्बद्ध। जैसे—(क) बुरे दिनों में कोई लागू नहीं होता। (ख) सब जीते जी लागू है। ३. वैरी। शत्रु। जैसे—क्यों उसकी जान के लागू हो रहे हो। ४. (पशु) जो किसी से बदला लेने का अवसर ढूँढ़ता रहता हो। ५. किसी जगह बराबर शिकार मिलते रहने से परच जाना। मुहावरा—(जानवर) लागू बनना या होना=जानवर विशेषतः हिंसक जानवर का शिकार पाने के लिए परच जाना। जैसे—चीता उस गाँव में लागू हो गया है।
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लांगूल  : पुं० [सं०√लंग्+ऊलच्] १. पूँछ। दुम। २. लिंग। शिश्न।
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लांगूली (लिन्)  : पुं० [सं० लांगूल+इनि] १. बंदर। २. ऋषभ नामक ओषधि।
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लागे  : अव्य०=लागि।
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लाँघन  : स्त्री० [हिं० लाँघना] १. लाँघने या लाँघे जाने की अवस्था, क्रिया या भाव। जैसे—बच्चे पर लाँघन पड़ना। २. वह स्थिति जिसमें कोई चीज या जगह किसी ने लाँघी हो। जैसे—ऐसी औरतों की तो लाँघन भी बचानी चाहिए, अर्थात् उनकी लाँघी हुई चीज या जगह भी नहीं लाँघनी चाहिए। क्रि० प्र०—पड़ना।
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लाँघना  : स० [सं० लंघन] १. डग भरकर या छलाँग लगाकर अवकाश, या स्थान पार करना। जैसे—घोड़े का नाला लाँघना। २. डग भर कर या छलाँग लगाकर किसी खाद्य वस्तु के ऊपर से होकर जाना जो अनुचित माना जाता है। जैसे—किसी की थाली लाँघना। ३. अवकाश, स्थान आदि को पीछे छोड़ते हुए आगे निकलना। जैसे—गाड़ी पहाड़ों को लाँघती हुई जा रही थी। ४. नर पशु का मादा के साथ संभोग करना। जैसे—यह घोड़ी अभी लाँघी नहीं गई है।
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लाँघनी उड़ी  : स्त्री० [हिं० लाँघना+उड़ी=कुदान] मालखंभ की एक प्रकार की कसरत।
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लाघव  : पुं० [सं० लघु+अण्] १. लघु होने की अवस्था या भाव। २. छोटा या संक्षिप्त करने की क्रिया या भाव। थोड़े शब्दों में अधिक भाव प्रकट करना। (ब्रेविटी) ४. हाथ की चालाकी या सफाई। पद—हस्त लाघव। ५. नीरोगता। ६. हल्कापन। ७. नपुंसक। ८. फुर्ती। अव्य० जल्दी या फुरती से और सहज में।
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लाघविक  : वि० [सं० लाघव+ठक्—इक] १. लघु रूप में आया हुआ। २. लगु रूप में होनेवाला। ३. संक्षिप्त।
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लाघवी  : स्त्री० [सं० लाघवी+हिं० ई (प्रत्यय)] १. फुरती। शीघ्रता। २. हाथ में चालकी या सफाई।
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लाँच  : स्त्री० [देश] रिश्वत। घूस। उत्कोच। (महाराष्ट्र)
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लाचार  : वि० [फा] [भाव० लाचारी] १. जिसके पास कोई चारा या उपाय न हो। निरुपाय। मजबूर। जैसे—पास में पैसा न होने से वह लाचार है। २. जो असमर्थता के फलस्वलरूप कुछ कर-धर या कहीं आ-जा न सकता हो। असमर्थ। अव्य० निरुपाय या विवश होकर। जैसे—लाचार वह वहाँ से चल पड़ा।
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लाचारी  : स्त्री० [फा०] १. लाचार होने की अवस्था या भाव। विवशता। २. असमर्थतापूर्ण स्थिति।
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लाँची  : पुं० [सं० लाँच] एक प्रकार का धान।
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लाची  : स्त्री० [हिं० इलायची] १. एक प्रकार का सुगंधित धान और उसका चावल। २. इलायची।
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लाचीदाना  : पुं०=इलायचीदाना।
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लाँछन  : पुं० [सं०√लांछ् (चिह्नित करना)+ल्युट—अन] १. चिन्ह । निशान। २. दाग। धब्बा। ३. कोई निन्दनीय या बुरा काम करने पर चरित्र पर लगनेवाला धब्बा। कलंक। क्रि० प्र०—लगना।—लगाना। ४. ऐब। दोष।
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लाछन  : पुं० १. =लांछन। २. =लक्षण। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाँछना  : स्त्री० =लांछन।
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लांछित  : भू० कृ० [सं० लांछ्+क्त] १. जिस पर लांछन लगा हो। कलंकित। २. चिन्हों से युक्त। ३. अलंकृत।
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लाछी  : स्त्री०=लक्ष्मी।
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लाज  : पुं० [सं०√लाज् (भर्त्सना)+अच्] १. खस। उशीर। २. पानी में भिगोया हुआ चावल। ३. धान का लावा। खील। स्त्री० [सं० लज्जा] १. लाज। शरम। हया। पद—लाज के जहाज=अत्यन्त लज्जाशील। उदाहरण—बिना ही अनीति रीति लाज के जहाज के।—भूषण। मुहावरा—लाजो मारना=लज्जा के मारे सिर न उठा सकना। २. प्रतिष्ठा। मान-सम्मान। मुहावरा—लाज रखना=प्रतिष्ठा बचाना। अप्रतिष्ठित न होने देना। लाज बचाना रखना या सम्हालना=लज्जित या तिरस्कृत होने से बचाना। (किसी की) लाज होना=किसी की प्रतिष्ठा, रक्षा आदि का भार अपने ऊपर लेना। स्त्री० [सं० रज्जु] १. रस्सी। २. कूएँ से पानी खींचने का रस्सा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाज-पेया  : स्त्री० [सं०] खोई या लावे की माँड़। खील का माँड़।
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लाज-भक्त  : पुं० [सं० ष० त०] लाज पेया जो पथ्य रूप में रोगी को दिया जाय।
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लाज-शक्तु  : पुं० [सं० ष० त०] खोई या लावे का सत्तू।
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लाज-होम  : पुं० [सं० तृ०त०] प्राचीन काल का एक प्रकार का होम, जिसमें खोई या धान का लावा आहुति में दिया जाता था।
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लाजक  : पुं० [सं० लाज+कन्] धान का लावा।
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लाजना  : अ० [हिं० लाज+ना (प्रत्यय)] लज्जित होना। शरमाना। स० किसी को लज्जित या शरमिन्दा करना। लजाना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाजवंत  : वि० [हिं० लाज+वंत (प्रत्यय)] [स्त्री० लाजवन्ती] लज्जाशील। हयादार।
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लाजवंती  : स्त्री० [हिं० लजालू] १. लज्जाशील स्त्री। २. लजालू नाम का पौधा। छुई-मुई।
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लाजवर्द  : पुं० [सं० राजवर्त्तक से फा०] [वि० लाजवर्दी] १. प्रायः जंगाली या हलके नीचे रंग का एक प्रसिद्ध बहुमूल्य पत्थर या रत्न जिसके तल पर सुनहली चित्तियाँ होती हैं, रावटी। २. विलायती नील जो गंधक के मेल से बनता और बहुत बढ़िया तथा गहरा होता है।
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लाजवर्दी  : वि० [फा०] लाजवर्द के रंग का। गहरा नीला।
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लाजा  : स्त्री० [सं० लाज+टाप्] १. चावल। २. भूने हुए धान की खील। लावा।
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लाजिम  : वि० [अं० लाजिम] आवश्यक और उचित। कर्त्तव्य के विचार के अपरिहार्य।
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लाजिमी  : वि० =लाजिम।
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लाँझ  : स्त्री० [देश] बाधा। विघ्न।
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लाट  : पुं० [सं०] १. एक प्राचीन देश जहाँ अब भडौच अहमदाबाद आदि नगर है। गुजरात का एक भाग। २. उक्त देश का निवासी। ३. कपड़ा, विशेषतः फटा-पुराना कपड़ा। ४. ‘लाटानुप्रास’। स्त्री० [हिं० लट्ठ ?] १. ऊँचा, बड़ा और मोटा खम्भा। जैसे—तालाब के बीच में गाड़ी हुई लाट। २. उक्त प्रकार की कोई वास्तुरचना। मीनार। जैसे—कुतुबमीनार की लाट। ३. वह लम्बा बाँध जो किसी मैदान के पानी के बहाव को रोकने के लिए बनाया जाता है० पुं० [अ० लार्ड] ब्रिटिश शासन में भारत के किसी प्रान्त या देश का सबसे बड़ा शासक। गर्वनर। पुं० [अं० लांट] व्यापारिक क्षेत्र में कटी-फटी, टूटू-फूटी या पुरानी रखी हुई बहुत-सी चीजों का वह विभाग या समूह जो एक ही साथ रखा, बेचा या नीलाम किया जाय। पद—लाट-घाट, लाट-बंदी। पुं०=लाठ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाट-घाट  : पुं० [अ० लाट=ढेर+हिं० घाट=स्थान] व्यापारिक क्षेत्र में वह स्थिति जिसमें कटा-फटा या रहतिया माल एक साथ सस्ते दामों पर थोक बेच दिया गया हो। जैसे—इस दूकान में तो अधिकतर लाट-घाट का ही माल रहता है।
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लाट-बंदी  : स्त्री० [अं० लाँट+फा० बंदी] चीजों के अलग-अलग विभाग करके उनकी राशि या वर्ग बनाने की क्रिया या भाव।
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लाटा  : पुं० [देश] भुने हुए महुए और तिलों को कूटकर बनाए हुए लड्डू। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाटानुप्रास  : पुं० [सं० लाट-अनुप्रास, मध्य० स०] एक प्रकार का शब्दालंकार जिसमें शब्दों की पुनरुति तो होती है परन्तु अन्वय में हेर-फेर करने से तात्पर्य भिन्न हो जाता है। जैसे—पूत सपूत तो क्यों धन संचय। पूत कपूत तो क्यों धन संचय। (कहा०)
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लाटिक  : स्त्री० =लाटी (साहित्यिक शैली)।
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लाटी  : स्त्री० [सं० लाट+अच्+ङीष्] संस्कृत साहित्य में रचना की वह विशिष्ट प्रणाली या शैली जो लाट तथा उसके आस-पास के देशों में प्रचलित थी और जो वैदर्भी तथा पांचाली के मध्य की रीति थी, और गौड़ी की ही तरह भयानक, रौद्र, वीर आदि उग्र रसों के लिए उपयुक्त मानी जाती थी। लाटिका। स्त्री० [अनु० लटलट=गाढ़ा या चिपचिपा होना।] वह अवस्था जिसमें मुँह थूक और होंठ सूख जाते हैं। क्रि० प्र०—लगना।
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लाटीय  : वि० [सं० लाट+छ-ईय] लाट नामक देश का। लाटक।
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लाठ  : स्त्री० [सं० यष्टि, पुं० हिं० लट्ठ] १. कोल्हू में लगी हुई वह बल्ली जो बराबर घूमती रहती है। २. दे० ‘लाट’।
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लाठा-लाठी  : स्त्री० [हिं० लाठी०] आपस में लाठियों से होनेवाली मार-पीट या लड़ाई।
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लाठी  : स्त्री० [सं० यष्ठी, प्रा० लट्ठी] ठस या ठोस बाँस का ६-७ फुट लंबा टुकड़ा। क्रि० प्र०—चलना।—बाँधना।—मारना। २. लाक्षणिक रूप में, सहारा। जैसे—यही लड़का तो बुढ़ापे की लाठी है।
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लाठी-चार्ज  : पुं० [हिं० +अं० ] लोगों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस का भीड़ आदि पर लाठियाँ चलाना।
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लाँड़  : पुं० =लंड (शिश्न)।
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लाड (ड़)  : पुं० [सं० ललन] बच्चों को प्रसन्न करने या रखने के लिए प्रेमपूर्वक व्यवहार। दुलार। क्रि० प्र०—करना।—लड़ाना।
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लाड़-लड़ा  : पुं० [देश] एक प्रकार का साँप जो प्रायः वृक्षों पर रहता है।
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लाड़-लड़ैता  : वि० [हिं० लाड+लड़ाना] १. जिसका बहुत अधिक लाड़ किया गया हो। २. प्यारा। दुलारा।
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लाड़ला  : वि० [हिं० लाड़+ला (प्रत्यय)] [स्त्री० लाड़ली] जिसका या जिसके साथ बहुत लाड़ किया जाय। प्यारा। दुलारा।
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लाड़ा  : स्त्री० [हिं० ला़ड़] [स्त्री० लाड़ी] वर। दूल्हा। (पश्चिम)।
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लाड़ी  : स्त्री० [सं० लाड़ा का स्त्री०] नव-विवाहिता वधू। दुल्हन। उदाहरण—लिखमी सकी रुक्मणी लाडी।—प्रिथीराज।
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लाडू  : पुं० [हिं० लड्डू] १. लड्डू। मोदक। २. दक्षिणी नांरगी।
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लाडो  : स्त्री० [हिं० लाड] ऐसी लड़की या युवती जिसका बहुत लाड हुआ हो या होता हो।
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लात  : स्त्री० [?] १. पैर के नीचे का भाग। पाँव। २. उक्त अंग से किया जानेवाला आघात या प्रहार। पदाघात उदाहरण—काहू लात चपेटन केहु।—तुलसी। क्रि० प्र०—जड़ना।—देना।—मारना।—लगाना। मुहावरा—लात खाना=(क) पैरों की ठोकर या मार सहना। (ख) मार खाना। लात चलाना=पैर से आघात या प्रहार करना। लात जाना=गौ भैस आदि का दूध देते समय दुहने वाले को लात मारकर दूर हट जाना। (किसी चीज को या पर) लात मारना=बहुत ही तुच्छ समझकर दूर करना या हटाना। जैसे—वह नौकरी को लात मार कर घर चला गया। (खाट या रोग को) लात मार कर खड़ा होना=बहुत अधिक रुग्णावस्था में से विशेषतः स्त्रियों का प्रसव के उपरांत, नीरोग होकर चलने-फिरने के योग्य होना।
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लातर  : स्त्री० [हिं० लतरी] पुराना जूता।
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लातरना  : अ० [हि० लात] १. चलते-चलते थक जाना। २. पथ-भ्रष्ट होना। उदाहरण—थिर नृप हिन्दुस्थान, लातरना मग लोभ लग।—दुरसाजी।
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लातीनी  : वि० [अ०] लैटिन देश का। पुं० लैटिन देश का निवासी। स्त्री० लैटिन देश की भाषा।
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लाथ  : पुं० [?] बहाना। हीला।
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लाद  : स्त्री० [हिं० लादना] १. लादने की क्रिया या भाव। लदाई। पद—लाद-फाँद। २. मिट्टी का वह ढोंका जो पानी निकालने की ढेंकी के दूसरे सिरे पर लगा रहता है। स्त्री० [?] १. उदर। पेट। मुहावरा—लाद निकलना=पेट का फूल कर आगे निकलना। तोंद निकलना। २. अंतड़ी। आँत।
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लाद-फाँद  : स्त्री० [हिं० लादना+फाँदना] चीज लादने और बाँधने की क्रिया या भाव।
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लादना  : स० [सं० लब्ध, प्रा० लाद्ध=प्राप्त+ना (प्रत्यय)] १. किसी आदमी, जानवर या चीज पर बहुत सी वस्तुएँ ढेर या भार के रूप में रखना। जैसे—गाड़ी या बैल पर माल लादना। २. किसी पर उसकी इच्छा के विरुद्ध अथवा बलपूर्वक किसी प्रकार का दायित्व या भार रखना। ३. किसी पर आवश्यक या उचित से अधिक दायित्व या भार रखना। जैसे—उसने सारा काम मुझ पर लाद दिया है। संयो० क्रि०—देना। ४. कुश्ती लड़ते समय विपक्षी को अपनी पीठ पर उठा लेना। (पहल०) संयो० क्रि०—लेना।
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लादिय  : पुं० [हिं० लादना+इया (प्रत्यय)] वह जो गाड़ी, पशु आदि पर बोझ लादकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता हो।
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लादी  : स्त्री० [हिं० लादना] १. पशु पर लादा जानेवाला बोझ। २. कपड़ों की वह गठरी जो धोबी गधे पर लादता है। क्रि० प्र०—लादना। ३. बहुत बड़ी गठरी।
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लाधना  : स० [सं० लब्ध, प्रा० लाद्ध] प्राप्त करना या पाना। उदाहरण—देवाधि देव चै लाधै दूबै।—प्रिथीराज।
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लाधा  : वि० [हिं० लाधना] १. कठिनता से प्राप्त किया हुआ। २. अच्छा। बढ़िया। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लान  : पुं० [अं० लॉन] वह समतल मैदान जिसमें घास उगी हुई हो।
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लान-टेनिस  : पुं० [अं०] गेंद का एक प्रकार का खेल जो लॉन अर्थात् छोटे मैदान में खेला जाता है।
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लानंग  : पुं० [देश] एक प्रकार का अंगूर जो कमाऊँ और देहरादून में होता है। इससे अर्क निकाला और शराब बनाई जाती है।
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लानत  : स्त्री० [अ० लअनत] दूषित या निन्दनीय आचरण या व्यवहार करने पर किसी को कही जानेवाली तिरस्कारपूर्ण बातें। क्रि० प्र०—देना।—पड़ना०-भेजना।
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लानती  : वि० [हिं० लानत+ई (प्रत्यय)] १. जो सदा लानत मलमत सुनने का अभ्यस्त हो। सदा फटकार सुननेवाला। २. परम निन्दनीय और घृणित दुराचारी।
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लाना  : स० [हिं० लेना+आना, ले आना] १. कोई वस्तु उठाकर या व्यक्ति को अपने साथ चलाकर कही से ले आना या पहुँचना। संयो० क्रि०—देना। २. समक्ष या सामने लाकर उपस्थित करना। जैसे—किसी के सामने कोई मामला या विषय लाना। २. उत्पन्न या पैदा करना। स० [हिं० लाय=आग (प्रत्यय़)] आग लगाना। जलाना। स० [हिं० लगाना] १. संलग्न करना। लगाना। दिन लगाना उदाहरण—मन सुख पैहो हरि चित लाए। २. समय व्यतीत करना। दिन लगाना। उदाहरण—हरि गए परदेश बहुत दिन लाए री। पुं० किसी पर लगाया हुआ अपना दोष या लांछन। जैसे—किसी पर लाने लगाना। क्रि० प्र०—लगाना।
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लाना-बंदी  : स्त्री० [हिं० लाना=लगाना+फा० बंदी] खेत की वह पैमाइश जो जोते जानेवाले हलों की संख्या के विचार से की जाती है।
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लाने  : अव्य० [हिं० लाना=लगाना] वास्ते। (लिए बुदेल०)
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लाप  : पुं० [सं०√लप् (कथन)+घञ्] बोलना। कथन। जैसे—वार्तालाप।
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लांपट्य  : पुं० [सं० लंपट+ष्यञ्] लंपटता।
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लापसी  : स्त्री०=लपसी।
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लापिका  : स्त्री० [सं०√लप्+ण्वुल्—अक+टाप्, इत्व] १. एक तरह की पहेली जिसके ये दो भेद होते हैं—अंतर्लापिका और बहिर्लापिका।
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लापी (पिन्)  : वि० [सं०√लप्+णिनि] १. बोलनेवाला। २. पश्चात्ताप करनेवाला।
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लाप्य  : वि० [सं०√लप्+ण्यत्] १. बोलने या कहने योग्य। २. जिससे बात-चीत की जा सके। संभाष्य।
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लाफ़  : स्त्री० [फा०] १. लंबी-चौड़ी बातें हाँकने की क्रिया या भाव। २. इस प्रकार कही जानेवाली बात। डींग।
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लाबर  : वि०=लबार।
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लाँबा  : वि० [स्त्री० लाँबी]=लंबा।
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लाभ  : पुं० [सं०√लभ् (प्राप्ति)+घञ्] १. कोई चीज हाथ में आना। प्राप्त होना। मिलना। प्राप्ति। लब्धि। जैसे—पुण्य का लाभ होना। (गेन)। २. किसी प्रकार का होनेवाला हित। उपकार। फायदा। (बेनिफिट) जैसे—दवा से होनेवाला लाभ। ३. रोजगार आदि में होनेवाला मुनाफा (प्रॉफिट)।
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लाभ-कारक  : वि० [सं० ष० त०] जिससे लाभ होता हो। फल करानेवाला। फायदेमंद।
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लाभ-दायक  : वि० [सं० ष० त०] जो लाभ कराता हो। लाभ देनेवाला।
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लाभ-मद  : पुं० [सं० मध्य० स०] वह मद या अहंकार जिसके कारण मनुष्य अपने आपको लाभवाला और दूसरे को हीन-पुण्य समझे। (जैन)
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लाभ-स्थान  : पुं० [सं० ष० त०] जन्म-कुंडली में लग्न ग्यारहवाँ स्थान जो धन-धान्य, संतान, विद्या, आयु आदि का सूचक होता है। (फलित ज्योतिष)
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लाभकारी (रिन्)  : वि० [सं० लाभ√कृ+णिनि] लाभकारक।
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लाभांतराय  : पुं० [सं० लाभ-अंतराय, स० त०] वह अंतराय कर्म जिसके उदय होने से मनुष्य के लाभ में विघ्न पड़ता है। (जैन)
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लाभार्थी (थिन्)  : पुं० [सं० लाभ√अर्थ (चाहना)+णिनि] १. वह जो किसी प्रकार के लाभ की कामना करता हो। २. दे० हिताधिकारी।
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लाभालाभ  : पुं० [सं० लाभ-अलाभ, द्व० स०] लाभ और अलाभ। हानि-लाभ। (प्रॉफिट ऐंड लॉस)।
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लाभांश  : पुं० [सं० लाभ-अंश, ष० त०] लाभ का वह अंश जो किसी कारखाने के हिस्सेदारों को उनके द्वारा लगाई हुई पूँजी के अनुपात में मिलता है। (डिविडेन्ड)
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लाम  : पुं० [फा०] १. सेना फौज। मुहावरा—लाम बाँधना=किसी पर चढ़ाई करने के लिए सेना इकट्ठी करना। पुं० [अ०] अरबी वर्ण-माला में ल् (लघुतम) ध्वनि की इकाई के सूचक अक्षर की संज्ञा। पद—लाम-काफ=गन्दी, बेहूदी और वाहियात बात। अप-शब्द। क्रि० प्र०—कहना।—बकना। मुहावरा—लाम बाँघना=चढ़ाई के लिए सेना तैयार करना। २. जन समूह। भीड़-भाड़। मुहावरा—लाम बाँधना=बहुत से लोगों को इकट्ठा करना। क्रि० वि० दूरी पर दूर।
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लाम-बंदी  : स्त्री० [हिं० लाम+फा० बंदी] सेनाओं को शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित कर युद्धार्थ प्रयाण के लिए तैयार रखना। युद्ध-सन्नाह। (मोबिलाइज़ेशन)
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लामज  : पुं० [सं० लामज्जक] खस की तरह की पीले रंग का एक प्रकार का तृण जो ओषधि के रूप में काम आता है।
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लामज्जक  : पुं० [सं०√ला+क्विप्, ला-मज्जा, ब० स०,+कप्] १. लामज नामक तृण। २. उशीर। खस।
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लामन  : पुं० [?] १. झूलना या लटकना। २. लहँगा। उदाहरण—लामन लिखियो सोतली चलत फिरत रंग जाय।—गीत।
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लामा  : पुं० [ति, ब्लामा=मठाधीश] तिब्बत में बौद्ध धर्मावलंबियों के गुरु जो वहाँ के सर्वोच्च शासक भी हैं। जैसे—दलाई लामा, पंचन-लामा। पुं० [पेरू देश की भाषा] घास खाने और पागुर करनेवाला एक प्रकार का जंतु जो ऊँट की तरह होता है। यह दक्षिणी अमेरिका में पाया जाता है। इसका थूक विषैला होता है, इसे पानी की आवश्यकता नहीं होती। वि० [स्त्री० लामी]=लंबा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लामी  : स्त्री० [देश] राजपूताने का एक प्रकार का फल जो तरकारी बनाने के काम आता है।
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लामे  : अव्य० [हिं० लाम=दूर] १. कुछ दूरी पर। २. एक ओर। हटकर। जैसे—लामे रखना। (पूरब)
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लाय  : स्त्री० [सं० अलात, प्रा० अलाप] १. आग की लपट। ज्वाला। लौ। २. अग्नि। आग।
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लायक  : वि० [अ०] [भाव० लायकी] १. उचित। ठीक। वाजिब। २. उपयुक्त। मुनासिब। ३. गुणवान। गुणी। ४. कुछ कर सकने के योग्य। समर्थ।
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लायकियत  : स्त्री० [अ०] लायक होने की अवस्था या भाव। लायकी। योग्यता।
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लायकी  : स्त्री० [अ० लायक+ई (प्रत्यय)] १. लायक होने की अवस्था, धर्म या भाव। २. योग्यता।
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लायची  : स्त्री० =इलायची।
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लायन  : पुं० [हिं० लगाना=बदले में देना] १. नकद दाम देकर बेची जानेवाली वस्तु। २. वह वस्तु जिसे रेहन रखकर ऋण लिया गया हो।
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लार  : स्त्री० [सं० लाला] १. मुँह में से तार के रूप में निकलनेवाली थूक। मुहावरा—लार टपकाना= कोई चीज देखकर या सुनकर उसे पाने के लिए लालायित होना। २. लसीला पदार्थ। लासा। लुआब। ३. किसी को जाल या धोखे में फँसानेवाली चीज या बात। मुहावरा—लार लगाना=किसी को जाल या धोखे में फँसाने का उपाय या काम करना। स्त्री० [?] अवली। कतार। पंक्ति। अव्य० [राज० लैर=पीछे] किसी के पीछे या साथ लगकर। उदाहरण—दिया लिया तेरे सँग चलेगा, और नहीं तेरे लार।
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लारी  : स्त्री० [अं०] बड़ी मोटर गाड़ी, जिसमें विशेष रूप से सवारियाँ और उनका सामान ढोया जाता है। अव्य०=लार (पीछे या सँग)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लारू  : पुं० =लाडू (लड्डू)।
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लारे  : अव्य० [?] १. वास्ते। लिए। २. आधार पर। उदाहरण—राग को आदि जिती चतुराई सुजान कहै सब याही के लारे।—सुजान।
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लार्ड  : पुं० [अं०] १. परमेश्वर। ईश्वर। २. मालिक। ३. जमींदार। ४. इंगलैंड के राजा द्वारा उच्च कोटि के कार्यकर्ताओं को प्रदान की जानेवाली एक उपाधि।
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लाल  : पुं० [सं० लालक से] १. छोटा और प्रिय बालक। प्यारा बच्चा। २. पुत्र बेटा। उदाहरण—तेरै लाल मेरो माखन खायो।—सूर। ३. बालक। लड़का। ४. प्रिय व्यक्ति। ५. श्रीकृष्ण का एक नाम। पुं० [सं० लालन] दुलार। लाड। स्त्री० १. =लालसा। २. =लार। पुं० [अ० लअल] १. माणिक या मानिक नामक रत्न। २. मानिक का रंग। मुहावरा—लाल उगलना=बोलने के समय बहुत अच्छी और प्यारी बातें कहना। वि० १. उक्त रत्न के रंग का। रक्त वर्ण का। सुर्ख। जैसे—लाल कपड़ा, लाल कागज। २. आवेश, क्रोध तथा लज्जा आदि के कारण जिसका वर्ण रक्त हो गया हो। जैसे—आँखें या चेहरा लाल होना। तप कर लाल अंगारा होना। मुहावरा—लाल पड़ना या होना=क्रुद्ध होना। नाराज होना। ३. (चौसर के खेल में गोटी) जो चारों ओर से घूमकर बिलकुल बीच वाले खाने में पहुँच गई हो, और जिसके लिए कोई चाल बाकी न रह गई हो। मुहावरा—(किसी की) गोटी लाल होना=यथेष्ट प्राप्ति या फल सिद्ध होना। ४. (चौसर के खेल का खिलाडी) जिसकी सब गोटियाँ बीच के घर में पहुँच चुकी हों और जिसे कोई चाल चलना बाकी न रह गया हो। ऐसा खिलाड़ी जीता हुआ समझा जाता है ५. (खिलाड़ी) जो खेल में औरों से पहले जीत गया हो। ६. धन-सम्पत्ति, सन्तान आदि से परम सुखी। मुहावरा—लाल होना या लालो लाल होना=यथेष्ट सम्पन्न और सुखी होना। पुं० १. एक प्रसिद्ध छोटी चिड़िया जिसका शरीर कुछ भूरापन लिये लाल रंग का होता है इसकी मादा को ‘मुनियाँ’ कहते हैं। २. चौपायों के मुँह में होनेवाला एक प्रकार का रोग।
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लाल अगिन  : पुं० [हिं० लाल+अगिन] भूरे लाल रंग का एक पक्षी, जिसका गला नीचे की ओर सफेद होता है।
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लाल अंबारी  : स्त्री० [हि० लाल+अम्बारी] एक प्रकार का पटुआ जिसके बीज दवा के काम आते हैं।
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लाल आलू  : पुं० [हिं० लाल+आलू] १. रतालू। २. अरुई। घुइयाँ।
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लाल इलायची  : स्त्री० [हिं० लाल+इलायची] बड़ी इलायची।
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लाल कच्चू  : पुं० [हि० लाल+कच्चू] गजकर्ण आलू। बंडा।
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लाल कलमी  : पुं० [हिं० लाल+कलमी] चाँदनी या गुल चाँदनी नाम का पौधा और उसका फूल।
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लाल कीन  : पुं० =नानकीन।
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लाल कोठी  : स्त्री० [हिं०] व्यभिचारिणी स्त्रियों का अड्डा जहाँ वे कसब कमाती हैं।
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लाल घास  : स्त्री० [हिं० लाल+घास] गोमूत्र नामक तृण।
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लाल चीता  : पुं० [हिं० लाल+चीता] लाल फूलों वाला चित्रक या चीता।
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लाल चीनी  : पुं० [हिं० लाल+चीनी] एक प्रकार का कबूतर, जिसका सारा शरीर सफेद और सिर पर बहुत सी लाल बिदियाँ होती हैं।
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लाल पानी  : पुं० [हिं० लाल+पानी] शराब। मद्य।
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लाल पिलका  : पुं० [हिं० लाल+पिलका] सफेद डैनों तथा दुमवाला लाल रंग का एक प्रकार का कबूतर।
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लाल पेठा  : पुं० [हि० लाल+पेठा] कुम्हड़ा।
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लाल सागर  : पुं० [हिं० लाल+सं० सागर] भारतीय महासागर का वह अंश जो अरब और अफ्रीका के बीच में पड़ता है और जिसके पानी में कुछ ललाई झलकती है।
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लाल-ग्रंथि  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] मुँह के अन्दर की वे ग्रन्थियाँ जो लाला या लार उत्पन्न करती हैं। (सैलिवरी ग्लैण्ड)।
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लाल-चंदन  : पुं० [हिं०+सं०] रक्त चंदन।
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लाल-पगड़ी  : स्त्री० [हिं०] पुलिस का सिपाही या अधिकारी। (उत्तर-प्रदेश)
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लाल-पतंग  : पुं० [हिं०] कपास के पौधों में लगनेवाला एक प्रकार का लाल कीड़ा।
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लाल-फीता  : पुं० [हिं०] १. लाल रंग की पट्टी या फीता जिससे सरकारी कार्यालयों में कागज-पत्र, नत्थियाँ आदि बाँधी जाती हैं। २. लाक्षणिक और व्यंग्यात्मक रूप से सरकारी कार्यों के संपादन निर्णय आदि में लगनेवाली अनावश्यक देर। दीर्घ-सूत्रता (रेडटेप)।
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लाल-बीबी  : स्त्री० [हिं०] सैनिकों की परिभाषा में निम्न कोटि की और कसब कमानेवाली वेश्या।
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लाल-बुझक्कड़  : पुं० [हिं० लाल+बूझना] ऐसा मूर्ख व्यक्ति जो वास्तव में जानता तो कुछ भी न हो, फिर भी अटकल-पच्चू और ऊट-पटांग अनुमान लगाकर दुरूह बातों का कारण तथा समस्याओं का समाधान करने में न चूकता हो।
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लाल-बेग  : पुं० [हिं० लाल+तु० बेग] १. एक कल्पित पीर। २. लाल रंग का एक प्रकार का कीड़ा।
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लाल-बेगी  : पुं० [हिं०] लाल बेग नामक पीर का अनुयायी अर्थात् मुसलमान भंगी।
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लाल-भक्त  : पुं० [हिं० लाल+सं० भक्त] खोई या लावा का पकाया हुआ भात, जो रोगियों को पथ्य में दिया जाता है।
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लाल-भरेंड़ा  : पुं० [हिं०] एक तरह का छोटा झाड़।
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लाल-मन  : पुं० [हिं० लाल+मणि] १. श्रीकृष्ण। २. लाल रंग का एक प्रकार का तोता जिसकी चोंच गुलाबी, दुम काली और डैने हरे होते हैं।
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लाल-मिर्च  : पुं० [हिं] १. एक तरह का छोटा पौधा जिसमें फली के आकार के फल होते हैं। जो आरम्भ में हरे तथा पकने पर लाल हो जाते हैं। २. उक्त पौधे की फली अथवा उसकी बुकनी जो कटु, तीक्ष्ण स्वादवाली होती है और नमकीन व्यंजनों में डाली जाती है।
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लाल-मुनियाँ  : स्त्री० [हिं०] एक प्रकार की छोटी चिड़िया।
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लाल-मुरगा  : पुं० [हिं०] १. एक प्रकार का पहाड़ी शिकारी पक्षी जिसका शिकार किया जाता है। २. गुल-मखमली नाम का पौधा और उसका फूल। मयूर-शिखा।
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लाल-मुँहाँ  : पुं० [हिं०] मुँह में निकलने वाले रंग के छाले जिसकी गिनती रोग में होती है। निनावाँ का एक प्रकार। वि० लाल मुँहवाला।
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लाल-मूली  : स्त्री० [हिं० लाल+मूली] शलजम। शलगम।
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लाल-लाडू  : पुं० [हिं० लाल=लाडू-लाडू] एक प्रकार की नारंगी।
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लाल-विष  : पुं० [सं० ब० स०] ऐसा जंतु जिसके मुँह की लार में विष रहता हो। जैसे—मकड़ी, छिपकली आदि।
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लाल-शक्कर  : स्त्री० [हिं० लाल+शक्कर] बिना साफ की हुई चीनी। खाँड़।
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लाल-सफरी  : स्त्री० [हिं०] अमरूद।
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लाल-समुद्र  : पुं० =लाल सागर।
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लाल-सर  : पुं० [हिं० लाल+सर] एक प्रकार का पक्षी जिसकी गरदन और सिर लाल रंग का होता है।
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लाल-साग  : पुं० [हिं० लाल+साग] मरसा नाम का साग।
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लाल-सिखी  : पुं० [हिं० लाल+शिखा] मुर्गा।
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लाल-सिरा  : पुं० [हिं० लाल+सिरा=सिर] एक प्रकार की बत्तख जिसका सिर लाल होता है।
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लालक  : वि० [सं०√लल (इच्छा)+ण्वुल—अक] (लालन अर्थात्) दुलार-प्यार करनेवाला। पुं० विदूषक।
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लालच  : पुं० [सं० लालसा] [वि० लालची] कोई चीज पाने या लेने के लिए मन में होनेवाली ऐसी अत्यधिक चाह या लालसा जो अनुचित या अशोभन होने के कारण सहसा औरो पर प्रकट न की जा सकती हो। लौलुपतापूर्ण लोभ। जैसे—बहुत लालच करना अच्छा नहीं होता।
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लालचहा  : वि० =लालची।
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लालची  : वि० [हिं० लालच+ई (प्रत्यय)] बहुत लालच करनेवाला। लोभी।
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लालटेन  : स्त्री० [अं० लैटर्न] किसी प्रकार का ऐसा आधान या उपकरण जिसमें तेल भरने का खजाना और जलाने के लिए बत्ती लगी रहती है और जलती हुई बत्ती को बुझाने से बचाने के लिए चारों ओर शीशे का अथवा और किसी प्रकार का आवरण भी लगा रहता है। कंडील।
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लालड़ी  : स्त्री० [हिं० लाल (रत्न)+ड़ी (प्रत्यय)] नत्थ, बाली आदि में लगाया जानेवाला एक तरह का नग।
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लालदाना  : पुं० [हिं० लाल+दाना] लाल रंग की खसखस पूरब)।
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लालन  : पुं० [सं०√लाल् (इच्छा)+णिच्+ल्युट—अन] यथेष्ट प्रेम पूर्वक बालकों का आदर करना। लाड़-प्यार। पद—लालन पालन। पुं० [हिं० लाल] १. प्रिय। पुत्र। प्यारा बेटा। २. बालक। लड़का। स्त्री० [?] चिरौजी। पयाल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लालना  : स० [सं० लालन] १. लाड़ या दुलार करना। उदाहरण—लालन जोग लखन लघु लोने।—तुलसी। २. पालन-पोषण करना। पालना। उदाहरण—कलप बेलि जिमि बहु विधि लाली।—तुलसी।
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लालनीय  : वि० [सं०√लल्+णिच्+अनीयर्] जिसका लालन करना उचित हो या किया जाने को हो।
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लालरी  : स्त्री० =लालड़ी।
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लालसा  : स्त्री० [सं०√लस् (दीप्ति)+यङ्, द्वित्व, +अ+टाप्] १. बहुत दिनों से मन में बनी रहनेवाली इच्छा। साध। जैसे—माँ के दर्शनों की लालसा पूरी न हो सकी। २. गर्भिणी की इच्छा। दोहद। ३. अनुनय। ४. खेद। ५. एक प्रकार का वृत्त।
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लालसी  : वि० [सं० लालसा+ई (प्रत्यय)] लालसा या अभिलाषा करनेवाला।
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लाला  : स्त्री० [सं०√लल् (इच्छा)+णिच्+अच्+टाप्] मुँह से निकलनेवाली लाल। थूक। पुं० [सं० लालक] १. प्रायः कायस्थों, वनियों, पंजाबियों आदि के नाम के पहले लगनेवाला आदर-सूचक शब्द। जैसे—लाला लाजपत राय। २. बातचीत में प्रुयक्त होनेवाला एक प्रकार का आदरसूचक संबोधन। मुहावरा—(किसी से) लाला भइया करना=किसी को आदरपूर्वक संबोधन करते हुए उससे बातचीत करना या उसे समझाना-बुझाना। बीच-बीच में लाला, भइया आदि मर्यादा सूचक संबोधन करते हुए बातें करना। जैसे—तुम्हें लाला भइया करके उनसे अपना नाम निकालना चाहिए। ३. कायस्थ जाति या कायस्थों का सूचक शब्द। जैसे—ये लाला लोग बहुत चतुर होते हैं। ४. छोटे बच्चों के लिए प्रेमसूचक संबोधन। पुं० [फा०] पोस्ते का लाल रंग का फूल जिसमें प्रायः काली खसखस पैदा होती है। गुले लाला। वि०=लाल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाला स्रव  : पुं० [सं० ष० त०] १. मुँह से लार बहना। २. वह जिसके मुँह से लार बहती है। जैसे—छिपकली, मकड़ी।
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लाला-प्रमेह  : पुं० [सं० ष० त०] प्रमेह का वह प्रकार जिसमें पेशाब लाला (लार) की तरह तार बाँधकर होता है।
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लाला-मेह  : पुं० =लाला प्रमेह।
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लाला-स्राव  : पुं० [सं० ष० त०] १. मुँह से थूक या लार गिरना। २. मकड़ी का जाला।
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लालाटिक  : वि० [सं० ललाट+ठक्—इक] १. ललाट अर्थात् मस्तक संबंधी। २. लाक्षणिक अर्थ में, नियति या भाग्य से संबंधित अथवा उस पर आधारित। ३. सतर्क। ४. निकम्मा। व्यर्थ। पुं० १. कामशास्त्र में एक प्रकार का आलिंगन। २. सेवक।
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लालायित  : भू० कृ० [सं० लाला+क्यच्+क्त] १. जिसके मुँह में बहुत अधिक लालच के कारण लाला अर्थात् लार या पानी भर आया हो। २. जिसका अच्छी तरह लालन अर्थात् दुलार या लाड़ किया गया हो।
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लालि  : स्त्री० =लालसा। उदाहरण—ये सोरहौ सिंगार बरनि के करहिं देवता लालि।—जायसी।
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लालित  : भू० कृ० [सं०√लल् (इच्छा)+णिच्+क्त] १. जिसका लालन किया गया हो। दुलारा हुआ। २. जो पाला-पोसा गया हो।
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लालितक  : पुं० [सं० लालित+कन्] वह प्रिय जीव या प्राणी जिसका लालन-पालन किया गया हो।
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लालित्य  : पुं० [सं० ललित+ष्यञ्] १. ललित होने की अवस्था, गुण या भाव। २. रमणीयता। ३. हाव-भाव।
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लालिनी  : स्त्री० [सं०√लल्+णिनि+ङीष्] कामुक स्त्री।
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लालिमा  : स्त्री० [हिं० लाल] लाल होने की अवस्था या भाव। लाली।
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लाली  : स्त्री० [हिं० लाल+ई (प्रत्यय)] १. लाल होने की अवस्था या भाव। अरुणता। ललाई। लालपन। सुर्खी। २. इज्जत, प्रतिष्ठा या सम्मान जिसके बने रहने पर चेहरा लाल रहता है। रौनक। शोभा। (प्रायः चेहरे या मुँह के साथ प्रयुक्त) जैसे—चलो, तुम्हारे चेहरे (या मुँह) की लाली रह गई, अर्थात् प्रतिष्ठा बनी रह गई। नष्ट नहीं होने पाई। ४. यश। कीर्ति। ५. पकी ईटों का चूर्ण। सुर्खी। पुं० [सं० लालिन] १. लालन पालन करनेवाला व्यक्ति। २. व्यक्तियों को कुमार्ग पर ले जानेवाला पुरुष।
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लाले  : पुं० बहु० [हिं० लाला] अभिलाषाएँ। मुहावरा—(किसी चीज के) लाले पड़ना=अप्राप्य या दुष्प्राप्य वस्तु के लिए बहुत अधिक तरसना। जान के लाले पड़ना=विकट या संकट पूर्ण स्थिति में पहुँचना।
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लालो  : पुं० =लाले।
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लाल्य  : वि० [सं०√लल् (इच्छा)+णिच्+यत्] लालनीय।
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लाल्हा  : पुं० दे० ‘मरसा’ (साग)।
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लाव  : पुं० [सं०√लू (छेदना)+ण] १. लवा नामक पक्षी। २. लौंग। ३. काटने की क्रिया या भाव। स्त्री० [देश या सं० रज्जू] मोटा रस्सा। मुहावरा—लाव चलाना=चरसे के द्वारा कूएँ से पानी निकालकर खेत सींचना। २. उतनी भूमि जितनी एक दिन में एक चरसे से सींची जा सके। ३. लंगर में बांधने का रस्सा। ४. डोरी। रस्सी। पुं० [हिं० लावा] ऋण के रूप में किसी को दिया जानेवाला धन। मुहावरा—लाव उठाना= (क) चीज बंधक रखकर उधार देना। (ख) कष्ट के समय खेतिहरों की सहायता करने के लिए उन्हें धन देना। लाव-लगाना=उधार लिया हुआ रुपया, अन्नादि देकर चुकाना। स्त्री० [हिं० लाव=आग] अग्नि। आग।
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लावक  : पुं० [सं० लाव+कन्] लवा (पक्षी)। पुं० [देश] १. चावल की जाड़े की फसल। २. चरसा। ३. उतना समय जितना एक बार मोट खींचने में लगता है।
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लावण  : पुं० [सं० लवण+अण्] सुँघनी। नस्य। वि० १. लवण संबंधी। नमक का। २. जिसमें नमक मिला हो। नमकीन। ३. (ओषधि आदि) जिसका लवण या नामक के द्वारा संस्कार हुआ हो।
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लावणिक  : पुं० [सं० लवण+ठअ—इक] १. वह जो नमक बनाता या बेचता हो। नमक का प्यापारी। २. नमक रखने का बर्तन। नमकदान। वि० =लावण।
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लावण्य  : पुं० [सं० लवण+ष्यञ्] १. लवण का धर्म या भाव। नमक-पन। २. शील या स्वभाव की उत्तमता। ३. आकृति आदि में होनेवाली नमकीनी। चेहरे या शरीर का नमक अर्थात् सलोनापन।
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लावण्या  : स्त्री० [सं० लावण्य+अच्+टाप्] ब्राह्मी (बूटी)।
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लावदार  : वि० [हिं० लाव=आग+फा० दार (प्रत्यय)] भरी हुई तोप। पुं० वह जो पुरानी चाल की तोपों में बत्ती लगाकर उन्हें चलाता या छोड़ता था।
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लावनता  : स्त्री० =लावण्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लावना  : स० [हिं० लगना] १. लगना। स्पर्श करना। उदाहरण—अंतर पट दे खोल सबद उर लावरी।—कबीर। २. पूरा करना। उदाहरण—नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा।—तुलसी।
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लावनि  : स्त्री० [सं० लावण्य] लावण्य। सुन्दरता। स्त्री० =लावनी।
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लावनी  : स्त्री० [सं० लावणी] १. संगीत में देशी रागों के अंतर्गत एक उपराग जिसका विकास मगध के पास लावणक नामक प्रदेश के लोक-गीतों में हुआ था। उसके कई भेद हैं। यथा—लावनी कलिंगड़ा, लावनी जंगला, लावनी भूपाली, लावनी रेखता आदि। २. लोक में प्रचलित उपराग के वे विशिष्ट प्रकार जो प्रायः चंग या डफ बजाकर उसके साथ गाये जाते हैं। ३. उक्त प्रकार की वह कविता या गीत जो चंग या डफ बजाकर गाया जाता हो।
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लावनी-बाज  : पुं० [हिं०+फा०] [भाव० लावनी-बाजी] वह जो चंग या डफ पर लावनियाँ गाता हो।
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लावा  : पुं० [सं० लाजा] ज्वार, धान, रामदाने आदि को बालू में भूनने पर तैयार होनेवाला वह रूप जिसमें दाने-फूटकर फैल जाते हैं। मुहावरा—(किसी पर) लावा मेलना= (क) किसी को अधिकार या वश में करने के लिए मंत्र पढ़ते हुए उस पर लावा फेंकना। (ख) अधिकार या वश में करना। वि० [हिं० लावना] लगाई-बुझाई करनेवाला। जो पक्षों में झगड़ा खड़ा करनेवाला। पुं० [हिं० लवना] फसल काटनेवाला मजदूर। पुं० =लवा। पुं० [अं० लाबत] राख, पत्थर और धातु आदि मिला हुआ वह द्रव पदार्थ जो प्रायः ज्वालामुखी पर्वतों के मुख से विस्फोट होने पर निकलता है। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लावा-परछन  : पुं० [हिं०] एक वैवाहित रीति जिसमें कन्या की झोली अथवा उसके हाथ में पकड़ी हुई डलिया में उसके भाई लावा डालते या छोड़ते हैं। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लावा-लुतरा  : वि० [हिं०] इधर की बाते उधर लगाकर लोगों को आपस में लड़ानेवाला।
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लावाणक  : पुं० [सं०] मगध का निकटवर्ती एक देश।
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लावु  : पुं० [हिं० अलावू] कद्दू। घीया। लौआ।
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लाव्य  : वि० [सं०√ल् (छेदन)+ण्यत्] लवने अर्थात् काटने के योग्य।
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लाश  : स्त्री० [फा०] १. किसी प्राणी का मृत शरीर। शव। जैसे—हाथी की लाश। २. क्षत-विक्षत तथा मृतप्राय शरीर। जैसे—लाशें तड़प रही थीं। ३. लाक्षणिक अर्थ में, बहुत भारी व्यक्ति।
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लाशा  : वि० [फा०] अति दुर्बल, क्षीणकाय। पुं० मृत शरीर। लाश। शव।
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लाष  : स्त्री० =लाख (लाक्षा)।
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लाषना  : स०=लाखना।
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लास  : पुं० [सं०√लस् (शोभित होना)+घञ्] १. एक प्रकार का नाच। २. थिरकने या मटकने की क्रिया या भाव। ३. जूस। रस। शोरबा। पुं० [हिं० लसना] १. लसने अर्थात् सुन्दर जान पड़ने की अवस्था या भाव २. छवि। शोभा। ३. चमक। दीप्ति। पुं० [?] उस छड़ के दोनों कोने जो पाल बाँधने के लिए मस्तूल में लटाकाया जाता है (लश०) मुहावरा—लास करना=चलती हुई नाव को रोकने के लिए डाँड़ों को बहते पानी में बेड़े बल में ठहराना। (लश०) स्त्री०=लाश। (शव) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लासक  : पुं० [सं०√लस् (क्रीड़ा+ण्वुल—अक] १. लास्य अर्थात् कोमल अंग-भंगी से युक्त नृत्य करनेवाला नर्तक। २. मयूर। मोर। ३. शिव। ४. घड़ा। मटका। ५. एक रोग जिसमें शरीर का कोई अंग बराबर हिलता-डुलता रहता है। वि० १. नाचनेवाला। २. हिलता-डुलता रहनेवाला। ३. खेलवाड़ी। ४. क्रीड़ा रस।
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लासकी  : स्त्री० [सं० लासक+ङीष्] नर्तकी।
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लासकीय  : वि० [सं० लासक+छ—ईय] १. लासक संबंधी। २. लासक रोग से ग्रस्त या पीड़ित।
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लासन  : पुं० [अं० लौशिग] जहाज बाँधने का मोटा रस्सा। लहासी। पुं० [सं०] नाचने की क्रिया या भाव।
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लासा  : पुं० [हिं० लास] १. कोई लसवाला या लसीला पदार्थ। विशेषतः ऐसा पदार्थ जिसके द्वारा दो चीजें परस्पर चिपकाई जाती हैं। २. वह लसीला पदार्थ जिससे बहेलिये चिड़ियाँ फँसाते हैं। चेंप। लोपन। मुहावरा—लासा लगाना=किसी को फँसाने की युक्ति रचना। लासा होना=सदा साथ लगे रहना। ३. वह साधन जिससे किसी को फँसाया जाय।
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लासि  : पुं० =लास्य।
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लासिक  : वि० [सं० लास+ठन्—इक] [स्त्री० लासिका] नाचनेवाला।
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लासिका  : स्त्री० [सं० लासिक+टाप्] १. नर्तकी। २. वेश्या। ३. उपरूपक का एक भेद।
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लासी  : स्त्री० [देश०] गेहूँ, सरसों आदि की फसल में लगनेवाला एक तरह का काला छोटा कीड़ा।
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लासु  : स्त्री० =लाश।
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लास्य  : पुं० [सं०√वस् (क्रीड़ा)+ण्यत्] १. नृत्य। नाच। २. दो प्रकार के नृत्यों में से एक। (दूसरा प्रकार तांडव कहलाता है) विशेष—लास्य वह नृत्य कहलाता है, जिसमें कोमल अंग-भंगियों के द्वारा मधुर भावों का प्रदर्शन होता है, और जो श्रृंगार आदि कोमल रसों को उद्दीप्त करनेवाला होता है। इसमें गायन तथा वादन दोनों का योग रहता है। वि० कोमल तथा मधुर। जैसे—स्वरों में र की ध्वनि लास्य है।
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लाह  : स्त्री० [सं० लाक्षा] लाख। चपड़ा। स्त्री० [?] चमक। दीप्ति। पुं० =लाभ।
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लाहक  : वि० [हिं० लाह] १. इच्छा करने या चाहनेवाला। २. लाभ के रूप में प्राप्त होनेवाला। ३. आदर या कदर करनेवाला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाहन  : पुं० [देश] १. पशुओं को खिलाया जानेवाला महुए का फल जिसमें से मद्य खींच लिया गया हो। २. जूसी और महुए को मिलाकर उठाया हुआ खमीर। ३. किसी चीज का और किसी तरह उठाया हुआ खमीर। ३. किसी चीज का और किसी तरह उठाया हुआ खमीर। ४. गौओं आदि के ब्याने पर उन्हें पिलाई जानेवाली दवाएँ। ५. खलिहान में अनाज ढोकर लाने की मजदूरी।
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लाहल  : अव्य०=ला हौल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाहा  : पुं० =लाह (लाभ)।
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लाही  : वि० [हिं० लाहा] लाल या लाखी रंग का। स्त्री० १. लाल रंग के वे छोटे कीड़े जो लाख बनाते हैं। २. ऊख की फसल में लगनेवाला लाल रंग का एक तरह का छोटा कीड़ा। स्त्री० [देश] १. सरसों। २. काली सरसों। ३. तीसरी बार साफ किया हुआ शोरा। स्त्री० =लाई (धान, बाजरे आदि का लावा)।
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लाहु  : पुं० =लाहु (लाभ)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लाहौरी नमक  : पुं० [हिं०] सेंधा नमक।
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लाहौल  : अव्य० [अ०] अरबी के एक प्रसिद्ध वाक्य का पहला शब्द जिसका व्यवहार प्रायः भूत-प्रेत को भगाने या किसी बात के संबंध में परम उपेक्षा अथवा घृणा प्रकट करने के लिए किया जाता है। पूरा वाक्य इस प्रकार है— ‘लाहौल वला कूव्वत इल्ला बिल्लाह’ जिसका अर्थ है, ईश्वर के सिवा और किसी में कुछ सामर्थ्य नहीं है। मुहावरा—लाहौल पढ़ना= (क) उक्त वाक्य का उच्चारण करना। (ख) परम उपेक्षा, घृणा या तिरस्कार सूचित करना।
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