शब्द का अर्थ
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शर :
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पुं० [सं०√शृ+अच्] तीर। बाण। २. सामुद्रिक शास्त्र में शरीर के किसी अंग पर होनेवाला तीर का सा निशान जो शुभाशुभ फल का सूचक माना जाता है। ३. कामदेव के पाँच बाणों के आधार पर पाँच की सूचक संख्या। ४. बरछी या भाले का फल। ५. हिंसा। ६. सरकंडा। ७. सरपत। ८. उशीर। खस। ९. दही या दूध के ऊपर की मलाई। साढ़ी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शर-कोट :
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पुं० [सं० ष० त०] १. इस प्रकार चलाए हुए तीर कि शत्रु के चारों ओर तीरों का घेरा बन जाय। २. इस प्रकार तीरों से बननेवाला घेरा। |
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समानार्थी शब्द-
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शर-पंजर :
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पुं०[सं०] शर कोट (दे०) उदाहरण-जारयो शर-पंजर छार करयो नैऋत्यन को अति चित्त डरयो।—केशव। |
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शर-वारण :
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पुं० [सं० ब० स०] ढाल, जिससे तीरों की बौछार रोकी जाती है। छाल जिससे तीरों का वारण किया जाता है। |
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शरअ :
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स्त्री० [अ०] १. वह सीधा रास्ता जो ईश्वर ने भक्तों के लिए बताया हो। २. कुरान में बतलाया हुआ विधान या इसी प्रकार की आज्ञा जिसका पालन प्रत्येक मुसलमान के लिए जीवन-यात्रा के उपरान्त के प्रसंग में आवश्यक और कर्त्तव्य हो। ३. इस्लामी धर्म-शास्त्र। ४. धर्म। मजहब। ५. दस्तूर। प्रथा। |
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शरई :
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वि० [अ०] १. शरअ के अनुसार किया जानेवाला। २. जो शरअ की दृष्टि से उचित हो। ३. जिसका कुरान में उल्लेख हो और पालन हर मुसलमान के लिए आवश्यक बतलाया गया हो। ४. शरअ का पालन करनेवाला। |
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शरकांड :
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पुं० [सं० ष० त०] सरपत। सरकंडा। |
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शरकार :
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पुं० [सं० शर√कृ (करना)+अण्] वह जो तीर बनाता हो। |
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शरगा :
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पुं० [अ० शर्गः] बादामी रंग का घोड़ा। |
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शरज :
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पुं० [सं० शर√जन् (उत्पन्न करना)+ड] मक्खन। नवनीत। वि० शर से उत्पन्न या बना हुआ। |
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शरट :
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पुं० [सं०√श (गमनादि)+अटन्] १. कुसुंभ नाम का साग। २. करंज। ३. गिरगिट। |
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शरटी :
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स्त्री० [सं० शरट्—ङीष्] लज्जालुक। लाजवंती। |
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शरंड :
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पुं० [सं० शु+अण्डज्] १. पक्षी। चिड़िया। २. छिपकली। ३. गिरगिट। ४. पुरानी चाल का एक प्रकार का गहना। वि० १. कामुक। २. धूर्त। |
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शरण :
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स्त्री० [सं० श्रृं (पूरा करना)ल्युट-अन] १. उपद्रव, कष्ट आदि से बचने के लिए किसी समर्थ के पास आकर अपनी रक्षा कराने की क्रिया या भाव। पनाह। क्रि० प्र०-में आना या जाना। २. ऐसा स्थान जहाँ पर जाकर कोई रक्षित रहे। क्रि० प्र०—पाना।—लेना। ३. रक्षा के लिए भागकर आये हुए व्यक्ति के शत्रु को मारना या उसका नाश करना। ४. घर। मकान। ५. अधीनस्थ व्यक्ति। मातहत। ६. सारन प्रदेश का पुराना नाम। |
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शरण-क्षेत्र :
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पुं० [सं० ष० त०] १. ऐसा स्थान जहाँ अपराधी, भगोड़े आदि पहुँचकर शरण लेते और सुरक्षित रहते हों। शरण स्थान। विशेष-मध्य युग में ईसाई धर्माधिकारी अपनी शरण में आये हुए लोगों को राजकीय अधिकारियों के हाथों से बचा कर अपने यहाँ रख लेते थे। जिससे यह शब्द बना था। आजकल दूसरे देशों के अपराधियों को शरण देनेवाले राज्यों या क्षेत्रों के लिए व्यवह्रत। २. पशु-पक्षियों आदि के लिए वह सुरक्षित स्थान जहाँ वे निर्भयता-पूर्वक रह सकते हों और जहाँ उनका शिकार करने की मनाही हो। शरणास्थान। (संक्चुअरी) |
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शरणगृह :
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पुं० [सं० ष० त०] जमीन के नीचे बनाया हुआ वह स्थान जहाँ लोग हवाई जहाजों के आक्रमण से बचने के लिए छिपकर रहते हैं। (शेल्टर) |
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शरणद :
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वि० [सं० शरण√दा+क] शरण देनेवाला। |
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शरणस्थान :
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पुं० [सं० शरण, ष० त०] शरण-क्षेत्र। (दे०)। |
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शरणा :
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स्त्री० [सं० शरण-टाप्] गंध-प्रसारिणी (लता)। |
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शरणागत :
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भू० कृ० [द्वि० त० स०] किसी की शरण में आया हुआ। |
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शरणागति :
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स्त्री० [सं०] किसी की शरण में आए हुए होने की अवस्था या भाव। |
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शरणापन्न :
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वि० [सं० द्वि० त० स०] शरणागत। |
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शरणार्थी (र्थिन्) :
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वि० [सं० शरण√अर्थ (माँगना)+णिनि, ब० स० वा] जो किसी की शरण चाहता हो। फलतः असहाय तथा विस्थापित। पुं० आजकल वे लोग जो पाकिस्तान से भागकर शरण लेने के लिए भारत में आकर बस गये हैं। (रिफ़्यूजी) |
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शरणि :
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स्त्री० [सं० श्रृं+अनि] १. मार्ग। पथ। रास्ता। २. जमीन। भूमि। ३. हिंसा। |
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शरणी :
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स्त्री० [सं० शरण-ङीष्] १. गंध-प्रसारिणी नाम की लता। २. जयंती। ३. पथ। मार्ग। वि० स्त्री शरण देनेवाली जैसे—अशरण-शरणी भवानी। |
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शरण्य :
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वि० [सं० शरण+यत्] १. जिसके पास या जहाँ पहुँचकर शरण ली जाय या ली जा सके। २. आक्रमण विकार आदि से रक्षित रखने वाला। (प्रोटेक्टिव)। जैसै—आयुर्वेद का शरण्य स्वरूप। |
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शरण्यता :
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स्त्री० [सं० शरण्य०+तल्-टाप्] शरण्य का भाव। |
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शरण्यशुल्क :
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पुं० दे० ‘संरक्षण शुल्क’। |
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शरण्या :
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स्त्री० [सं० शरण्य-टाप्] दुर्गा। |
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शरण्यु :
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पुं० [सं० शृ+अन्यु] १. मेघ। बादल। २. वायु। हवा। स्त्री० सूर्य की पत्नी का नाम। |
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शरत :
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स्त्री० १. =शरत्। २. =शर्त्त। |
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शरतचन्द्र :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] १. शरत् ऋतु का चन्द्रमा। २. विशेषतः शरत् पूर्णिमा का चन्द्र। |
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शरता :
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स्त्री० [सं०] १. शर का भाव। २. वाण-विद्या। उदाहरण—छोड़ि दई शरता...।—केशव। ३. वाण-विद्या में होनेवाली पटुता। |
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शरतिया :
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अव्य०=शर्त्तिया। |
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शरत् :
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स्त्री० [सं० शु+अदि, चर्त्व] १. वैदिक युग में भाद्रपद और आश्विन् महीनों की ऋतु। २. आज-कल आश्विन और कार्तिक महीनों की ऋतु। ३. वत्सर। वर्ष। |
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शरत्काल :
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पुं० [सं० ष० त० स०] आश्विन् और कार्तिक के लिए। शरत् ऋतु। |
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शरत्पद्म :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] श्वेत पद्य। |
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शरत्पर्व :
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पुं० [सं० ष० त० स०] शरद् पूर्णिमा। |
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शरद :
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स्त्री०=शरत्। |
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शरद पूर्णिमा :
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स्त्री० [सं० ष० त० स०] क्वार मास की पूर्णिमा। शारदीय पूर्णिमा। |
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शरदई :
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वि०=सर्दई (सर्दे के रंग का)। |
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शरदंड :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चाबुक। २. सरकंडा। ३. शरदंडा नदी के तट पर बसी हुई साल्व जाति की एक शाखा। |
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शरदंडा :
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स्त्री० [सं० शरदंड-टाप्] पूर्वी पंजाब की एक प्राचीन नदी (कदाचित् शरावती)। |
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शरदंत :
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पुं० [सं० ष० त०] शरद ऋतु का अंत। अर्थात् हेमंत ऋतु का आरंभ। |
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शरदा :
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स्त्री० [सं० शरद—टाप्] १. शरद ऋतु। २. वर्ष। साल। |
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शरदिज :
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वि० [सं० शरदि√जन् (उत्पन्न करना)+ड] शरत् ऋतु में उत्पन्न होनेवाला |
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शरदेंदु :
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पुं० [सं० ष० त० स०] शरद् ऋतु का चन्द्रमा। शरच्चंद्र। |
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शरद्वत् :
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पुं० [सं० शरत+मतुप्-म=व] शरत् ऋतु। |
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शरधि :
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पुं० [सं० शर√धा (रखन)+कि] तूणीर। तरकश। |
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शरन्मुख :
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पुं०[सं०ष०त०स] शरद् ऋतु का आरंभ। |
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शरपंख :
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पुं० [सं० ब० स०] जवासा। घमासा। |
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शरपुंख :
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पुं० [सं० ब० स०] १. नील की तरह का सर-फोंका नाम का पौधा। २. तार या वाण में लगाया हुआ पंख या पर। ३. वैद्यक में चीर-फाड़ के काम के लिए एक प्रकार का यंत्र। |
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शरफ :
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पुं० [अ०] १. खूबी। २. बड़ाई। प्रशंसा। ३. सौभाग्य। ४. मान। प्रतिष्ठा। महत्त्व। |
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शरबत :
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पुं० [अ०] १. चीनी आदि में पकाकर तैयार किया हुआ ओषधि या फल का गाढा रस। जैसे—अनार, संतरे या शहतूत का सरबत। २. उक्त का कुछ अंश पानी में घोलकर बनाया हुआ पेय। ३. किसी फल का रस निचोड़कर तथा उसमें चीनी-पानी आदि मिलाकर बनाया हुआ पेय। ४. ऐसा पानी जिसमें गुड़, चीनी मिसली आदि में से कोई चीज घुली हो। ५. मुसलमानों में एक रीति जिसमें विवाह के उपरांत कन्यापक्ष वाले वर पक्षवालों को शरबत पिलाते हैं। ३. उक्त अवसर पर वह धन जो शरबत पीने के उपलक्ष्य में वर पक्ष वालों को दिया जाता है। |
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शरबत-पिलाई :
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स्त्री० [हिं० शरबत+पिलाना] वह धन जो वर और कन्या पक्ष के लोग एक दूसरे को पिलाकर देते हैं। (मुसल०) |
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शरबती :
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वि० [हिं० शरबत] १. शरबत की तरह मीठा या तरल। जैसे—शरबती तरकारी। २. उक्त के आधार पर रसपूर्ण, मधुर तथा प्रिय। जैसे—शरबती आँखें। ३. जो शरबत बनाने के काम आता हो। जैसे—शरबती नींबू, शरबती फालसा। ४. जो शरबत के रंग का हो। कुछ कुछ लाल। गुलाबी। पुं० १. पानी में घुली हुई चीनी की तरह का एक प्रकार का हलका पीला रंग जिसमें हलकी लाली भी होती हो। २. एक प्रकार का नगीना जो पीलापन लिए लाल रंग का होता है। ३. एक प्रकार का बढ़िया कपड़ा जो तनजेब से कुछ मोटा और अद्धी से कुछ पतला होता है। ४. मीठा नींबू। ५. एक प्रकार का बढ़िया आम। |
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समानार्थी शब्द-
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शरबती नींबू :
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पुं० [हि० शरबत+नींबू] १. चकोतरा। २. गलगल। ३. जंबीरा या मीठा नींबू। |
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शरबान :
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पुं० [सं० शर+बान] अगिया घास। |
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शरभ :
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पुं० [सं० शर√भृ+अभच्] १. टिड्डी। २. फतिंगा। ३. हाथी का बच्चा। ४. विष्णु। ५. ऊँट। ६. एक प्रकार का पक्षी। ७. शेर। सिंह। ८. आठ पैरोंवाला एक कल्पित मृग। ९. राम की सेना का एक यूथपति बन्दर। १॰. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में ४ नगण और १ सगण होता है। इसे शशिकला और मणिगुण भी कहते हैं। ११. दोहे का एक भेद जिसमें २॰ गुरु और ८ लघु मात्राएँ होती हैं। |
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समानार्थी शब्द-
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शरभंग :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्राचीन महर्षि जो दक्षिण में रहते थे। |
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समानार्थी शब्द-
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शरभा :
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स्त्री० [सं० शरभ-टाप्] १. शुष्क अवयवों वाली और विवाह के अयोग्य कन्या। २. लकड़ी का एक प्रकार का यंत्र। |
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समानार्थी शब्द-
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शरभू :
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पुं० [सं० शर√भू+क्विप्] कार्तिकेय। |
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शरम :
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स्त्री० [फा० शर्म] १. लज्जा। हया। गैरत। मुहावरा—शरम से गड़ना=मारे लज्जा के दबे या झुके जाना। बहुत लज्जित होना। शरम से पानी पानी होना=बहुत लज्जित होना। २. किसी बड़े का लिहाज या संकोच। ३. इज्जत। प्रतिष्ठा। |
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समानार्थी शब्द-
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शरम-हुजुरी :
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स्त्री० [अ० शर्म+फा० हुजुर] मुँह देखने की लाज। |
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समानार्थी शब्द-
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शरमनाक :
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वि० [फा० शर्मनाक] (कार्य या व्यवहार) जिसके कारण शर्म आती हो या आनी चाहिए। लज्जाजनक। निर्लज्जतापूर्ण। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरमल्ल :
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पुं० [सं० सप्त, त० स] १. वह जो तीर चलाने में निपुण हो। धनुर्धारी। २. मैना पक्षी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरमसार :
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वि० [फा० शर्मसार] [भाव० शरमसारी] १. जिसे शरम हो। लज्जावाला। २. लज्जत। शरमिन्दा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरमा-शरमी :
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अव्य० [फा० शर्म] १. लज्जा के कारण। २. संकोचवश। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरमाऊ :
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वि० [हि० शरम+आऊ (प्रत्यय)] शरमानेवाला। लजीला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरमाना :
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अ० [अ० शर्म+आना (प्रत्यय)] १. किसी के कुछ कहने या करने का उत्साह न होने के फलस्वरूप झेंपना। लाज से नम्र होना। २. लज्जित होना। स० लज्जित या शरमिन्दा करना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरमालू :
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वि०=शरमाऊ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरमिंदगी :
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स्त्री० [फा०] शरमिंदा या लज्जित होने की अवस्था या भाव। लाज। झेंप। क्रि० प्र०—उठाना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरमिंदा :
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वि० [फा० शर्मिन्दः] जो अपने किसी अनुचित कार्य या व्यवहार के फलस्वरूप लज्जित तथा दुःखी हो। लज्जा से जिसका मस्तक नत हो गया हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरमीला :
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वि० [फा० शर्म+ईला (प्रत्यय)] लाज-भरा। लाज से युक्त। निर्लज्ज का विरुद्धार्थक। जैसे—शरमीली आँखें, शरमीली वधू। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरयू :
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स्त्री०=सरयू (नदी)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरर :
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पुं० [अ०] चिनगारी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरलोमा (मन्) :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्राचीन ऋषि जिन्होंने भरद्वाज जी से आयुर्वेद संहिता लाने के लिए प्रार्थना की थी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरवाणि :
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स्त्री० [सं०] १. शर। २. तीर का फल। पुं० १. तीर चलानेवाला योद्धा। २. पैदल सिपाही। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरव्य :
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पुं० [सं० शरु+यत्—शर√व्ये (मुक्त होना)+ड] १. वाण का लक्ष्य। २. तीरंदाज। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरह :
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स्त्री० [अ०] १. वह कथन या वर्णन जो किसी बात को स्पष्ट करने के लिए किया जाय। अच्छी तरह अर्थात् स्पष्ट और विस्तृत रूप से कुछ कहना। २. व्याख्या। ३. ग्रन्थ की टीका या भाष्य। ४. किसी चीज की बिक्री की दर या भाव। ५. किसी काम या चीज की दर। जैसे—लगान की शरअ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरह-बंदी :
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स्त्री० [अ० शरह+फा० बन्दी] १. दर या भाव निश्चित करने की क्रिया। २. (मंडी आदि के) भावों की तालिका। स्त्री०=शरअ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराकत :
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स्त्री० [फा०] १. शरीक या सम्मिलित होने की अवस्था या भाव। २. हिस्सेदारी। साझा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराटिका :
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स्त्री० [सं०] १. टिटिहरी। २. लजालू लता। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराध :
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पुं०=श्राद्ध।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराप :
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पुं०=शाप। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरापना :
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स० [सं० शाप+हिं० ना (प्रत्यय)] किसी को शाप देना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराफ :
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पुं०=सराफ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराफ :
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पुं०=सराफा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराफत :
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स्त्री० [अ० शराफत] १. शरीफ या सज्जन होने की अवस्था या भाव। २. सज्जनोचित कोई व्यवहार या शिष्टाचार। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराफी :
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स्त्री०=सराफी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराब :
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स्त्री० [अ०] १. मदिरा। सुरा। वारुणी। मद्य। दारू २. हकीमों की परिभाषा में किसी चीज का मीठा अरक या शरबत। जैसे—शराब बनफशा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराबखाना :
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पुं० [अ० शराब+फा० खाना] शराब बनने या बिकने की जगह। वह स्थान जहाँ शराब मिलती हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराबखोरी :
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स्त्री० [फा०] १. शराब पीने का कृत्य। मदिरा पान। २. शराब पीने की आदत या लत। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराबख्वार :
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पुं० [फा०] वह जो शराब पीता हो। मदिरा पीनेवाला। मद्यप। शराबी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराबी :
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पुं० [अ० शराब+हिं० ई (प्रत्यय)] व्यक्ति जिसे शराब पीने का व्यसन हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराबोर :
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वि० [फा०] पानी से तर। गीला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरारत :
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स्त्री० [अ०] १. शरीर का पाजी होने की अवस्था या भाव। २. दुष्टतापूर्ण कार्य। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरारतन् :
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क्रि० वि० [अ०] शरारत या पाजीपन से। अव्य [अ०] शरारत अर्थात् किसी को तंग करने की नियत से। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरारि :
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पुं० [सं० शर√ऋ (गमनादि)+इ] १. राम की सेना का एक यूथपति बंदर। २. टिटिहरी नाम की चिड़िया। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरारि :
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स्त्री० [शरारि+ङीष्] टिटिहरी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरारोप :
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पुं० [सं० ब० स०] धनुष जिस पर शर चढ़ाया जाता है। कमान। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराली :
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स्त्री० [सं० शरालि—ङीप्] टिटिहरी नाम की छोटी चिड़िया। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराव :
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पुं० [सं० शर√अव (रक्षा करना)=अण्] १. मिट्टी का एक प्रकार का पुरवा। कुल्हड़। २. वैद्यक में एक प्रकार का परिमाण या तौल जो चौसठ तोले या एक सेर की होती है। (वैद्यक में सेर चौसठ तोले का ही होता है)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरावती :
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स्त्री० [सं० शरा+मतुप्,=व-दीर्घ-ङीष्] १. गंगा नामक नदी का पुराना नाम। २. एक प्राचीन नगरी जिसे लव ने अपनी राजधानी बनाई थी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरावर :
|
पुं० [सं० ब० स०] १. ढाल। २. कवच। वर्म। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शरावरण :
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पुं० [सं० ब० स०] ढाल जिससे तीर का वार रोकते हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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शराविका :
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स्त्री० [सं० शराव+कन्-टाप्, इत्व] १. ऐसी फुंसी जो ऊपर से ऊँची और बीच में गहरी हो। २. एक प्रकार का कुष्ठ रोग। |
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शराश्रय :
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पुं० [सं० ष० त० स०] तीर रखने का स्थान, तरकश। |
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शरासन :
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पुं० [सं० शर√अस् (फेंकना)+ल्युट-अन] धनुष कमान। चाप। |
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शरास्य :
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पुं० [सं० शर√अस् (रखना)+ण्यत्] धनुष कमान। |
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शरिष्ठ :
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वि०=श्रेष्ठ। |
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शरी :
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स्त्री० [सं० शरि-ङीष्] एरका या मोथा नाम का तृण। |
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शरीअत :
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स्त्री० [अ०] मुसलमानी धर्म में शरअ के अनुसार आचरण करना। नमाज, रोजे आदि का निर्वाह और पालन। विशेष—सूफी संप्रदाय में यह साधना की चार स्थितियों में से पहली है। शेष तीन स्थितियों तरीकत मारफत और हकीकत कहलाती है। |
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शरीक :
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वि० [अ०] १. किसी के साथ मिला हुआ। शामिल। सम्मिलित। २. कष्ट आदि के समय सहानुभूति दिखाने या सहायता करनेवाला। पुं० १. वह जो किसी बात में किसी के साथ रहता हो। साथी। २. साझीदार। हिस्सेदार। ३. ऐसा निकट सम्बन्धी जो पैतृक संपत्ति का हिस्सेदार हो या रहा हो। |
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शरीफ :
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पुं० [अ० शरीफ] १. ऊँचे घराने का व्यक्ति। कुलीन मनुष्य। २. सज्जन और सभ्य व्यक्ति। भला आदमी। ३. मक्के के प्रधान अधिकारी की उपाधि। वि० पवित्र या शुभ। जैसे—मिजाज शरीफ। पुं० [अ० शेरीफ] अंगरेजी शासन में कलकत्ते बम्बई और मद्रास में सरकार की ओर से नियक्त किए जानेवाले एक प्रकार के अवैतनिक अधिकारी। जिनके सुपुर्द शांति-रक्षा तथा इस प्रकार के और कुछ काम होते हैं। |
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शरीफा :
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पुं० [सं० श्रीफल या सीताफल] १. मझोले आकार का एक प्रकार का प्रसिद्ध वृक्ष जो प्रायः सारे भारत में फल के लिए लगाया जाता है। २. उक्त वृक्ष का फल जो अमरूद की तरह गोल और खाकी रंग का होता है। इसके अन्दर सफेद मीठा गूदा (बीजों में लिपटा हुआ) होता है। श्रीफल। सीताफल। रामसीता। |
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शरीर :
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पुं० [सं० शृ (हिंसा करना)+ईरन्] [भाव० शरीरता, वि० शारीरिक] १. मनुष्य या पशु आदि के समस्त अंगो की समष्टि। सिर से पैर तक के सब अंगों का समूह। देह। तन। वदन। जिस्म। वि० [अ०] दुष्ट-प्रकृति। |
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शरीर-पतन :
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पुं० [सं० ष० त० या ब० स०] १. शरीर का धीरे-धीरे क्षीण होना। २. मृत्यु। मौत। |
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शरीर-पात :
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पुं० [सं० ष० त०] देह का अंत या नाश। शरीरांत। देहावसान। मृत्यु। मौत। |
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शरीर-भृत :
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पुं० [सं० शरीर√भृ+क्विप्+तुक्] १. वह जो शरीर धारण किए हो। शारीरी। २. विष्णु। ३. जीवात्मा। |
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शरीर-यापन :
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स्त्री० [ब० स०] जीवन का निर्वाह या यापन। |
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शरीर-रक्षक :
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पुं० [ष० त० स०] अंगरक्षक (दे०)। |
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शरीर-वृत्ति :
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स्त्री० [सं० मध्यम० स०] जीवन निर्वाह करने की वृत्ति। |
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शरीर-शास्त्र :
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पुं० [सं०] शारीर। |
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शरीर-शोधन :
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पुं० [सं० ब० स० ष० त०] वह औषधि जो कुपित मल, पित्त और कफ ऊर्ध्व अथवा अधोमार्ग से शरीर के बाहर निकाल दे। |
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शरीर-संस्कार :
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पुं० [सं० ष० त०] १. शरीर को शुद्ध तथा स्वच्छ करने की क्रिया। २. गर्भाधान से लेकर अन्त्येष्टि तक के मनुष्य के वेद-विहित सोलह संस्कार। |
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शरीर-सेवा :
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स्त्री० [सं० ष० त०] ऐसे सब काम जिनसे शरीर अच्छी तरह और सुख से रहे। |
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शरीर-सेवी :
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पुं० [सं० शरीर-सेवा+इनि] वह जो केवल अपने शारीरिक सुखों का ध्यान रखता हो। |
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शरीरक :
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पुं० [सं० शरीर+कै+क+कन्] १. छोटा शरीर। २. आत्मा। |
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शरीरज :
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वि० [सं० शरीर√जन् (उत्पन्न करना)+ड] जो शरीर से उत्पन्न हुआ हो या होता हो। पुं० १. पुत्र। बेटा। २. कामदेव। |
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शरीरता :
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स्त्री० [सं० शरीर+तल्-टाप्] शरीर का भाव या धर्म। |
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शरीरत्याग :
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पुं० [सं० ष० त०] मृत्यु। मौत। |
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शरीरत्व :
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पुं० [सं० शरीर+त्व] शरीर का भाव या धर्म। शरीरता। |
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शरीरस्थ :
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वि० [सं० शरीर√स्था (ठहरना)+क] १. शरीर में रहनेवाला या स्थित। २. जीवित। |
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शरीरस्थि :
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पुं० [सं० ष० त० स० शरीर+अस्थि] कंकाल। पिंजर। |
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शरीरांत :
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पुं० [सं० ष० त० स०] मृत्यु। |
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शरीरार्पण :
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पुं० [सं० ष० त० स०] सेवा-भाव से किसी कार्य में जी-जान से जुटना। |
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शरीरावरण :
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पुं० [सं० ष० त० स०] १. शरीर को ढकनेवाली कोई चीज। २. खाल। चमड़ा। ३. ढाल। वर्म। |
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शरीरी :
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वि० [सं० शरीर+इनि, दीर्घ, न लोप] शरीरधारी। पुं० १. प्राणी। २. आत्मा। जीव। |
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शरु :
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पुं० [सं० शृ (हिंसा करना)+उन्] १. वज्र। २. तीर। वाण। ३. हिंसा। ४. आयुध। अस्त्र। ५. क्रोध। गुस्सा। वि० १. हिंसक। २. बहुत पतला। ३. नुकीला। |
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शरेज :
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पुं० [सं० शरे√जन् (उत्पन्न करना)+ड, सप्तमी, अलुक्] कार्तिकेय। |
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शरेष्ट :
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पुं० [सं०√शृ+अच्=शरः काम-इष्ट, ष० त०] आम। आम्र। वि०=श्रेष्ठ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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शर्कर :
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पुं० [सं०√शृ (हिंसा करना)+करन्] १. कंकड़। २. बालू का कण। ३. एक पौराणिक देश। ४. उक्त देश का निवासी। ५. एक प्रकार का जल-चर जंतु। ६. शक्कर। चीनी। |
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शर्करक :
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पुं० [सं० शर्कर+कन्] मीठा नीबू। शरबती नींबू। |
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शर्करकंद :
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पुं० [सं० ष० त० या ब० स०] ‘शकरकंद’। |
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शर्करजा :
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स्त्री० [सं० शर्करा√जन् (उत्पन्न करना)+ड—टाप्] चीनी। |
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शर्करा :
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स्त्री० [सं० शर्करा—टाप्] १. शक्कर। चीनी। २. बालू का कण। ३. पथरी नामक रोग। ४. कंकड़। ५. ठीकरा। ६. पुराणानुसार एक देश जो कूर्मचक्र के पुच्छ भाग में कहा गया है। ७. दे० ‘शर्करार्बुंद’। |
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शर्करा-सप्तमी :
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स्त्री० [सं० मध्यम० स०] वैशाख शुक्ल सप्तमी इस दिन सुवर्णाश्व का पूजन होता है। |
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शर्कराचल :
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पुं० [सं० ष० त०] पुराणानुसार चीनी का वह पहाड़ जो दान करने के लिए लगाया जाता है। |
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शर्कराधेनु :
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स्त्री० [सं० ष० त० स०] पुराणानुसार चीनी की वह गौ जो दान करने के लिए बनाई जाती है। |
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शर्कराप्रभा :
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स्त्री० [सं० ब० स०] जैनों के अनुसार एक नरक का नाम। |
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शर्कराप्रमेह :
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पुं० [सं० मध्य० स०] ऐसा प्रमेह जिसमें मूत्र का रंग सफेद हो जाता है और उसके साथ शरीर की शर्करा भी निकलती है। |
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शर्करामापी :
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पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का यंत्र जिससे यह जाना जाता है कि किसी घोल या तरल पदार्थ में शर्करा या चीनी का कितना अंश है। (सैक्रिमीटर) |
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शर्करार्बुद :
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पुं० [ब० स०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का रोग जिसमें त्रिदोष के कारण मांस, शिरा और स्नायु में गाँठें पड़ जाती है। |
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शर्करासव :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] चीनी से बनाई जानेवाली शराब। |
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शर्करिक :
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वि० [सं० शर्करा+ठन्-इक] १. शर्करा से युक्त। २. शर्करा से बना हुआ। |
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शर्करी :
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स्त्री० [सं० शर्करा-ङीष्] १. नदी। २. मेखला। ३. कलम। लेखनी। ४. वर्णवृत्त के अन्तर्गत चौदह अक्षरों की एक वृत्ति इसके कुल १६३८४ भेद होते हैं जिसमें १३ मुख्य हैं। |
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शर्करीय :
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वि० [सं० शर्करा+छ—ईय] शर्करा-संबंधी। शर्करा का। |
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शर्करोदक :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] शरबत। |
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शर्कोटि :
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पुं० [सं० ब० स०] साँप। |
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शर्ट :
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स्त्री० [अं०] एक प्रकार का पाश्चात्य पहनावा जो कुरते की तरह का तथा कालर वाला होता है। कमीज। |
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शर्त :
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स्त्री० [अ०] १. किसी बात, घटना आदि की सत्यता तथा असत्यता अथवा विद्यमानता तथा अविद्यमानता आदि के संबंध में दो पक्षों द्वारा दाँव पर लगाया जानेवाला धन। बाजी। क्रि० प्र०—जीतना।—बदना।—बाँधना।—लगाना।—हारना। २. कोई ऐसी बात जो किसी काम या बात की सिद्धि के लिए आवश्यक रूप से अपेक्षित हो (टर्म) जैसे—वह यहाँ आ तो सकता है, पर शर्त यह है कि तुम उससे लड़ने लगो। ३. दे० ‘उपबन्ध’। क्रि० प्र०—रखना।—लगाना। |
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शर्तिया :
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अव्य० [अ०] शर्तबदकर अर्थात् बहुत ही निश्चय या दृढ़तापूर्वक। जैसे—मैं शर्तिया कहता हूँ कि आप अच्छे हो जायेंगे। वि० बिल्कुल ठीक और निश्चित। |
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शर्ती :
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अव्य०=शर्तिया। |
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शर्द्ध :
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पुं० [सं०√शृधु (अपान वायु के निन्दित शब्द)+घञ्०] १. तेज। २. अपान वायु। पाद। |
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शर्द्धन :
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पुं० [सं०√शुधु (अपना वायु के शब्द)+ल्युट—अन] अधोवायु त्याग करना। पादना। |
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शर्बत :
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पुं०=शरबत। |
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शर्बती :
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वि० पुं०=शरबती। |
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शर्म :
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पुं० [सं०√शृ (हिंसा करना)+मनिन्] १. सुख। आनन्द। २. घर। मकान। वि० परम सुखी। स्त्री०=शरम। विशेष—शर्म और हया का अन्तर जानने के लिए दे० ‘हया’ का विशेष। |
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शर्मद :
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वि० [सं० शर्म्म√दा (देना)+क०] [स्त्री० शर्मदा] आनन्द देनेवाला। सुखदायक। पुं० विष्णु का एक नाम। |
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शर्मन् :
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पुं०=शम्म। |
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शर्मर :
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पुं० [सं० शर्म्म√रा (लेना)+क] एक प्रकार का वस्त्र। |
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शर्मरी :
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स्त्री० [सं० शर्म्मर—ङीष्] दारू हल्दी। |
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शर्मसार :
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वि० [फा०] [भाव० शर्मसारी] १. लज्जाशील। २. लज्जित। शरमिन्दा। |
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शर्मा :
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पुं० [सं० शर्म्मन्, दीर्घ, नलोप] ब्राह्मणों के नाम के अन्त में लगने वाली उपाधि। जैसे—पं० पद्मसिंह शर्मा। |
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शर्माऊ, शर्मालू :
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वि०=शरमीला। |
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शर्माना :
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अ० स०=शरमाना। |
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शर्माशर्मी :
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अ० य०=शरमा-शरमी। |
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शर्मिदगी :
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स्त्री०=शरमिंदगी। |
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शर्मिष्ठा :
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स्त्री० [सं० शर्म्म+इष्ठन्-टाप्] दैत्यों के राजा वृषपर्वा की कन्या जो शुक्राचार्य की कन्या देवयानी की सखी थी। |
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शर्मीला :
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वि०=शरमीला। |
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शर्य :
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पुं० [सं०√शृ (हिंसा करना)+यत्] १. योद्धा। २. तीर। बाण। ३. उँगली। |
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शर्यण :
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पुं० [सं० शर्य्य√नी (ढोना)+ड] वैदिक काल का एक जनपद जो कुरुक्षेत्र के अंतर्गत था। |
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शर्यणावत् :
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पुं० [सं० शर्य्यन√अव (रक्षा करना)+क्विप्, तुक्] शर्य्यण नामक जनपद के पास का एक प्राचीन सरोवर जो तीर्थ माना जाता था। |
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शर्या :
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स्त्री० [सं० शर्य्य-टाप्] १. रात्रि। रात। २. उँगली। ३. छोटा तीर। |
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शर्र :
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पुं० [फा०] १. शरारत। २. झगड़ा-फसाद। ३. बुराई। खराबी। |
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शर्व :
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पुं० [सं०√शृ (हिंसा करना)+व, शर्व+अच्] १. शिव। महादेव। २. विष्णु। |
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शर्वपत्नी :
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स्त्री० [सं० ष० त० स०] १. पार्वती। २. लक्ष्मी। |
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समानार्थी शब्द-
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शर्वपर्वत :
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पुं० [सं० ष० त० स०] कैलाश (पर्वत)। |
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शर्वर :
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पुं० [सं०√सर्व+अरन्] १. अंधकार। अँधेरा। २. सन्ध्या। ३. कामदेव। |
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शर्वरी :
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स्त्री० [सं०√शृवनिप्-ङीष्] १. रात। रात्रि। २. सन्ध्याकाल। ३. हलदी। ४. औरत। स्त्री। ५. बृहस्पति के साठ संवत्सरों में से चौतीसवाँ संवत्सर। |
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समानार्थी शब्द-
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शर्वरी-दीपक :
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पुं० [सं० ष० त० स०] चन्द्रमा। |
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समानार्थी शब्द-
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शर्वरीकर :
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पुं० [सं० शर्वरी√कृ (करना)+ट-अच-वा] विष्णु। |
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शर्वरीपति :
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पुं० [सं० ष० त० स०] १. चन्द्रमा। २. शिव। |
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शर्वरीश :
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पुं० [सं० ष० त० स०] चन्द्रमा। |
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समानार्थी शब्द-
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शर्वला :
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स्त्री० [सं०√शर्व+घञ्√ला+क—टाप्] तोमर नामक अस्त्र। |
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उपलब्ध नहीं |
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शर्वाक्ष :
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पुं० [सं० ब० स०] रुद्राक्ष। शिवाक्ष। |
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शर्वाचल :
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पुं० [सं० ष० त० स०] कैलाश। |
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समानार्थी शब्द-
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शर्वाणी :
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स्त्री० [सं० शर्व+ङीष्—आनुक्] पार्वती। |
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शर्शरीक :
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वि० [सं०√शृ (हिंसा करना)+ईकन्] १. हिंसक। २. खल। दुष्ट। पुं० १. अग्नि। २. घोड़ा। |
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समानार्थी शब्द-
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