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व्याप्ति  : स्त्री० [सं० वि+आप्+वितन्] [वि० व्याप्त, व्याप्य] १. किसी वस्तु या स्थान के सब अंगों या भागों में फैले हुए या व्याप्त होने की अवस्था, क्रिया या भाव। (परवेज़न)। २. साधारणतः सभी अवस्थाओं में व्याप्त होने का भाव (जेनैरलिटी)। ३. न्याय शास्त्र में किसी एक पदार्थ में दूसरे पदार्थ का पूर्ण रूप से मिला या फैला हुआ होना। ४. विकृति विज्ञान में किसी रोग की समाप्ति (देखें) के बाद की वह अवस्था जिसमें वह रोग शरीर में रहता है। जैसे—इस रोग की व्याप्ति काल १॰ दिन तक है। ५. आठ प्रकार के ऐश्वर्यों में से एक प्रकार का ऐश्वर्य। ६. ऐसा तत्त्व, नियम या सिद्धान्त जो सब जगह समान रूप से प्रयुक्त हो सकता अथवा होता हो। ७. फैलाव। विस्तार। ८. पूर्णता। ९. प्राप्ति।
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व्याप्तित्व  : पुं० [सं० व्याप्ति+त्व] व्याप्ति का धर्म या भाव।
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